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यजुर्वेद अध्याय - 12

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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 116
    ऋषिः - विरूप ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः
    107

    तुभ्यं॒ ताऽअ॑ङ्गिरस्तम॒ विश्वाः॑ सुक्षि॒तयः॒ पृथ॑क्। अग्ने॒ कामा॑य येमिरे॥११६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तुभ्य॑म्। ताः। अ॒ङ्गि॒र॒स्त॒मेत्य॑ङ्गिरःऽतम। विश्वाः॑। सु॒क्षि॒तय॒ इति॑ सुऽक्षि॒तयः॑। पृथ॑क्। अग्ने॑। कामा॑य। ये॒मि॒रे॒ ॥११६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तुभ्यन्ता अङ्गिरस्तम विश्वाः सुक्षितयः पृथक् । अग्ने कामाय येमिरे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तुभ्यम्। ताः। अङ्गिरस्तमेत्यङ्गिरःऽतम। विश्वाः। सुक्षितय इति सुऽक्षितयः। पृथक्। अग्ने। कामाय। येमिरे॥११६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 116
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ राजा किं कुर्यादित्याह॥

    अन्वयः

    हे अङ्गिरस्तमाग्ने राजन्! या विश्वाः सुक्षितयः प्रजाः पृथक् कामाय तुभ्यं येमिरे, तास्त्वं सततं रक्ष॥११६॥

    पदार्थः

    (तुभ्यम्) (ताः) (अङ्गिरस्तम) अतिशयेन सारग्राहिन् (विश्वाः) अखिलाः (सुक्षितयः) श्रेष्ठमनुष्याः प्रजाः (पृथक्) (अग्ने) प्रकाशमान राजन्! (कामाय) इच्छासिद्धये (येमिरे) प्राप्नुवन्तु। [अयं मन्त्रः शत॰७.३.२.८ व्याख्यातः]॥११६॥

    भावार्थः

    यत्र प्रजा धार्मिकं राजानं प्राप्य स्वां स्वामभिलाषां प्राप्नुवन्ति, तत्र राजा कथं न वर्द्धेत॥११६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब राजा क्या करे, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (अङ्गिरस्तम) अतिशय करके सार के ग्राहक (अग्ने) प्रकाशमान राजन्! जो (विश्वाः) सब (सुक्षितयः) श्रेष्ठ मनुष्यों वाली प्रजा (पृथक्) अलग (कामाय) इच्छा की सिद्धि के लिये (तुभ्यम्) तुम्हारे लिये (येमिरे) प्राप्त होवें, (ताः) उन प्रजाओं की आप निरन्तर रक्षा कीजिये॥११६॥

    भावार्थ

    जहां प्रजा के लोग धर्मात्मा राजा को प्राप्त हो के अपनी अपनी इच्छा पूरी करते हैं, वहां राजा की वृद्धि क्यों न होवे?॥११६॥

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    विषय

    राजा के कर्त्तव्य । पक्षान्तर में विद्वान् और गृहपति के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( अंगिरस्तम ) अति अधिक ज्ञानी या जलते अंगारों के समान तेजस्विन् ! ( ताः सुक्षितयः ) वे नाना उत्तम प्रजाएं ( पृथक् ) पृथक् २ ( कामाय तुभ्यं ) कामना करने योग्य, कान्तिमान्, तुम राजा को ( येमिरे) प्राप्त हों ॥ शत ७ । ३ । २ । ८ ॥ स्त्री-पुरुष के पक्ष मे- हे ( अंगिरस्तम ) अंग २ में रमण करनेवाले प्रियतम ( ताः विश्वाः सुक्षितयः ) वे समस्त उत्तम भूमि रूप स्त्रियां ( पृथक् ) पृथक २ ( कामाय तुभ्यम् ) काम्यस्वरूप, सुन्दर, तुझे या तुझे अपने हृदय को कामना पूर्ति के लिये ( येमिरे ) विवाहें ।अंगिरस्तम इति जात्यैकवचनम्।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विरूप ऋषिः । अग्निर्देवता । गायत्री । षड्जः ॥

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    विषय

    सुक्षितयः

    पदार्थ

    १. पिछले मन्त्र का अवत्सार प्रभु से ज्ञान प्राप्त करके विशिष्ट रूपवाला, ज्ञान- ज्योति से चमकते हुए चेहरेवाला - 'विरूप' बन जाता है। यह विरूप प्रभु की आराधना करते हुए कहता है कि हे (अङ्गिरस्तम) = अङ्ग अङ्ग में रस का सञ्चार करनेवालों में उत्तम प्रभो ! (ताः) = वे (विश्वाः) = सब (सुक्षितयः) = उत्तम निवास व गतिवाले मनुष्य (पृथक्) = संसार की इच्छाओं से अलग होकर (अग्ने तुभ्यं कामाय) = हे अग्रेणी प्रभो! आपकी ही कामना के लिए (येमिरे) = अपने जीवन को नियमित करते हैं। 'यम-नियम' से ही योग मार्ग का प्रारम्भ होता है। प्रभु के साथ मेल ' यम-नियम' के बिना सम्भव नहीं । २. जिस समय हम चित्तवृत्ति को सब विषयों में जाने से रोक लेते हैं, उसी समय हम अपने स्वरूप को देख पाते हैं और उसी समय हम परमात्म-दर्शन के अधिकारी बनते हैं। इस संसार में हम [क] 'सुक्षिति' - उत्तम निवास व उत्तम गतिवाले बनें [ख] (पृथक्) = संसार के विषयों से अपने को अलग करने के लिए प्रयत्नशील हों। [ग] प्रतिदिन प्रभु ध्यान व प्रभु- सम्पर्क द्वारा सब अङ्गों को रसमय बनाने का ध्यान रक्खें [अङ्गिरस्तम] । [घ] हममें प्रभु -प्राप्ति की प्रबल कामना हो [ तुभ्यं कामाय ] ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सज्जन लोग 'यम-नियमों' को अपनाकर प्रभु प्राप्ति के लिए अग्रसर होते हैं।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    ज्या ठिकाणी धर्मात्मा राजा असेल तेथे प्रजेची इच्छा पूर्ण होते. तेथे राजाचा उत्कर्ष का बरे होणार नाही?

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    विषय

    यानंतर पुढील मंत्रात, राजाने काय केले पाहिजे हा विषय मांडला आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (अड्गिरस्तम) (शास्त्र, अर्थ, धर्म, नीती राजनीती आदींच्या) सार अर्थात तत्त्वाला अतिशय जाणणारे (अग्ने) हे कीर्तिमान राजा, (जेव्हां जेव्हां) (विश्‍वा:) सर्व (सुक्षितय:) श्रेष्ठ प्रजाजन (पृथक्‌) वेगवेगळी कामना (वा मागणी) घेऊन (कामाय) इच्छापूर्ती करणाऱ्या अशा (तुभ्यम्‌) तुमच्याजवळ (येमिरे) येतील, तेव्हां तेव्हां (ता:) आपण त्या प्रजेच्या (इच्छा जाणून) प्रजेची रक्षा करा (कामनापूर्ती करा) ॥116॥

    भावार्थ

    भावार्थ - ज्या राष्ट्रात प्रजाजन धर्माराजाजवळ जाऊन आपल्या इच्छा पूर्ण करून घेतात, त्या राष्ट्रात राजाची प्रगती का होणार नाही! (प्रजाजनांचे समाधान यातच राष्ट्राचे परम उत्कर्ष आहे) ॥116॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O King, the foremost realiser of essence of problems, all loyal subjects turn to thee for the fulfilment of their wishes. Always protect them.

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    Meaning

    Agni, most brilliant power of the universe, the entire humanity, even though they might be very well placed in life, converge on you, each for the fulfilment of his/her own special desire. (Just as the children of the Lord creator approach Him with prayers for the fulfilment of their desires, so do the people of the land, even though well-placed in life otherwise, approach the ruler for the fulfilment of their requests. )

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    Translation

    O adorable Lord, radiant supreme, all well-accommodated people meditate on you in various ways to get their desires fulfilled. (1)

    Notes

    Yemire, नियम्यंते, are directed towards you. Anpirastama, most radiant, Kamaya, to get their desires fulfilled.

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    बंगाली (1)

    विषय

    অথ রাজা কিং কুর্য়াদিত্যাহ ॥
    এখন রাজা কী করিবে এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (অঙ্গিরস্তম্) অতিশয় করিয়া সারগ্রাহী (অগ্নে) প্রকাশমান রাজন্ ! (বিশ্বাঃ) সমস্ত (সুক্ষিতয়ঃ) শ্রেষ্ঠ মনুষ্য যুক্ত প্রজা (পৃথক) ভিন্ন (কামায়) ইচ্ছার সাধক (তুভ্যম্) আপনাদের জন্য প্রাপ্ত হউক (তাঃ) সেই সব প্রজাকে আপনি নিরন্তর রক্ষা করুন ॥ ১১৬ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যেখানে প্রজালোকেরা ধর্মাত্মা রাজা প্রাপ্ত হইয়া নিজ নিজ ইচ্ছা পূর্ণ করে সেখানে রাজার বৃদ্ধি কেন হইবে না ॥ ১১৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    তুভ্যং॒ তাऽঅ॑ঙ্গিরস্তম॒ বিশ্বাঃ॑ সুক্ষি॒তয়ঃ॒ পৃথ॑ক্ ।
    অগ্নে॒ কামা॑য় য়েমিরে ॥ ১১৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    তুভ্যং তা ইত্যস্য বিরূপ ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । গায়ত্রী ছন্দঃ ।
    ষড্জঃ স্বরঃ ॥

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