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यजुर्वेद अध्याय - 12

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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 19
    ऋषिः - वत्सप्रीर्ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृदार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    117

    वि॒द्मा ते॑ऽअग्ने त्रे॒धा त्र॒याणि॑ वि॒द्मा ते॒ धाम॒ विभृ॑ता पुरु॒त्रा। वि॒द्मा ते॒ नाम॑ पर॒मं गुहा॒ यद्वि॒द्मा तमुत्सं॒ यत॑ऽआज॒गन्थ॑॥१९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒द्म। ते॒। अ॒ग्ने॒। त्रे॒धा। त्र॒याणि॑। वि॒द्म। ते॒। धाम॑। विभृ॒तेति॒ विभृ॑ऽता। पु॒रु॒त्रेति॑ पुरु॒ऽत्रा। वि॒द्म। ते॒। नाम॑। प॒र॒मम्। गुहा॑। यत्। वि॒द्म। तम्। उत्स॑म्। यतः॑। आ॒ज॒गन्थेत्या॑ऽज॒गन्थ॑ ॥१९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विद्मा तेऽअग्ने त्रेधा त्रयाणि विद्मा ते धाम विभृता पुरुत्रा । विद्मा ते नाम परमङ्गुहा यद्विद्मा तमुत्सँयतऽआजगन्थ ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विद्म। ते। अग्ने। त्रेधा। त्रयाणि। विद्म। ते। धाम। विभृतेति विभृऽता। पुरुत्रेति पुरुऽत्रा। विद्म। ते। नाम। परमम्। गुहा। यत्। विद्म। तम्। उत्सम्। यतः। आजगन्थेत्याऽजगन्थ॥१९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 19
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे अग्ने! ते तव यानि त्रेधा त्रयाणि कर्माणि सन्ति, तानि वयं विद्म। हे स्थानेश! ते यानि विभृता पुरुत्रा धाम धामानि सन्ति, तानि वयं विद्म। हे विद्वन्! ते तव यद् गुहा परमं नामास्ति, तद्वयं विद्म। यतस्त्वमाजगन्थ, तं त्वामुत्समिव विद्म विजानीमः॥१९॥

    पदार्थः

    (विद्म) जानीयाम, अत्र चतसृषु क्रियासु संहितायां द्व्यचोऽतस्तिङः [अष्टा॰६.३.१३५] इति दीर्घः। विदो लटो वा [अष्टा॰३.४.८३] इति णलादय आदेशाः। (ते) तव (अग्ने) विद्वन्! (त्रेधा) त्रिभिः प्रकारैः (त्रयाणि) त्रीणि (विद्म) (ते) तव (धाम) धामानि (विभृता) विशेषेण धर्तुं योग्यानि (पुरुत्रा) पुरूणि बहूनि (विद्म) (ते) (नाम) (परमम्) (गुहा) गुहायां स्थितं गुप्तम् (यत्) (विद्म) (तम्) (उत्सम्) कूप इवार्द्रीकरम्। उत्स इति कूपनामसु पठितम्॥ (निघं॰३.२३) (यतः) यस्मात् (आजगन्थ) आगच्छेः। [अयं मन्त्रः शत॰६.७.४.४ व्याख्यातः]॥१९॥

    भावार्थः

    प्रजास्थैर्जनै राज्ञा च राजनीतिकर्माणि, स्थानानि, सर्वेषां नामानि च विज्ञेयानि। यथा कृषीवलाः कूपाज्जलमुत्कृष्य क्षेत्रादीनि तर्पयन्ति, तथैव प्रजास्थैर्धनादिभी राजा तर्पणीयो राज्ञा प्रजाश्च तर्प्पणीयाः॥१९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) विद्वन् पुरुष! (ते) आपके जो (त्रेधा) तीन प्रकार से (त्रयाणि) तीन कर्म हैं, उनको हम लोग (विद्म) जानें। हे स्थानों के स्वामी! (ते) आपके जो (विभृता) विशेष करके धारण करने के योग्य (पुरुत्रा) बहुत (धाम) नाम, जन्म और स्थान रूप हैं, उनको हम लोग (विद्म) जानें। हे विद्वन् पुरुष! (ते) आपका (यत्) जो (गुहा) बुद्धि में स्थित गुप्त (परमम्) श्रेष्ठ (नाम) नाम है, उसको हम लोग (विद्म) जानें (यतः) जिस कारण आप (आजगन्थ) अच्छे प्रकार प्राप्त होवें (तम्) उस (उत्सम्) कूप के तुल्य तर करनेहारे आपको (विद्म) हम लोग जानें॥१९॥

    भावार्थ

    प्रजा के पुरुष और राजा को योग्य है कि राजनीति के कामों, सब स्थानों और सब पदार्थों के नामों को जानें। जैसे कृषक कुएं से जल निकाल खेत आदि को तृप्त करते हैं, वैसे ही धनादि पदार्थों से प्रजा राजा को और राजा प्रजाओं को तृप्त करे॥१९॥

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    विषय

    वह ‘उत्स’

    पदार्थ

    १. हे ( अग्ने ) = सबके प्रकाशक प्रभो! ( ते ) = आपके ( त्रेधा ) = तीन प्रकार से रखे गये ( त्रयाणि ) = द्युलोक में सूर्यरूप को, अन्तरिक्षलोक में विद्युद्रूप को तथा पृथिवी पर अग्निरूप को ( विद्म ) = हम जानें। सूर्य, विद्युत् व अग्नि में उस प्रभु की दीप्ति ही तो दीप्त हो रही है। ‘तस्य भासा सर्वमिदं विभाति’ = उसकी दीप्ति से ही तो यह सब दीप्त होता है। २. ( ते ) = तेरे ( पुरुत्रा ) = बहुत स्थानों में ( विभृता ) = रक्खे गये ( धाम ) = तेज को ( विद्म ) = हम जानें। जहाँ-जहाँ पर कुछ भी विभूति दिखती है वह सब उस प्रभु के तेज के अंश से ही है। प्रभु का ही तेज सर्वत्र रक्खा हुआ है। ३. हे प्रभो! ( ते ) = तेरे ( परमं नाम ) = उत्कृष्ट यश को, ( गुहा यत् ) = जो बुद्धिरूपी गुहा में निहित है उसे, ( विद्म ) = हम जानें। जब मनुष्य की बुद्धि प्रभु की महिमा का विचार करती है तब प्रभु के अनन्त यश को जानकर उसे नतमस्तक कर देती है। ४. हे प्रभो! योगमार्ग के द्वारा हम ( तम् ) = उस ( उत्सम् ) = ज्ञान के स्वतः प्रवाह को ( विद्म ) = प्राप्त करें, ( यतः ) = जिससे ( आजगन्थ ) = आप प्राप्त होते हो। योगाभ्यास से मनुष्य उस स्थिति में पहुँचता है जहाँ कि योग के शब्दों में ‘ऋतम्भरा तत्र प्रज्ञा’ = सत्य का पोषण करनेवाली बुद्धि प्राप्त होती है। इस बुद्धि के प्राप्त होने पर अन्दर से स्वतः ज्ञान का स्रोत उमड़ पड़ता है। उस समय हम प्रभु का दर्शन कर पाते हैं। इस ऋतम्भरा प्रज्ञा से प्रभु की प्राप्ति होती है।

    भावार्थ

    भावार्थ — हम ‘अग्नि, विद्युत् व सूर्य’ में प्रभु की दीप्ति को देखें। सर्वत्र उसी के तेज के प्रसार का अनुभव करें। बुद्धि के द्वारा हम प्रभु की कृतियों को देख, उसके यश को जानें और योग द्वारा उस ज्ञान के स्रोत को प्रवाहित कर सकें जो हमें परमात्मा का दर्शन करानेवाला है।

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    विषय

    उसके तीन प्रकार के तेजी का कन ।

    भावार्थ

    हे ( अग्ने )अग्ने ! राजन् ! ( ते ) तेरे (त्रेधा ) तीन प्रकार के ( धाम ) धाम, तेज को हम ( विद्म ) जाने । और ( पुरुत्रा ) समस्त प्रजाओं के पालने में समर्थ (त्रयाणि ) तीनों (विभृता) विविधरूपों से धारण किये हुए ( धाम ) धारण सामर्थ्यों और बलों को भी ( विद्य) जानें। और ( ते ) तेरा ( गुहा यत् ) गुहा में, विद्वानों के हृदय में या वाणी में छिपे या विख्यात तेरे ( नाम ) नाम, नमनकारी बल को या विख्याति को ( विद्य) जानें और तू ( यतः ) जहां से, जिस स्थान से ( आजगन्ध ) आता या प्रकट होता है हम ( तम् ) उस ( उत्सम् ) बल आदि के निकास को भी ( बिन) जानें || शत० ६ । ७ । ४ । ४॥ 'त्रेधा धाम' – अग्नि, विद्युत और सूर्य। 'त्रयाणि धामानि भवन्ति स्थानानि नामानि जन्मानि । अथवा आहवनीय गार्हपत्यदक्षिणाग्न्यादीनि ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अग्निर्देवता । निचृदार्षी त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    राजा व प्रजा यांना राजनीतीची कामे, सर्व स्थाने व सर्व पदार्थ माहीत असावेत. जसे विहिरीतून पाणी काढून शेताला पाणीपुरवठा केला जातो तसेच धन इत्यादींनी प्रजेने राजाला व राजाने प्रजेला संतुष्ट करावे.

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    विषय

    पुढील मंत्रात तोच विषय सांगितला आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (अग्ने) विद्वान (सभाध्यक्ष राजा), (ते) तुमचे जे (त्रेधा) तीन प्रकारे (त्रयाणि) तीन कर्म (रक्षण, पालन, शासन) आहेत, त्यांना आम्ही (प्रजाजनांनी) (विघ्न) जाणून घ्यावे ( शासकीय नियमांची माहिती घ्यावी) हे सर्व स्थानांचे स्वामी, (ते) तुमचे (विभृत) विशेषण धारण करण्यास योग्य (आठवणीत ठेवण्यास आवश्‍यक) (पुरुत्रा) अनेक लोकांचे (धाम) नाम, जन्म व स्थान म्हणजे लक्षात ठेवण्याचे जे गुण आहे त्यांना आम्ही (वि--) जाणावे. वा तुम्ही जाणा. (ते) तुमचे (यत्‌) जे (गुहा) बुद्धीत स्थित गुप्त (परमम्‌) श्रेठ (नाम) आहे, त्याला आम्ही जाणावे आणि (यत:) ज्या ज्या साधनांनी वा कारणांनी आपणास आम्ही प्राप्त करू शकू (तम्‌) त्या त्या साधनांची वा उपायांची आम्हाला (वि--) जाणीव असावी. (उत्सम्‌) विहिरीचे पाणी तहानलेल्याची तहान भागविते, त्याप्रमाणे तुम्ही आम्हांस संतुष्ट करावे (तुमचे नाम, जन्म व स्थान याची माहिती प्रजाजनांस असावी अथवा तुम्हांला प्रजाजनांचे नाव, गाव काम आदीचे ज्ञान असावे) ॥19॥

    भावार्थ

    भावार्थ - राजपुरुष आणि राजा यांच्याकरिता आवश्‍यक आहे की त्यांनी राजनीती व शासन कार्यातील संबंधित सर्व कार्य स्थान आणि वस्तूंच्या नावाची माहिती ठेवावी. ज्याप्रमाणे लोक विहिरीतून पाणी उपसून शेत आदींना संतृप्त करतात, तसेच धन आदी पदार्थांद्वारे प्रजेने राजाला आणि राजाने प्रजेला संतुष्ट ठेवावे ॥19॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O learned person, may we know thy three duties in three stages. May we know thy name, parentage and birth place, worthy of acceptance. May we know what peculiar name supreme thou hast hidden in intellect. In order to approach thee well, may we know thee as our assuager like the well.

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    Meaning

    Agni, light, energy and power of the world, let us know the three orders of the three powers of yours (heat, light and electricity). Lord of majesty, love and favourite of all, let us explore and know the various forms and places where you exist, which you support and which support you. Let us know that supreme name and the thing you are in the essence which is hidden in a mysterious cave. Let us discover the spring, the water and the cloud from where you issue forth in formal existence (so that we may be blest with the power and prosperity which follows the discovery and the applications).

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    Translation

    O fire divine, we know your three forms divided in three places. We know your forms maintained in various stations. We know your name which is supreme and most secret. We know even the source from which you have sprung. (1)

    Notes

    Tredha trayani, three existing in three places; Agni, Vayu and Aditya, or Aditya, Agni and Vadavinala. Guha, गोपनीयं गुहायां गुप्तं, secret. Ajagantha, आगतवान् असि, you have come.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (অগ্নে) বিদ্বান্ পুরুষ ! (তে) আপনার যে (ত্রেধা) তিন প্রকারের (ত্রয়াণি) তিন কর্ম তাহা আমরা (বিম) জানিব । হে স্থানপতি । (তে) আপনার যে (বিভৃত) বিশেষ করিয়া ধারণ করিবার যোগ্য (পুরুত্রা) বহু (ধাম) নাম, জন্ম ও স্থানরূপ, তাহাকে আমরা (বিদ্ম) জানিব । হে বিদ্বান্ পুরুষ ! (তে) আপনার (য়ৎ) যে বুদ্ধিতে স্থিত গুপ্ত (পরমম্) শ্রেষ্ঠ (নাম) নাম তাহাকে আমরা (বিদ্ম) জানিব (য়তঃ) যে কারণে আপনি (আজগন্থ) সম্যকরূপে প্রাপ্ত হইবেন (তম্) সেই (উৎসম) কূপ জল সদৃশ আর্দ্রীকারক (বিদ্ম) আপনাকে আমরা জানিব ॥ ১ঌ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- প্রজাপুরুষ ও রাজার উচিত যে, রাজনীতির কার্য্য সর্ব স্থান এবং সর্ব পদার্থের নাম জানিবেন । যেমন কৃষক কুয়াঁ হইতে জল বাহির করিয়া ক্ষেত্রাদিকে তৃপ্ত করে সেইরূপ ধনাদি পদার্থ দ্বারা প্রজা রাজাকে এবং রাজা প্রজাদিগকে তৃপ্ত করিবেন ।

    मन्त्र (बांग्ला)

    বি॒দ্মা তে॑ऽঅগ্নে ত্রে॒ধা ত্র॒য়াণি॑ বি॒দ্মা তে॒ ধাম॒ বিভৃ॑তা পুরু॒ত্রা ।
    বি॒দ্মা তে॒ নাম॑ পর॒মং গুহা॒ য়দ্বি॒দ্মা তমুৎসং॒ য়ত॑ऽআজ॒গন্থ॑ ॥ ১ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    বিদ্মা ত ইত্যস্য বৎসপ্রীর্ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । নিচৃদার্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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