Loading...
यजुर्वेद अध्याय - 12

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 45
    ऋषिः - सोमाहुतिर्ऋषिः देवता - पितरो देवताः छन्दः - निचृदार्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    134

    अपे॑त॒ वीत॒ वि च॑ सर्प॒तातो॒ येऽत्र॒ स्थ पु॑रा॒णा ये च॒ नूत॑नाः। अदा॑द्य॒मोऽव॒सानं॑ पृथि॒व्याऽअक्र॑न्नि॒मं पि॒तरो॑ लो॒कम॑स्मै॥४५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अप॑। इ॒त॒। वि। इ॒त॒। वि। च॒। स॒र्प॒त॒। अतः॑। ये। अत्र॑। स्थ। पु॒रा॒णाः। ये। च॒। नूत॑नाः। अदा॑त्। य॒मः। अ॒व॒सान॒मित्य॑व॒ऽसान॑म्। पृ॒थि॒व्याः। अक्र॑न्। इ॒मम्। पि॒तरः॑। लो॒कम्। अ॒स्मै॒ ॥४५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपेत वीत वि च सर्पतातो ये त्र स्थ पुराणा ये च नूतनाः । अदाद्यमो वसानम्पृथिव्या अक्रन्निमम्पितरो लोकमस्मै ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अप। इत। वि। इत। वि। च। सर्पत। अतः। ये। अत्र। स्थ। पुराणाः। ये। च। नूतनाः। अदात्। यमः। अवसानमित्यवऽसानम्। पृथिव्याः। अक्रन्। इमम्। पितरः। लोकम्। अस्मै॥४५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 45
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ जन्यजनकाः किं किं कर्माचरेयुरित्याह॥

    अन्वयः

    हे विद्वांसः येऽत्र पृथिव्या मध्ये पुराणा ये च नूतनाः पितरः स्थ, तेऽस्मै इमं लोकमक्रन्। यान् युष्मान् यमोऽवसानमदात्, ते यूयमतोऽधर्मादपेत धर्म्मं वीतात्रैव च विसर्पत॥४५॥

    पदार्थः

    (अप) (इत) त्यजत (वि) (इत) विविधतया प्राप्नुत (वि) (च) (सर्पत) गच्छत (अतः) कारणात् (ये) (अत्र) अस्मिन् समये (स्थ) भवथ (पुराणाः) प्रागधीतविद्याः (ये) (च) (नूतनाः) संप्रतिगृहीतविद्याः (अदात्) दद्यात् (यमः) उपरतः परीक्षकः (अवसानम्) अवकाशमधिकारं वा (पृथिव्याः) भूमेर्मध्ये वर्त्तमानाः (अक्रन्) कुर्वन्तु (इमम्) प्रत्यक्षम् (पितरः) जनका अध्यापका उपदेशकाः परीक्षका वा (लोकम्) आर्षं दर्शनम् (अस्मै) सत्यसंकल्पाय। [अयं मन्त्रः शत॰७.१.१.१ व्याख्यातः]॥४५॥

    भावार्थः

    अयमेव मातापित्राचार्याणां परमो धर्मोऽस्ति यत्सन्तानेभ्यो विद्यासुशिक्षाप्राप्तिकारणं येऽधर्मान्मुक्ता धर्मेण युक्ताः परोपकारप्रिया वृद्धा युवानश्च विद्वांसः सन्ति, ते सततं सत्योपदेशेनाविद्यां निवर्त्य विद्यां जनयित्वा कृतकृत्या भवन्तु॥४५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    सन्तान और पिता-माता परस्पर किन-किन कर्मों का आचरण करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे विद्वान् लोगो! जो (ये) जो (अत्र) इस समय (पृथिव्याः) भूमि के बीच वर्त्तमान (पुराणाः) प्रथम विद्या पढ़ चुके (च) और (ये) जो (नूतनाः) वर्त्तमान समय में विद्याभ्यास करने हारे (पितरः) पिता=पढ़ाने, उपदेश करने और परीक्षा करने वाले (स्थ) होवें, वे (अस्मै) इस सत्यसंकल्पी मनुष्य के लिये (इमम्) इस (लोकम्) वैदिक ज्ञान सिद्ध लोक को (अक्रन्) सिद्ध करें। जिन तुम लोगों को (यमः) प्राप्त हुआ परीक्षक पुरुष (अवसानम्) अवकाश वा अधिकार को (अदात्) देवे, वे तुम लोग (अतः) इस अधर्म से (अपेत) पृथक् रहो और धर्म्म को (वीत) विशेष कर प्राप्त होओ (अत्र) और इसी में (विसर्पत) विशेषता से गमन करो॥४५॥

    भावार्थ

    माता-पिता और आचार्य्य का यही परम धर्म है-जो सन्तानों के लिये विद्या और अच्छी शिक्षा को प्राप्त कराना। जो अधर्म से पृथक् और धर्म्म से युक्त परोपकार में प्रीति रखने वाले वृद्ध और जवान विद्वान् लोग हैं, वे निरन्तर सत्य उपदेश से अविद्या का निवारण और विद्या की प्रवृत्ति करके कृतकृत्य होवें॥४५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वासना-विनाश

    पदार्थ

    १. गत मन्त्र की समाप्ति ‘सत्याः सन्तु........कामाः’ पर थी। हमारी इच्छाएँ सत्य हों, असत्य न हों। उसी के स्पष्टीकरण से प्रस्तुत मन्त्र प्रारम्भ होता है। यहाँ मन्त्र का ऋषि ‘सोमाहुति’ मन में उत्पन्न होनेवाली अशुभ इच्छाओं व वासनाओं से कहता है कि ( ये ) = जो भी ( अत्र ) = यहाँ—मेरे हृदय में ( पुराणाः ) = देर से चली आ रही अशुभ इच्छाएँ हैं ( च ) = और ( ये ) = जो ( नूतनाःस्थ ) = नवीन वासनाएँ हैं वे सब ( अतः अप इत ) = यहाँ से दूर चली जाओ। ( च ) = और ( वि+इत ) = विविध दिशाओं में भाग जाओ। ( विसर्पत ) = इधर-उधर विकीर्ण हो जाओ। २. ( यमः ) = जीवन को नियम में रखनेवाला व्यक्ति ( पृथिव्याः ) = शरीर से ( अवसानम् ) = वासनाओं की समाप्ति को ( अदात् ) = दे, अर्थात् नियमित जीवन के द्वारा इन वासनाओं का अन्त कर दे। वासनाओं को समाप्त करने का प्रकार यही है कि हम अपने जीवन की क्रियाओं को बड़ा नियमित कर लें। यह नियमित जीवन ही संयम को सिद्ध करेगा। ३. ( पितरः ) = ज्ञान देनेवाले लोग ( अस्मै ) = इस संयमी पुरुष के लिए ( इमं लोकं अक्रन् ) = इस लोक को करते हैं। यह संसार संयमी पुरुष के लिए है, वही इसका आनन्द उठा सकता है। असंयमी पुरुष को तो यह संसार खा जाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ — हम जीवन से वासनाओं को दूर भगा दें। नियमित जीवन से ही वासना दूर होती है। यह संसार संयमी पुरुष के लिए ही सुखद है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    चरों और प्रणिधियों का नियोजन पक्षान्तर में विद्वानों को संदेश।

    भावार्थ

    हे ( पितरः ) राष्ट्र के पालक पुरुषो ! आप लोगों में से (अत्र ) इस राज्यपालन के कार्य में ( ये पुराणा: ) जो पुराने, पहले से नियुक्त और ( ये च ) जो ( नूतनाः ) नये नियुक्त हैं । वे ( अप इत ) दूर २ देशों में भी जायें. ( वि इत) विविध देशों में भ्रमण करें, (वि सर्पत ) विविध उपायों से सर्वत्र सर्पण कर गुप्त दूतों का भी काम करें। ( यमः ) सर्वनियन्ता राजा ( पृथिव्या ) पृथिवी में ( अवसानम् ) तुम लोगों को अधिकार और स्थान ( अदात् ) प्रदान करता है । और ( पितरः ) राज्य के पालक लोग (अस्मै ) इस राजा के लिये ( इमं लोकम् ) इस भूलोक को ( अक्रन् ) वश करते हैं। शिक्षा-पक्ष में- ( ये पुराणा ये च नूतना: ) जो पुराने वृद्ध और नये ( पितरः ) पिता लोग हैं वे ( अपेत ) अधर्म से परे रहें । ( वि इत ) धर्म का पालन करें ( अत्र वि सर्पत च ) यहां ही विचरण करें। ( यमः ) नियामक आचार्य ( पृथिव्या अवसानं अदात् ) पृथिवी में तुमको अधिकार पद दे, आप लोग इसके लिये इस सत्य संकल्पवान् पुरुष के लिये ( इम लोकम् चक्रन् ) इस आत्मा का ज्ञान लाभ करावें ॥ शत० ७ । १। १ । २-४ ॥

    टिप्पणी

    अथ गार्हपत्य चयनम् ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    लिंगोक्ताः पितरो देवता: । निचृदार्षी त्रिष्टुप् । धैवतः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (2)

    भावार्थ

    माता-पिता व आचार्य यांचा खरा धर्म हाच आहे, की संतानांना विद्या व चांगले शिक्षण द्यावे. अधर्मापासून दूर असणाऱ्या व परोपकाराची आवड असणाऱ्या तरुण व वृद्ध विद्वान लोकांनी सदैव सत्याचा उपदेश करावा व अविद्या नष्ट करून विद्या प्राप्त करण्याकडे कल ठेवावा आणि कृतकृत्य व्हावे.

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    संतान, माता, पिता, या सर्वांनी आपसात कोणते कर्म वा व्यवहार करावेत, याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे विद्वज्जन हो, (ये) जे (अत्र) याकाळी (पृथिव्या:) भूमीवर विद्यमान (पुराणा:) पुरातन (जुने व अनुभवी अध्यापक वा उपदेशक आहेत) (च) आणि (ये) जे (नूतना:) वर्तमानकाळी विद्याभ्यास करणारे (संशोधक व जिज्ञासू) (पितर:) म्हणजे पिता, अध्ययन-अध्यापन करणारे, उपदेशक आणि परीक्षक (स्थ) आहेत, (ते) त्यांनी (अस्मै) या सत्यसंकल्पी मनुष्यासाठी (इमम्‌) या (लोकम्‌) वैदिकज्ञान रुपी लोकाला (अक्रन्‌) मुक्त करावे (या जिज्ञासू मुनुष्यास वैदिक ज्ञान शिकावे) तसेच ते उपदेशक आणि (यम:) परीक्षक (अवसानम्‌) तुम्हांस ते ज्ञान शिकण्याचा अधिकार (अदात्‌) देवो. तुम्ही (अत:) अधर्माचरणापासून (अयेत) दूर रहा आणि धर्माचा (वीत) विशेषरुपेण स्वीकार करा तसेच याच (अध्ययन श्रवण, ज्ञानग्रहण रुप मार्गावर) विसर्पत) विशेषरुपेण चालत रहा ॥45॥

    भावार्थ

    भावार्थ - आई-वडीलांचा हाच परम धर्म आहे की त्यांनी आपल्या संतानास उत्तम विद्या व सुशिक्षा द्यावी वा देण्याची व्यवस्था करावी जे अधर्मापासून दूर असून धर्माशी संयुक्त आहेत, तसेच परोपकार-कार्यात रुची असणारे वृद्ध वा तरूण लोक आहेत, त्यांनी नित्य सत्योपदेशाद्वारे अविद्येचे निवारण आणि विद्येची वृद्धी करावी आणि या मार्गाने कृतकृत्थ व्हावे ॥45॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O learned persons, may all the aged and young scholars living at present in the world acting as teachers and preachers impart spiritual knowledge to this disciple filled with noble resolves. May thy teacher grant thee a dignified position. Shun unrighteousness, and follow Dharma, and stick to it particularly.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    The teachers who are old and those who are new and the parents and other seniors who are here on the earth, all should realise and actualise for young aspirants the knowledge of this world. The judge of the aspirants’ performance may grant them the certificate of completion and graduation in achievement. Hence keep away from Adharma (injustice and untruth), go on firmly with Dharma (truth and justice), and realise it without delay here and now.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Go away, depart and move off from this place, old and new, whosoever have been here. The ordainer Lord has provided shelter on the earth to this sacrificer and the elders have provided this world for him. (1)

    Notes

    These are the formulas for the construction of a hearth for the Garhapatya agni, i. e. the fire place of the householder's fire, which is different from the Ahavaniya agni. The Adhvaryu sweeps the ground where the fire place is to be constructed with а branch of palása tree. He sweeps each side reciting the verse beginning with the east. According to Sáyana, this mantra, which is a part of the Antyesti sükta, is addressed to the pisdcas and other evil spirits that haunt the place of cremation (serm). Асcording to Mahidhara, the verse 15 addressed to the executives of Yama, the paramount Lord of whole of the ground. (Griffith). Avasünam, स्थानम्, place, shelter.

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (1)

    विषय

    অথ জন্যজনকাঃ কিং কিং কর্মাচরেয়ুরিত্যাহ ॥
    সন্তান ও পিতা-মাতা পরস্পর কী কী কর্মের আচরণ করিবে এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে বিদ্বান্গণ ! (য়ে) যাহারা (অত্র) এই সময় (পৃথিব্যাঃ) ভূমি মধ্যে বর্ত্তমান (পুরাণাঃ) প্রথম বিদ্যা পড়িয়াছেন (চ) এবং (য়ে) যাহারা (নূতনাঃ) বর্ত্তমান সময়ে বিদ্যাভ্যাসকারী (পিতরঃ) পিতা, পাঠকারী, উপদেশকারী এবং পরীক্ষাকারী (স্থ) হইবেন (তে) ইহারা (য়স্মৈ) এই সত্যসংকল্পী মনুষ্য হেতু (ইমম্) এই (লোকম্) বৈদিক জ্ঞানসিদ্ধ সংসারকে (অক্রন্) সিদ্ধ করুক । যে সব তোমাদিগের (য়মঃ) প্রাপ্ত পরীক্ষক পুরুষ (অবসানম্) অবকাশ বা অধিকারকে (অদাৎ) প্রদান করুক সেই তোমরা (অতঃ) এই অধর্ম হইতে (অপেত) পৃথক থাক এবং ধর্ম্মকে (ধীত) বিশেষ করিয়া প্রাপ্ত হও (অত্র) এবং ইহাতে (বিসর্পত) বিশেষতাপূর্বক গমন কর ॥ ৪৫ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- মাতা-পিতা ও আচার্য্যের এই পরম ধর্ম যে, সন্তানদিগের জন্য বিদ্যা ও সুশিক্ষা প্রদান করান । যাহারা অধর্ম হইতে পৃথক এবং ধর্ম্মের সহিত যুক্ত, পরোপকারে প্রীতি রক্ষাকারী বৃদ্ধ ও যুব বিদ্বান্গণ তাহারা নিরন্তর সত্য উপদেশ দ্বারা অবিদ্যা নিবারণ এবং বিদ্যার প্রবৃত্তি করিয়া কৃতকৃত্য হউন ॥ ৪৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অপে॑ত॒ বী᳖ত॒ বি চ॑ সর্প॒তাতো॒ য়েऽত্র॒ স্থ পু॑রা॒ণা য়ে চ॒ নূত॑নাঃ ।
    অদা॑দ্য॒মো᳖ऽব॒সানং॑ পৃথি॒ব্যাऽঅত্র॑ôন্নি॒মং পি॒তরো॑ লো॒কম॑স্মৈ ॥ ৪৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অপেতেত্যস্য সোমাহুতির্ঋষিঃ । পিতরো দেবতাঃ । নিচৃদার্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ । ধৈবতঃ স্বর ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top