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यजुर्वेद अध्याय - 12

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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 73
    ऋषिः - कुमारहारित ऋषिः देवता - अघ्न्या देवताः छन्दः - भुरिगार्षी गायत्री स्वरः - षड्जः
    129

    विमु॑च्यध्वमघ्न्या देवयाना॒ऽअग॑न्म॒ तम॑सस्पा॒रम॒स्य। ज्योति॑रापाम॥७३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि। मु॒च्य॒ध्व॒म्। अ॒घ्न्याः॒। दे॒व॒या॒ना॒ इति॑ देवऽयानाः। अग॑न्म। तम॑सः। पा॒रम्। अ॒स्य। ज्योतिः॑। आ॒पा॒म॒ ॥७३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विमुच्यध्वमघ्न्या देवयाना अगन्म तमसस्पारमस्य ज्योतिरापाम ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वि। मुच्यध्वम्। अघ्न्याः। देवयाना इति देवऽयानाः। अगन्म। तमसः। पारम्। अस्य। ज्योतिः। आपाम॥७३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 73
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    मनुष्यैर्गवादिपशुवृद्धिं कृत्वा पयोघृतादीनि वर्द्धयित्वानन्दितव्यमित्याह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! यथा यूयं अघ्न्या देवयानाः प्राप्य सुसंस्कृतान्यन्नानि भुक्त्वा रोगेभ्यो विमुच्यध्वम्, तथा वयमपि विमुच्येमहि। यथा यूयं तमसः पारं प्राप्नुत, तथा वयमप्यगन्म। यथा यूयमस्य ज्योतिर्व्याप्नुत, तथा वयमप्यापाम॥७३॥

    पदार्थः

    (वि) (मुच्यध्वम्) त्यजत (अघ्न्याः) हन्तुमयोग्या गाः (देवयानाः) याभिर्देवान् दिव्यान् भोगान् प्राप्नुवन्ति ताः (अगन्म) गच्छेम (तमसः) रात्रेः (पारम्) (अस्य) सूर्य्यस्य (ज्योतिः) प्रकाशम् (आपाम) व्याप्नुयाम। [अयं मन्त्रः शत॰७.२.२.२१ व्याख्यातः]॥७३॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्या गवादीन् पशून् कदाचिन्न हन्युर्न घातयेयुश्च। यथा सूर्योदयाद् रात्रिर्निवर्त्तते, तथा वैद्यकशास्त्ररीत्याा पथ्यान्यन्नानि संसेव्य रोगेभ्यो निवर्त्तन्ताम्॥७३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्यों को गौ आदि पशुओं को बढ़ा, उन से दूध घी आदि की वृद्धि कर आनन्द में रहना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! जैसे तुम लोग (अघ्न्याः) रक्षा के योग्य (देवयानाः) दिव्य भोगों की प्राप्ति की हेतु गौओं को प्राप्त हो, सुन्दर संस्कार किये अन्नों का भोजन करके रोगों से (विमुच्यध्वम्) पृथक् रहते हो, वैसे हम लोग भी बचें। जैसे तुम लोग (तमसः) रात्रि के (पारम्) पार को प्राप्त होते हो, वैसे हम भी (अगन्म) प्राप्त होवें। जैसे तुम लोग (अस्य) इस सूर्य्य के (ज्योतिः) प्रकाश को व्याप्त होते हो, वैसे हम भी (वि) (आपाम) व्याप्त होवें॥७३॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि गौ आदि पशुओं को भी न मारें और न मरवावें तथा न किसी को मारने दें। जैसे सूर्य्य के उदय से रात्रि निवृत्त होती है, वैसे वैद्यकशास्त्र की रीति से पथ्य अन्नादि पदार्थों का सेवन कर रोगों से बचें॥७३॥

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    विषय

    योगियों का वर्णन । पक्षान्तर में और पशुपालन व्यवहार ।

    भावार्थ

    हे विद्वान् पुरुषो ! ( अघ्न्याः ) कभी न मारने योग्य, रक्षा करने योग्य ( देवयानाः ) देव-दिव्य भोगों को प्राप्त करानेवाले बैलों को ( वि मुच्यध्वम् ) सायंकाल मुक्त करो। हम लोग ( अस्य ) इस ( तमसः ) रात्रि के अन्धकार के ( पारम् अगन्म ) पार प्राप्त होवें । ( ज्योतिः आपाम ) पुनः सूर्य के प्रकाश को प्राप्त करें । अर्थात् सायंकाल को बैल जुओं से खोल दिये जांय । रात बीतने पर तो प्रातःकाल ही पुनः कृषि कार्य में लगें । अथवा - हे ( अघ्न्याः ) अविनाशी देवयान से गति करनेवाले योगी जनो ! (विमुच्यध्वम् ) विशेषरूप से मुक्त होने का यत्न करो । ( तमसः पारम् अगन्म ) हम सब अन्धकार बन्धन से पार हो और ( ज्योतिः अपाम ) ब्रह्ममय ज्योति को प्राप्त करें ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    लिंगोक्ता देवता । गायत्री । षड्जः ॥

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    विषय

    अन्धकार से प्रकाश की ओर

    पदार्थ

    १. कृषि के द्वारा मनुष्य सब अङ्गों की शक्तियों का ठीक विकास करके पूर्ण नीरोग बनता है। प्रभु कहते हैं कि (विमुच्यध्वम्) = तुम सब आधि-व्याधियों से मुक्त हो जाओ। २. (अघ्न्याः) = रोगों से हनन के योग्य न होओ। कोई भी रोग तुम्हारे जीवन को असमय में ही नष्ट करनेवाला न हो । ३. (देवयाना:) = तुम सदा देवताओं के मार्ग से चलनेवाले बनो। तुम्हारे मनों में आसुर भावनाओं का विकास न हो। ४. तुम निश्चय करो कि (अस्य तमसः) = इस अन्धकार के (पारम् अगन्म) = पार को प्राप्त करें- अन्धकार में ही भटकते न रहें। और ५. (ज्योतिः आपाम्) = = ज्योति को प्राप्त करनेवाले हों। ('तमसो मा ज्योतिर्गमय') = मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलिए'- यही तुम्हारी प्रार्थना हो इसी के लिए तुम्हारा प्रयत्न हो । ६. सोमादि उत्तम ओषधियों के सेवन से तुम्हारा अन्तःकरण शुद्ध होगा, स्मृति ध्रुव होगी और वासनाएँ नष्ट होकर तुम्हारा जीवन सुन्दर बनेगा।

    भावार्थ

    भावार्थ - कृषि से उत्पन्न ओषधियों के सेवन से हम नीरोग बनते हुए अन्धकार से परे प्रकाश को प्राप्त होंगे।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी गाई इत्यादी पशूंना कधी मारू नये व इतरांनाही मारू देऊ नये. जसे सूर्याचा उदय झाल्यानंतर रात्रीचा लोप होतो तसे वैद्यकशास्त्राच्या पद्धतीने पथ्य व अन्न इत्यादी पदार्थांचे सेवन केल्यास रोग नष्ट हातात.

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    विषय

    मनुष्यांनी गौ आदी पशूंचे पालन-रक्षण करून त्याद्वारे दूध, घृत आदीं वस्तूंचे वर्धन करावे आणि आनंदात रहावे, पुढील मंत्रात हा विषय प्रतिपादित आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (वैद्यजन गृहस्थजनांना/कृषकांना संबोधून म्हणताहेत) हे मनुष्यांनो, जसे तुम्ही गृहस्थी/कृषकलोक (अहन्या:) अहिंसनीय व रक्षणीय आणि (देवयाना:) दिव्यगुणांची प्राप्ती करून देणाऱ्या गायीच पालन करीत आहात आणि त्यामुळे उत्तम सुसंस्कारित अन्न खाऊन रोगादीपासून (विभुच्यध्वम्‌) दूर राहत आहात, त्याप्रमाणे आम्ही (वैद्य आणि सूज्ञ मंडळी) देखील नीरोग राहू (वा राहत आहोत) तसेच ज्याप्रमाणे तुम्ही गृहाश्रमीजन (तमस:) रात्र (पारम्‌) पार करून (रात्र शांतपणे व्यतीत करून) सकाळी नि उठता) त्याचप्रमाणे आम्ही देखील (अगन्म) असावे ज्याप्रमाणे रात्र संपल्यानंतर तुम्ही गृहाश्रमी (अस्य) या सूर्याचा (ज्योति:) प्रकाश पाहता, त्याप्रमाणे आम्ही (वैधनही) तो सूर्योदय व सूर्यप्रकाश पहावा (आमचे दिवसरात्र निर्भयनिश्‍चित असावेत) ॥73॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. सर्व मनुष्यांकरिता आवश्‍यक व उचित आहे की त्यांनी गौ आदी पशूंची कदापी हत्या करूं नये, हत्या करवूं नये आणि कोणाला गौ हत्या करू देऊ नये. ज्याप्रमाणे सुर्योदय झाल्यानंतर रात्र संपते, तद्वत वैद्यकशास्त्रात सांगितल्याप्रमाणे पथ्याचे नियम पाळावेत, पथ्य अशा अन्नादी पदार्थांचे सेवन करावे आणि रोगराई पासून दूर रहावे. (रोगरुप रात्र कधीही येणार नाही) ॥73॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O persons, just as ye become free from ailments by getting good food from inviolable cows, the source of prosperity, so should we. Just as ye attain to the end of night at dawn, so should we. Just as ye receive the light of this sun, so should we.

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    Meaning

    Be free from poverty, ill-health and ignorance. Let us be rich with the holy inviolable cows for nourishment and prosperity. May we cross this darkness and attain to the light of the sun and the glory of life.

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    Translation

    O inviolable carriers on the godly way, may you be unyoked. We have crossed the darkness and entered into the light. (1)

    Notes

    Aghnyah, अहंतव्या:, that deserve no violence; bullocks; also cows. Tamasah, of darkness. Darkness denotes sorrow, misery or ignorance. Uvata interprets 1t as sorrow caused by hunger and thirst. Similarly, light denotes joy, bliss and knowledge. Араmа, प्राप्तवंत:, attained; reached.

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    बंगाली (1)

    विषय

    মনুষ্যৈর্গবাদিপশুবৃদ্ধিং কৃত্বা পয়োঘৃতাদীনি বর্দ্ধয়িত্বানন্দিতব্যমিত্যাহ ॥
    মনুষ্যকে গাভি আদি পশুসকলকে বৃদ্ধি করিয়া তদ্দ্বারা দুগ্ধ, ঘৃত ইত্যাদি বৃদ্ধি করিয়া আনন্দে থাকা উচিত, এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইযাছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যেমন তোমরা (অঘ্ন্যাঃ) রক্ষাযোগ্য (দেবয়ানাঃ) দিব্য ভোগ প্রাপ্তি হেতু গাভিদের প্রাপ্ত হইয়া সুন্দর সংস্কার কৃত অন্নের ভোজন করিয়া রোগ হইতে (বিমুচ্যধ্বম্) পৃথক থাক । সেই রূপ আমরাও মুক্ত থাকিব । যেমন তোমরা (তমসঃ) রাত্রির পার প্রাপ্ত হও সেইরূপ আমরাও (অগন্ম) প্রাপ্ত হই । যেমন তোমরা (অস্য) এই সূর্য্যের (জ্যোতিঃ) প্রকাশ ব্যাপ্ত হও সেইরূপ আমরাও (আপাম) ব্যাপ্ত হই ॥ ৭৩ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । মনুষ্যদিগের উচিত যে, গাভি ইত্যাদি পশু সকলকে কেউ হত্যা না করে এবং কাউকে হত্যাও করিতেও দিবে না । যেমন সূর্য্যের উদয় দ্বারা রাত্রির নিবৃত্তি ঘটে সেইরূপ বৈদ্যক শাস্ত্রের রীতি দ্বারা পথ্য অন্নাদি পদার্থের সেবন করিয়া রোগ হইতে অব্যাহতি লাভ করিবে ॥ ৭৩ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    বি মু॑চ্যধ্বমঘ্ন্যা দেবয়ানা॒ऽঅগ॑ন্ম॒ তম॑সস্পা॒রম॒স্য ।
    জ্যোতি॑রাপাম ॥ ৭৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    বিমুচ্যধ্বমিত্যস্য কুমারহারিত ঋষিঃ । অঘ্ন্যা দেবতাঃ । ভুরিগার্ষী গায়ত্রী ছন্দঃ । ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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