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यजुर्वेद अध्याय - 12

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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 59
    ऋषिः - मधुच्छन्दा ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - भुरिगुष्णिक् स्वरः - ऋषभः
    113

    अग्ने॒ त्वं पु॑री॒ष्यो रयि॒मान् पु॑ष्टि॒माँ२ऽअ॑सि। शि॒वाः कृ॒त्वा दिशः॒ सर्वाः॒ स्वं योनि॑मि॒हास॑दः॥५९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॒। त्वम्। पु॑री॒ष्यः᳖। र॒यि॒मानिति॑ रयि॒ऽमान्। पु॒ष्टि॒मानिति॑ पुष्टि॒ऽमान्। अ॒सि॒। शि॒वाः। कृ॒त्वा। दिशः॑। सर्वाः॑। त्वम्। योनि॑म्। इ॒ह। आ। अ॒स॒दः॒ ॥५१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने त्वं पुरीष्यो रयिमान्पुष्टिमाँ असि । शिवाः कृत्वा दिशः सर्वाः योनिमिहासदः॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने। त्वम्। पुरीष्यः। रयिमानिति रयिऽमान्। पुष्टिमानिति पुष्टिऽमान्। असि। शिवाः। कृत्वा। दिशः। सर्वाः। त्वम्। योनिम्। इह। आ। असदः॥५१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 59
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    केऽध्यापनोपदेशाय नियोजनीया इत्याह॥

    अन्वयः

    हे अग्ने! यतस्त्वमिह पुरीष्यो रयिमान् पुष्टिमानसि, तस्मात् सर्वा दिशः शिवाः कृत्वा स्वं योनिमासदः॥५९॥

    पदार्थः

    हे (अग्ने) उपदेशक विद्वन्! (त्वम्) (पुरीष्यः) ऐकमत्यपालनेषु भवः (रयिमान्) विद्याविज्ञानधनयुक्तः (पुष्टिमान्) प्रशस्तशरीरात्मबलसहितः (असि) (शिवाः) कल्याणोपदेशयुक्ताः (कृत्वा) (दिशः) उपदेष्टव्याः प्रजाः (सर्वाः) समग्राः (स्वम्) स्वकीयम् (योनिम्) सुखसाधकं दुःखविच्छेदकमुपदेशम् (इह) अस्मिन् संसारे (आ) (असदः) आस्व। [अयं मन्त्रः शत॰७.१.१.३८ व्याख्यातः]॥५९॥

    भावार्थः

    राजप्रजाजनैर्येऽत्र जितेन्द्रिया धार्मिकाः परोपकारप्रिया विद्वांसो भवेयुस्ते प्रजासु धर्मोपदेशाय नियोजनीयाः। उपदेशकाश्च प्रयत्नेन सर्वान् शिक्षयैकधर्मयुक्तान् सततमविरोधिनः सुखिनः सम्पादयेयुः॥५९॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    किनको पढ़ाने और उपदेश के लिये नियुक्त करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) उपदेशक विद्वन्! जिससे (त्वम्) आप (इह) इस संसार में (पुरीष्यः) एक मत के पालने में तत्पर (रयिमान्) विद्या विज्ञान और धन से युक्त और (पुष्टिमान्) प्रशंसित शरीर और आत्मा के बल से सहित (असि) हैं, इसलिये (सर्वाः) सब (दिशः) उपदेश के योग्य प्रजा (शिवाः) कल्याणरूपी उपदेश से युक्त (कृत्वा) करके (स्वम्) अपने (योनिम्) सुखदायक दुःखनाशक उपदेश के घर को (आसदः) प्राप्त हूजिये॥५९॥

    भावार्थ

    राजा और प्रजाजनों को चाहिये कि जो जितेन्द्रिय धर्मात्मा परोपकार में प्रीति रखने वाले विद्वान् होवें, उनको प्रजा में धर्मोपदेश के लिये नियुक्त करें और उपदेशकों को चाहिये कि प्रयत्न के साथ सबको अच्छी शिक्षा से एकधर्म में निरन्तर विरोध को छुड़ा के सुखी करें॥५९॥

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    विषय

    शिव-ही-शिव

    पदार्थ

    पिछले मन्त्र की भावना को ही विस्तार से कहते हैं— १. ( अग्ने ) = हे घर की उन्नति के साधक पुरुष! ( त्वम् ) = तू ( पुरीष्यः ) = पालन करनेवालों में उत्तम है। २. ( रयिमान् ) = धनवाला है। बिना धन के यह पालन कैसे कर सकेगा ? ३. ( पुष्टिमान् असि ) = तू पुष्टिवाला है। स्वयं निर्बल होने पर वह औरों के पालन के बोझ को अपने कन्धों पर कैसे ले सकता है ? ४. तू ( सर्वाः दिशः शिवाः कृत्वा ) = सब दिशाओं को कल्याणमय करके, अर्थात् सब दृष्टिकोणों से घर का कल्याण सिद्ध करके ( इह ) = यहाँ ( स्वं योनिम् ) = अपने घर में ( आसदः ) = आसीन हो। खान-पान, वस्त्र-शिक्षा व घर की अन्य सब आवश्यकताओं के दृष्टिकोण से घर में किसी प्रकार की कमी न हो। यह सब दिशाओं का शिव करना है। यदि कोई बच्चा भूख से रो रहा हो, दूसरा ठण्ड में वस्त्राभाव से ठिठुर रहा हो और कोई बीमारी में औषध न मिल सकने से परेशान हो और चौथा स्कूल की फ़ीस के लिए आग्रह कर रहा हो तो यह घर तो सब दिशाओं में अशिव-ही-अशिववाला हो जाएगा। घर को मङ्गलमय बनाना पति का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए।

    भावार्थ

    भावार्थ — गृह के मुखिया को ‘रयि व पुष्टिमान्’ होना चाहिए, जिससे घर में सर्वत्र शिव-ही-शिव हो।

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    विषय

    दम्पती और राजा प्रजा और पक्षान्तर में मित्रों को प्रेम पूर्वक रहने का उपदेश ।

    भावार्थ

    हे ( अग्ने ) विद्वन् ! राजन् ! पुरुष ! ( त्वं पुरीष्यः ) तू समृद्धिमान्, ( रयिमान ) ऐश्वर्यवान्, (पुष्टिमान् ) पशु सम्पत्ति से भी युक्त, ( असि ) है ( सर्वाः दिशः ) समस्त दिशाओं को देशों को और वहां की प्रजाओं को ( शिवाः कृत्वा ) कल्याणकारी, सुखी ( कृत्वा ) करके ( स्वं योनिम् ) अपने आश्रयस्थान, पद पर ( इह ) यहां ( आसदः ) विराजमान हो ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    राजा व प्रजानन यांनी जितेंद्रिय, धर्मात्मा, परोपकारी विद्वानांना धर्माचा उपदेश करण्यासाठी नियुक्त करावे. उपदेशकांनी प्रयत्नपूर्वक सर्वांना शिक्षण देऊन सदैव विरोध सोडून समविचाराने राहावे व सर्वांना सुखी करावे.

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    विषय

    अध्ययन आणि उपदेशाकरिता कोणाची निवड करावी, याविषयी पुढील मंत्रात सांगितले आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (उपदेशक आचार्यादीप्रत राजाची विनंती) हे (अग्ने) उपदेशक आचार्य वा विद्वान, (त्वम) आपण (इह) या संसारात (वा या राज्यात) (पुरीष्य:) एकमत निर्माण करून स्थापित करून, एकत्व प्रतिपादित करणारे आणि (रयियाम्‌) विद्या व ज्ञानरुप धनाने संपन्न आहा. तसेच (पुष्टिमान्‌) प्रशंसनीय-शारीरिक आत्मिकशक्तीने समृद्ध (असि) आहात. म्हणून आपणांस विनंती की) आपण (सर्वा:) दिश:) सर्व दिशांमध्ये उपदेशास पात्र असे जे जे प्रजाजन आहेत , त्यांना (शिवा:) आपल्या कल्याणकारी उपदेशाद्वारे (कृत्वा) उपकृत करून (स्वम्‌) (योनिम्‌) सुखदायक आणि दु:खनाशक असे तुमचे जे घर आहे, त्या घरात आम्हांसाठी (आसद:) प्राप्त व्हा. (आम्ही तुमच्या घरी, आश्रयात वा विद्यालयात उपदेशग्रहणासाठी येतो, आपण उपदेश देऊन उपकृत करा)॥59॥

    भावार्थ

    भावार्थ - राजा आणि बुद्धिमान प्रजाजनांचे कर्तव्य आहे की त्यांनी जितेंद्रिय, धर्मात्मा, परोपकाराविषयी आवड असणारे असे जे जे विद्वज्जन राज्यात असतील, त्यांना प्रजंला धर्मोपदेश करण्यासाठी नियुक्त करावे. तसेच उपदेशक विद्वानांनीदेखील सर्व इच्छुक जनांना सर्वतोपरी प्रयत्न करून उत्तम शिक्षण द्यावे आणि सर्वांना एका धर्मात (विचार व सिद्धांत) यांमध्ये आणून प्रजेतील विरोधवृत्ती नष्ट करून सर्वांना सुखी करावे ॥59॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O learned preacher, in this world, thou art the follower of one principle, wealthy, physically and spiritually strong. Having made all the people blest, stick to thy duty of preaching ; thou giver of happiness, and the dispeller of miseries.

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    Meaning

    Agni, Lord of knowledge, light and power of yajna, rich in spirit, science and materials, and presiding priest of all round growth, you are dedicated to the earth and the laws of life. Rise, move abroad and, having created peace and prosperity in all directions, come and grace your super-seat of guidance.

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    Translation

    O fire divine, you are benevolent to all creatures, bestower of riches and nourishment. Making all the regions propitious, may you come here and be seated in your own abode. (1)

    Notes

    Isam urjam, इष is food and ऊर्ज is vigour. But the ritualists have typically interpreted इषं as अन्नं food, and ऊर्जं तदुपसेचनं घृतादि (दध्यादि), that is something that makes food more palatable, such as purified butter or curd etc.

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    बंगाली (1)

    विषय

    কেऽধ্যাপনোপদেশায় নিয়োজনীয়া ইত্যাহ ॥
    কাহাকে পড়াইবার এবং উপদেশ করিবার জন্য নিযুক্ত করা উচিত এই বিষয়ের উপদেশ পরবর্ত্তী মন্ত্রে করা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে উপদেশক বিদ্বান্ ! যদ্দারা (ত্বম্) আপনি (ইহ) এই সংসারে (পুরীষ্যঃ) এক মত পালনে তৎপর (রয়িমান্) বিদ্যা বিজ্ঞান এবং ধন দ্বারা যুক্ত এবং (পুষ্টিমান্) প্রশংসিত শরীর ও আত্মবল সহিত (অসি) আছেন এইজন্য (সর্বাঃ) সমস্ত (দিশঃ) উপদেশের যোগ্য প্রজা (শিবাঃ) কল্যাণরূপী উপদেশে যুক্ত (কৃত্বা) করিয়া (ত্বম্) স্বীয় (য়োনিম্) সুখদায়ক দুঃখনাশক উপদেশের গৃহ (আসদঃ) প্রাপ্ত হউন ॥ ৫ঌ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- রাজা ও প্রজাগণের উচিত যে, যিনি জিতেন্দ্রিয় ধর্মাত্মা, পরোপকারে প্রীতিসম্পন্ন বিদ্বান্ হইবে তাঁহাকে প্রজাদিগের মধ্যে ধর্মোপদেশক হেতু নিযুক্ত করিবে এবং উপদেশকদিগের উচিত যে, প্রচেষ্টা সহ সকলকে সুশিক্ষা দ্বারা একধর্মে নিরন্তর বিরোধ ত্যাগ করিয়া সুখী করিবেন ॥ ৫ঌ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অগ্নে॒ ত্বং পু॑রী॒ষ্যো᳖ রয়ি॒মান্ পু॑ষ্টি॒মাঁ২ऽঅ॑সি ।
    শি॒বাঃ কৃ॒ত্বা দিশঃ॒ সর্বাঃ॒ স্বং য়োনি॑মি॒হাऽऽऽস॑দঃ ॥ ৫ঌ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অগ্নে ত্বমিত্যস্য মধুচ্ছন্দা ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । ভুরিগুষ্ণিক্ ছন্দঃ ।
    ঋষভঃ স্বরঃ ॥

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