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यजुर्वेद अध्याय - 12

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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 69
    ऋषिः - कुमारहारित ऋषिः देवता - कृषीवला देवताः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    61

    शु॒नꣳ सु फाला॒ वि कृ॑षन्तु॒ भूमि॑ꣳ शु॒नं की॒नाशा॑ऽअ॒भि य॑न्तु वा॒हैः। शुना॑सीरा ह॒विषा॒ तोश॑माना सुपिप्प॒लाऽओष॑धीः कर्त्तना॒स्मे॥६९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शु॒नम्। सु। फालाः॑। वि। कृ॒ष॒न्तु। भूमि॑म्। शु॒नम्। की॒नाशाः॑। अ॒भि। य॒न्तु॒। वा॒हैः। शुना॑सीरा। ह॒विषा॑। तोश॑माना। सु॒पि॒प्प॒ला इति॑ सुऽपि॒प्प॒लाः। ओष॑धीः। क॒र्त्त॒न॒। अ॒स्मेऽइत्य॒स्मे ॥६९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शुनँ सुफाला विङ्कृषन्तु भूमिँ शुनङ्कीनाशाऽअभिऽयन्तु वाहैः । शुनासीरा हविषा तोशमाना सुपिप्पलाऽओषधीः कर्तनास्मे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    शुनम्। सु। फालाः। वि। कृषन्तु। भूमिम्। शुनम्। कीनाशाः। अभि। यन्तु। वाहैः। शुनासीरा। हविषा। तोशमाना। सुपिप्पला इति सुऽपिप्पलाः। ओषधीः। कर्त्तन। अस्मेऽइत्यस्मे॥६९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 69
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    ये कीनाशास्ते फाला वाहैः सह वर्त्तमानैर्हलादिभिर्भूमिं विकृषन्तु, शुनमभियन्तु। हविषा तोशमाना शुनासीरेवास्मे सुपिप्पला ओषधीः कर्त्तन। ताभिः सु शुनं च॥६९॥

    पदार्थः

    (शुनम्) सुखम्। शुनमिति सुखनामसु पठितम्॥ (निघं॰३.६) (सु) (फालाः) फलन्ति विस्तीर्णां भूमिं कुर्वन्ति यैस्ते (वि) (कृषन्तु) विलिखन्तु (भूमिम्) (शुनम्) सुखम् (कीनाशाः) ये श्रमेण क्लिश्यन्ति ते कृषीवलाः, अत्र क्लिशेरीच्चोपधायाः कन् लोपश्च लो नाम् च॥ (उणा॰५.५६) इति क्लिशधातोः कनि प्रत्यये लो लोप उपधाया ईत्वं धातोर्नामागमश्च (अभि) (यन्तु) प्राप्नुवन्तु (वाहैः) वहन्ति यैस्तैर्वृषभादिवाहनैः (शुनासीरा) यथा वायुसूर्यो। शुनासीरौ शुनो वायुः सरत्यन्तरिक्षे सीर आदित्यः सरणात्॥ (निरु॰९.४०) (हविषा) संस्कृतेन घृतादिना संस्कृतौ (तोशमाना) सन्तुष्टिकरौ, अत्र वर्णव्यत्ययेन शः, विकरणात्मनेपदव्यत्ययौ च (सुपिप्पलाः) शोभनानि पिप्पलानि फलानि यासु ताः (ओषधीः) यवादीन् (कर्त्तन) कुर्वन्तु (अस्मे) अस्मभ्यम्। [अयं मन्त्रः शत॰७.२.२.९ व्याख्यातः]॥६९॥

    भावार्थः

    ये चतुराः कृषिकारा गोवृषभादीन् संरक्ष्य विचारेण कृषिं कुर्वन्ति, तेऽत्यन्तं सुखं लभन्ते। नात्र क्षेत्रेऽमेध्यं किंचित् प्रक्षेप्यम्। किन्तु बीजान्यपि सुगन्ध्यादियुक्तानि कृत्वैव वपन्तु, यतोऽन्नान्यारोग्यकराणि भूत्वा बलबुद्धी वर्धयेयुः॥६९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    जो (कीनाशाः) परिश्रम से क्लेशभोक्ता खेती करने हारे हैं, वे (फालाः) जिनसे पृथिवी को जोतें, उन फालों से (वाहैः) बैल आदि के साथ वर्त्तमान हल आदि से (भूमिम्) पृथिवी को (विकृषन्तु) जोतें और (शुनम्) सुख को (अभियन्तु) प्राप्त होवें। (हविषा) शुद्ध किये घी आदि से शुद्ध (तोशमाना) सन्तोषकारक (शुनासीरा) वायु और सूर्य्य के समान खेती के साधन (अस्मे) हमारे लिये (सुपिप्पलाः) सुन्दर फलों से युक्त (ओषधीः) जौ आदि (कर्त्तन) करें और उन ओषधियों से (सु) सुन्दर (शुनम्) सुख भोगें॥६९॥

    भावार्थ

    जो चतुर खेती करने हारे गौ और बैल आदि की रक्षा करके विचार के साथ खेती करते हैं, वे अत्यन्त सुख को प्राप्त होते हैं। इन खेतों में विष्ठा आदि मलीन पदार्थ नहीं डालने चाहिये, किन्तु बीज भी सुगन्धि आदि से युक्त करके ही बोवें कि जिससे अन्न भी रोगरहित उत्पन्न होकर मनुष्यादि के बल और बुद्धि को बढ़ावें॥६९॥

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    विषय

    कृषि का उपदेश ।

    भावार्थ

    (सुफालाः) उत्तम हल के नीचे लगी लोहे की बनी फालियें ( भूमिम् ) भूमि को ( शुनम् ) सुख से ( विकृषन्तु ) नाना प्रकार से बाहें । ( कीनाशाः ) किसान लोग ( वाहैः ) बैलों से ( शुनम् ) सुख- पूर्वक (अभियन्तु जावें । हे (शुनासीरा) वायु और आदित्य तुम दोनों ( हविषा ) जल और अन्न से ( तोशमानौ ) भूमि को सींचते हुए (अस्मै) इस प्रजाजन के लिये ( ओषधीः ) अन्न आदि औषधियों को (सुपिप्पलाः ) उत्तम फल युक्त ( कर्तन ) करो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कुमार हारीत ऋषिः। सीता कृषीवला वा देवताः । त्रिष्टुप् ।धैवतः ॥

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    विषय

    सुपिप्पला - ओषधी

    पदार्थ

    १. ये मन्त्र ‘कुमारहारित' ऋषि के हैं। सीता - लाङ्गलपद्धति = हल चलाने से बनी रेखा इन मन्त्रों की देवता है। 'कुमार क्रीडायाम्' धातु से बना कुमार शब्द संकेत कर रहा है कि इस व्यक्ति ने कृषि को ही अपनी क्रीड़ा बना लिया है। यह पढ़ता लिखता है और फिर अपने मस्तिष्क को आराम देने [relaxation] के लिए खेती में लग जाता है। यह अपने हल इत्यादि को बड़ा ठीक बनाये रखता है और चाहता है कि- २. (सुफाला:) = हल के अग्र भाग में स्थित उत्तम फाल से (भूमिम्) = भूमि को (शुनम्) = आराम से (विकृषन्तु) = खोदें। भूमि बहुत कठोर न हो, कठोर भी हो तो फाल तेज़ हो जो भूमि को आराम से खोदता चले । (कीनाशाः) = [ श्रमेण क्लिश्यन्ति ] श्रम से अपने शरीर को थकानेवाले कृषक लोग (वाहैः) = बैलों के साथ (शुनम्) = सुख से अभियन्तु खेत में चारों ओर चलें। हल को खेंचना तो बैलों ने ही है, परन्तु कृषक भी अपना पूरा योग दे। वह बैलों के उत्साह वर्धन का कारण बने । ३. (शुनासीरा) = [ शुनो वायुः शीर आदित्यः - नि० ९।४०] वायु और सूर्य (हविषा) = हवि के द्वारा - यज्ञ में डाली गई घृत आदि की आहुतियों द्वारा (तोशमाना) = [ तोशतिर्वधकर्मा] रोगकृमियों-कृषिविनाशक कृमियों का नाश करते हुए (अस्मे) = हमारे लिए (सुपिप्पलाः) = उत्तम फलवाली (ओषधी:) = ओषधियों को (कर्त्तन) = करें। वस्तुतः कृषि की उत्तमता के लिए अग्निहोत्र का महत्त्व दो कारणों से है [क] कृमि नष्ट होकर वायु शुद्ध होती है और [ख] वर्षा उचित समय पर होती है। वायु का उपयोग मुख्यरूप से यह है कि इसकी नत्रजन [नाइट्रोजन] भूमि का खाद बनती है। सूर्य का महत्त्व यह है कि यह भूमि में उत्पादक शक्ति को बढ़ाता है। मिट्टी के जो. कण सूर्यसम्पर्क में आते हैं वे अधिक उत्पादक तत्त्व को वायु से आकृष्ट कर पाते हैं। एवं, कृषि में अग्निहोत्र में दी गई हवि तथा वायु और सूर्य का भाग है।

    भावार्थ

    भावार्थ- हमारे हल सुफाल हों। हम बैलों का उत्साह वर्धन करें। अग्निहोत्र में उत्तम हवि दें। ये हवि तथा वायु और सूर्य हमारी कृषि को उत्तम फलवाला करें।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जे चतुर शेतकरी गाय व बैल इत्यादींचे रक्षण करून विचारपूर्वक शेती करतात ते अत्यंत सुखी होतात. शेतामध्ये विष्ठा इत्यादी मलीन पदार्थ टाकू नयेत, तर सुगंधीयुक्त बीज पेरावे. ज्यामुळे धान्य रोगरहित शुद्ध रूपाने उत्पन्न होऊन मनुष्याची बुद्धी वाढते.

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    विषय

    पुनश्‍च पुढील मंत्रात तोच विषय (कृषी) प्रतिपादित आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (सामाजिक सर्व लोक कृषीसंबंधी प्रार्थना करीत आहेत) (कीनाशा:) कष्टकरी कृषकांनी (फाला:) नांगर, फाळ आदी साधनांद्वारे शेतजमीन नागरावी (वाहै:) ब्रन आणि कृषिकर्म करण्यास योग्य अशा बैलांच्या सहाय्याने नांगर, पाळी देणे आदी क्रिया करून (भूमिम्‌) या भूमीला (विकृषन्तु) मिळवावे. तसेच कामना की) हा वषा) शुद्ध तूप आदी पदार्थांद्वारे शुद्ध केलेली आणि (तोरामाना) सुखकारक अशी कृषिसाधने (बी, औषधी आदी) (शुभासीरा) वायू आणि सूर्याप्रमाणे (अस्मे) आम्हां सर्वांसाठी सुखदायक व्हावी. तसेच शेतकऱ्यांनी (सुपिकला:) सुंदर फळे देणारी (औषधी:) वृक्ष, वनस्पती आदींची लागवड (कर्तन) करावी व त्या फळ, औषधींद्वारे (सु) सुखी, नीरोगी व्हावे आणि आम्हांसही (शुनम्‌) सुखी करावे (शेतकरीबंधूकडून सर्व जणांची अशी अपेक्षा व कामना आहे) ॥69॥

    भावार्थ

    भावार्थ - कृषककर्मात कुशल असलेले जे लोक गाय, बैल आदी पशूंचे पालन-रक्षण करून विचारपूर्वक शेती करतात, ते अत्याधिक सुखी होतात शेतामध्ये विष्ठा आदी मलीन पदार्थ टाकूं नये. त्यापेक्षा शेतात उत्तरां सुगंधित पदार्थांनी युक्त असे बी-बियाणे पेरावेत. त्यामुळे शेतीत रोगरहित धान्याची उत्पत्ती होईल आणि त्याच्या सेवनाने मनुष्यांची बळ-बुद्धी वाढेल. ॥69॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Happily let the ploughshares turn up the plough land, happily go the hard-working ploughers with the oxen. O air and sun, nourishing the earth with water, cause ye our plants bear abundant fruit.

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    Meaning

    Let the plough-shares turn the soil well. Let the farmers merrily follow the bullocks while they till the land and sow the seeds. May the sun and the air supplemented by the oblations of rich materials bless the herbs and plants with delicious fruit and nourishing grain.

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    Translation

    May ploughs with fine shares turn up the farmland with ease; may the ploughmen go along with the bullocks; may the sun and the wind, pleased with our offerings, make plants bear good fruit for us. (1)

    Notes

    Sunam, शुनं इति सुखानां सुखं यथा स्यात् तथा , in the manner which may bring joy; with ease; pleasingly. Kinasah, हलिन:, ploughmen. Hindi word किसान (Kisána) is derived from this Vedic word by transposition of consonants. Sunaairau शुनो वायु सीर आदित्य: । शुनो वायु: सरत्यंतरिक्षे सीर आदित्य: सरणात् (Nirukta. LX. 40), Suna ia vayu as it moves in s mid-space, and sia is the sun, as it crawls (in the sky). Osadhih, plants of wheat, barley, paddy etc. ; crops. Аll the plants, that die with the ripening of their fruit are called osadhi. Supippala, पिप्प्लं फलम्, having good fruit.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনরায় একই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- যে সব (কীনাশাঃ) পরিশ্রমপূর্বক ক্লেশভোক্তা কৃষকরা (ফালাঃ) যাহাদের দ্বারা ভূমি চাষ করে সেই সব ফাল দ্বারা (বাহৈঃ) বলদাদি সহ বর্ত্তমান হলাদি দ্বারা (ভূমিম্) ভূমি (বিকৃষন্তু) চাষ করুক এবং (শুনম্) সুখ (অভিয়ন্তু) প্রাপ্ত করুক । (হবিষা) শুদ্ধ কৃত ঘৃতাদি দ্বারা শুদ্ধ (তোশমানা) সন্তোষ জনক (শুনাসীরা) বায়ু ও সূর্য্যের সমান কৃষির সাধন (অস্মৈ) আমাদের জন্য (সুপিপ্পলাঃ) সুন্দর ফলযুক্ত (ওষধীঃ) যবাদি (কর্ত্তন) কর্ত্তন করুক এবং সেই সব ওষধিগুলি দ্বারা (সু) সুন্দর (শুনম্) সুখ ভোগ করুক ॥ ৬ঌ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যে সব চতুর কৃষকগণ গাভি, বলদাদির রক্ষা করিয়া বিচারপূর্বক কৃষি করে তাহারা অত্যন্ত সুখ প্রাপ্ত হইয়া থাকে । এই সব জমিতে বিষ্ঠাদি মলিন পদার্থ নিক্ষেপ করা উচিত নহে । কিন্তু বীজও সুগন্ধী আদি দ্বারা যুক্ত করিয়াই বপন করিবে যাহাতে অন্নও রোগরহিত উৎপন্ন হইয়া মনুষ্যাদির বল ও বুদ্ধিকে বৃদ্ধি করে ॥ ৬ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    শু॒নꣳ সু ফালা॒ বি কৃ॑ষন্তু॒ ভূমি॑ꣳ শু॒নং কী॒নাশা॑ऽঅ॒ভি য়॑ন্তু বা॒হৈঃ ।
    শুনা॑সীরা হ॒বিষা॒ তোশ॑মানা সুপিপ্প॒লাऽওষ॑ধীঃ কর্ত্তনা॒স্মে ॥ ৬ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    শুনমিত্যস্য কুমারহারিত ঋষিঃ । কৃষীবলা দেবতাঃ । ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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