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यजुर्वेद अध्याय - 12

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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 78
    ऋषिः - भिषगृषिः देवता - चिकित्सुर्देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    69

    ओष॑धी॒रिति॑ मातर॒स्तद्वो॑ देवी॒रुप॑ ब्रुवे। स॒नेय॒मश्वं॒ गां वास॑ऽआ॒त्मानं॒ तव॑ पूरुष॥७८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ओष॑धीः। इति॑। मा॒त॒रः॒। तत्। वः॒। दे॒वीः॒। उप॑। ब्रु॒वे॒। स॒नेय॑म्। अश्व॑म्। गाम्। वासः॑। आ॒त्मान॑म्। तव॑। पू॒रु॒ष॒। पु॒रु॒षेति॑ पुरुष ॥७८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ओषधीरिति मातरस्तद्वो देवीरुपब्रुवे । सनेयमश्वङ्गाँवासऽआत्मानन्तव पूरुष ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ओषधीः। इति। मातरः। तत्। वः। देवीः। उप। ब्रुवे। सनेयम्। अश्वम्। गाम्। वासः। आत्मानम्। तव। पूरुष। पुरुषेति पुरुष॥७८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 78
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः पित्रपत्यानि परस्परं कथं वर्त्तेरन्नित्याह॥

    अन्वयः

    हे ओषधीरिति देवीर्मातरोऽहं तनयो वस्तत्पत्थ्यं वच उपब्रुवे। हे पुरुष! सुसन्तानाऽहं माता तवाश्वं गां वास आत्मानं च सततं सनेयम्॥७८॥

    पदार्थः

    (ओषधीः) (इति) इव (मातरः) जनन्यः (तत्) कर्म (वः) युष्मान् (देवीः) दिव्या विदुषीः (उप) समीपस्थः सन् (ब्रुवे) उपदिशेयम् (सनेयम्) संभजेयम् (अश्वम्) तुरङ्गादिकम् (गाम्) धेन्वादिकं पृथिव्यादिकं वा (वासः) वस्त्रादिकं निकेतनं वा (आत्मानम्) जीवम् (तव) (पूरुष) प्रयत्नशील॥७८॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यथा यवादय ओषधयः सेविताः शरीराणि पुष्यन्ति, तथैव जनन्यो विद्यासुशिक्षोपदेशेनाऽपत्यानि सुपोषयेयुः। यन्मातुरैश्वर्यं तद्दायोऽपत्यस्य यदपत्यस्यैतन्मातुरस्ति, एवं सर्वे सुप्रीत्या वर्त्तित्वा परस्परस्य सुखानि सततं वर्धयेयुः॥७८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर पिता और पुत्र आपस में कैसे वर्त्तें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (ओषधीः) ओषधियों के (इति) समान सुखदायक (देवीः) सुन्दर विदुषी स्त्री (मातरः) माता! मैं पुत्र (वः) तुम को (तत्) श्रेष्ठ पथ्यरूप कर्म्म (उपब्रुवे) समीपस्थित होकर उपदेश करूं। हे (पूरुष) पुरुषार्थी श्रेष्ठ सन्तान! मैं माता (तव) तेरे (अश्वम्) घोड़े आदि (गाम्) गौ आदि वा पृथिवी आदि (वासः) वस्त्र आदि वा घर और (आत्मानम्) जीव को निरन्तर (सनेयम्) सेवन करूं॥७८॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे जौ आदि ओषधी सेवन की हुई शरीरों को पुष्ट करती हैं, वैसे ही माता विद्या, अच्छी शिक्षा और उपदेश से सन्तानों को पुष्ट करें। जो माता का धन है, वह भाग सन्तान का और जो सन्तान का है, वह माता का ऐसे सब परस्पर प्रीति से वर्त्त कर निरन्तर सुख को बढ़ावें॥७८॥

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    भावार्थ

    औषधि के समान देवियो ! तुम ( ओषधीः) वीर्य को धारण करनेहारी हो । (इति) इसी कारण से तुम ( मातरः ) माता अर्थात् सन्तान को उत्पन्न करनेवाली जगत् की माता हो । ( तत् ) इसी कारण से ( व: ) आप ( देवी: ) देवियां हो ऐसा करके मैं (ब्रुवे ) बुलाता हूं । स्त्री कहती है -- है ( पुरुष ) पुरुष ! मैं ( तव ) तुझे ( अश्वं गां वासः ) अश्व, गौ और वस्त्र और ( आत्मानं ) अपने आपतक को ( सनेयं ) सौंपती हूं। राजा प्रजापक्ष में - हे वीर्यवती प्रजायो ! तुम माता के समान मुझे अपना राजा बनाती हो। तुमको 'देवी' कहके पुकारता हूं । प्रजा कहें। हे प्रजापते ! पुरुष ! मुक्त प्रजा के अश्व, गौ, वस्त्र आदि और हम अपने आपको भी तुझे सौंपते हैं । लता पक्ष में- हे ओषधियो ! माता के समान अन्नादि से पोषक हो । तुम बलजीवन देनेवाली होने से, 'देवी' कहाती हो । ओषधियां कहती हैं-- हे पुरुष ! हम तुझे गौ आदि पशु, अश्व, वेद या वाहन, वस्त्र और ( आत्मानं ) प्राण भी प्रदान करती हैं ।

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    विषय

    मातरः देवी:

    पदार्थ

    १. (ओषधीः इति) = ये जो ओषधियाँ हैं, वे (माता:) = मातृस्थानापन्न हैं- माता के समान कल्याण करनेवाली हैं। (तत्) = इसलिए मैं (वः) = आपको (देवी:) = दिव्य गुणोंवाली (उपब्रुवे) = कहता हूँ। वस्तुतः ओषधियाँ हमारे सब रोगों को दूर करके हमारे जीवनों का सुन्दर निर्माण करती हैं। हमारे सब रोगों के जीतने की कामनावाली ये वस्तुतः 'देवी' हैं 'दिवु विजिगीषा', निर्माण करने से 'माता', रोगों को जीतने से 'देवी'। २. ओषधियाँ 'माता व देवी' इन नामों से पुकारी जाकर कहती हैं कि हे पुरुष अपना पूरण करने की कामनावाले ! [पूरयितुं वष्टि] और हमारा उचित प्रयोग करनेवाले पुरुष ! हम तव तेरे अश्वं (गां वास:) = घोड़ों, गौवों व वस्त्रों को तथा (आत्मानम्) = शरीर को (सनेयम्) = प्राप्त करती हैं। हमारी शक्ति से नीरोग होकर तू घोड़ों, गौवों व वस्त्रों को कमानेवाला तो बनता ही है, पर सबसे बड़ी बात यह है कि तू अपने शरीर को प्राप्त करनेवाला बनता है। ये रोग तेरे शरीर के पति ही बन गये थे। इसी से इन्हें 'सपत्न' कहने की परिपाटी हो गई। तेरे इस शरीर पर तेरा निर्द्वन्द्व राज्य न रहा था।

    भावार्थ

    भावार्थ- ये ओषधियाँ माताएँ हैं, देवी हैं। इनकी कृपा से, अर्थात् इनके प्रयोग से स्वस्थ होकर हम घोड़ों, गौवों व वस्त्रों को पाते हैं। इनकी शक्ति से हमारा शरीर हमारा ही बना रहता है, अन्यथा इसपर रोगों का अधिकार हो जाता है।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे जव इत्यादी धान्य व औषधी खाल्ल्याने शरीर पुष्ट होते, तसेच मातेने विद्या, चांगले शिक्षण व उपदेश यांनी संतानांना पुष्ट करावे. जे मातेचे पैतृक धन आहे ते संतानांचे असते व जे संतानाचे असते ते मातेचे होय. अशा प्रकारे सर्वांनी परस्पर प्रेमाने राहून निरंतर सुख वाढवावे.

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    विषय

    (माता) पिता आणि पुत्र, यांनी एकमेकाशी कसे वागावे, पुढील मंत्रात हा विषय प्रतिपादित आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (पुत्राचे वचन माताप्रति) (ओषधी:) (इति) औषधीप्रमाणे सुखदायक (देवी:) उत्तम विदुषी हे माते, मी तुझा पत्र (व:) तुला (अथवा तुझ्यासमान सर्व मातांना) (तत्‌) ते श्रेष्ठ हितकारक कर्म करण्यासाठी (उपब्रुवे) तुझ्यासमीप राहून सदैव सांगत राहीन (वेळोवेळी उत्तम कर्म करण्याची प्रेरणा देत राहीन) (माता म्हणते) हे (पुरुष) माझ्या पुरुषार्थी श्रेष्ठ पुत्रा, मी तुझी माता (तव) तुला वा तुझ्यासाठी (अश्‍वम्‌) (सवारीसाठी) घोडा, (गाम्‌) (पुष्टिसाठी गौ आदी पशू तसेच शेतीसाठी) भूमी आणि (वास:) (नेसण्यासाठी) वस्त्र अथवा (राहण्यासाठी) घर यांची व्यवस्था करीत राहीन. याप्रमाणे तुझी सेवा करीत मी (आत्मानम्‌) स्वत:साठी ही त्या पदार्थांचे योग्य प्रमाणात सेवन करीन. ॥78॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात उपमा अलंकार आहे. ज्याप्रमाणे जव आदी औषधी सेवनाने शरीराला पुष्ट करतात, त्याप्रमाणे आईने चांगली विद्या, शिक्षण व उपदेश देऊन आपल्या संततीला पुष्ट (श्रेष्ठ) बनवावे. जी आईची संपत्ती ती संतानाची आणि जी संपत्ती संतानाची ती आईची, असे समजून माता-पुत्रांनी एकमेकाशी सदा प्रेमाने वागावे आणि आपल्या प्रेमपूर्ण वागणुकीने सर्वांना सुख द्यावे. ॥78॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O learned mother comforting like the herbs, may I speak unto thee in proximity, wholesome words. O active, virtuous son, may I, your mother, enjoy your horse, cow, land, home, clothes and soul-force.

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    Meaning

    Herbs and medicinal plants, as mothers, are of divine efficacy. They nourish and save like mothers. Hence I pray for you all: Lord of Life, Supreme Soul, may I by divine grace have the gift of horses, cows, clothes and home, and a healthy body.

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    Translation

    O herbs, you are mothers divine; so I pray through you; O Lord, may I have with your blessings horse, cow, clothing and a healthy body. (1)

    Notes

    Atmanam, а healthy self, or body.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনঃ পিত্রপত্যানি পরস্পরং কথং বর্ত্তেরন্নিত্যাহ ॥
    পুনঃ পিতা ও পুত্র পারস্পরিক কেমন ব্যবহার করিবে এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (ওষধীঃ) ওষধিগুলির (ইতি) সমান সুখদায়ক (দেবীঃ) সুন্দর বিদুষী স্ত্রী (মাতরঃ) মাতা! আমি পুত্র (বঃ) তোমাকে (তৎ) শ্রেষ্ঠ পথ্যরূপ কর্ম্ম (উপব্রুবে) সমীপ উপস্থিত হইয়া উপদেশ করিব । হে (পুরুষ) পুরুষার্থী শ্রেষ্ঠ সন্তান ! আমি মাতা (তব) তোমার (অশ্বম্) অশ্বাদি (গাম্) গাভী ইত্যাদি অথবা পৃথিবী ইত্যাদি (বাসঃ) বস্ত্রাদি বা গৃহ ও (আত্মানম্) জীবকে নিরন্তর (সনেয়ম্) সেবন করিব ॥ ৭৮ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । যেমন যবাদি ওষধী সেবনীকৃত শরীরকে পুষ্ট করে সেইরূপ মাতা, বিদ্যা, সুশিক্ষা ও উপদেশ দ্বারা সন্তানদেরকে পুষ্ট করিবে । যাহা মাতার ধন সেই ভাগ সন্তানের এবং যাহা সন্তানের উহা মাতার ধন এবং যাহা সন্তানের উহা মাতার এমন সকলে পরস্পর প্রীতিপূর্বক ব্যবহার করিয়া নিরন্তর সুখ বৃদ্ধি করাইবে ॥ ৭৮ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ওষ॑ধী॒রিতি॑ মাতর॒স্তদ্বো॑ দেবী॒রুপ॑ ব্রুবে ।
    স॒নেয়॒মশ্বং॒ গাং বাস॑ऽআ॒ত্মানং॒ তব॑ পূরুষ ॥ ৭৮ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ওষধীরিতীত্যস্য ভিষগৃষিঃ । চিকিৎসুর্দেবতা । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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