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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 73
    ऋषिः - कुमारहारित ऋषिः देवता - अघ्न्या देवताः छन्दः - भुरिगार्षी गायत्री स्वरः - षड्जः
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    विमु॑च्यध्वमघ्न्या देवयाना॒ऽअग॑न्म॒ तम॑सस्पा॒रम॒स्य। ज्योति॑रापाम॥७३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि। मु॒च्य॒ध्व॒म्। अ॒घ्न्याः॒। दे॒व॒या॒ना॒ इति॑ देवऽयानाः। अग॑न्म। तम॑सः। पा॒रम्। अ॒स्य। ज्योतिः॑। आ॒पा॒म॒ ॥७३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विमुच्यध्वमघ्न्या देवयाना अगन्म तमसस्पारमस्य ज्योतिरापाम ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वि। मुच्यध्वम्। अघ्न्याः। देवयाना इति देवऽयानाः। अगन्म। तमसः। पारम्। अस्य। ज्योतिः। आपाम॥७३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 73
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! जैसे तुम लोग (अघ्न्याः) रक्षा के योग्य (देवयानाः) दिव्य भोगों की प्राप्ति की हेतु गौओं को प्राप्त हो, सुन्दर संस्कार किये अन्नों का भोजन करके रोगों से (विमुच्यध्वम्) पृथक् रहते हो, वैसे हम लोग भी बचें। जैसे तुम लोग (तमसः) रात्रि के (पारम्) पार को प्राप्त होते हो, वैसे हम भी (अगन्म) प्राप्त होवें। जैसे तुम लोग (अस्य) इस सूर्य्य के (ज्योतिः) प्रकाश को व्याप्त होते हो, वैसे हम भी (वि) (आपाम) व्याप्त होवें॥७३॥

    भावार्थ - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि गौ आदि पशुओं को भी न मारें और न मरवावें तथा न किसी को मारने दें। जैसे सूर्य्य के उदय से रात्रि निवृत्त होती है, वैसे वैद्यकशास्त्र की रीति से पथ्य अन्नादि पदार्थों का सेवन कर रोगों से बचें॥७३॥

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