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यजुर्वेद अध्याय - 12

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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 80
    ऋषिः - भिषगृषिः देवता - ओषधयो देवताः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    51

    यत्रौष॑धीः स॒मग्म॑त॒ राजा॑नः॒ समि॑ताविव। विप्रः॒ सऽउ॑च्यते भि॒षग् र॑क्षो॒हामी॑व॒चात॑नः॥८०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत्र॑। ओष॑धीः। स॒मग्म॒तेति॑ स॒म्ऽअग्मत्। राजा॑नः। समि॑तावि॒वेति॒ समि॑तौऽइव। विप्रः॑। सः। उ॒च्य॒ते॒। भि॒षक्। र॒क्षो॒हेति॑ रक्षः॒ऽहा। अ॒मी॒व॒चात॑न॒ इत्य॑मीव॒ऽचात॑नः ॥८० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यत्रौषधीः समग्मत राजानः समिताविव । विप्रः सऽउच्यते भिषग्रक्षोहामीवचातनः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    यत्र। ओषधीः। समग्मतेति सम्ऽअग्मत्। राजानः। समिताविवेति समितौऽइव। विप्रः। सः। उच्यते। भिषक्। रक्षोहेति रक्षःऽहा। अमीवचातन इत्यमीवऽचातनः॥८०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 80
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः पुनः सद्वैद्यसेवनं कार्य्यमित्याह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! यूयं यत्रौैषधीः सन्ति ता राजानः समिताविव समग्मत, यो रक्षोहाऽमीवचातनो विप्रो भिषग्भवेत् स युष्मान् प्रत्युच्यत उच्येत, तद्गुणान् प्रकाशयेत्, तास्तं च सदा सेवध्वम्॥८०॥

    पदार्थः

    (यत्र) येषु स्थलेषु (ओषधीः) सोमाद्याः (समग्मत) प्राप्नुत (राजानः) क्षत्रधर्मयुक्ता वीराः (समिताविव) यथा संग्रामे तथा (विप्रः) मेधावी (सः) (उच्यते) उपदिश्येत, लेट्प्रयोगोऽयम् (भिषक्) यो भिषज्यति चिकित्सति सः, अत्र भिषज् धातोः क्विप् (रक्षोहा) यो दुष्टानां रोगाणां हन्ता (अमीवचातनः) योऽमीवान् रोगान् शातयति सः, अत्र वर्णव्यत्ययेन शस्य चः॥८०॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यथा सेनापतिसुशिक्षिता राज्ञो वीरपुरुषाः परमप्रयत्नेन देशान्तरं गत्वा शत्रून् विजित्य राज्यं प्राप्नुवन्ति, तथा सद्वैद्यसुशिक्षिता यूयमोषधिविद्यां प्राप्नुत। यस्मिन् शुद्धे देश ओषधयः सन्ति, ता विज्ञायोपयुङ्ग्ध्वमन्येभ्यश्चोपदिशत॥८०॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    बार-बार श्रेष्ठ वैद्यों का सेवन करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! तुम लोग (यत्र) जिन स्थलों में (ओषधीः) सोमलता आदि ओषधी होती हों, उन को जैसे (राजानः) राजधर्म से युक्त वीरपुरुष (समिताविव) युद्ध में शत्रुओं को प्राप्त होते हैं, वैसे (समग्मत) प्राप्त हों, जो (रक्षोहा) दुष्ट रोगों का नाशक (अमीवचातनः) रोगों को निवृत्त करने वाला (विप्रः) बुद्धिमान् (भिषक्) वैद्य हो, (सः) वह तुम्हारे प्रति (उच्यते) ओषधियों के गुणों का उपदेश करे और ओषधियों का तथा उस वैद्य का सेवन करो॥८०॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सेनापति से शिक्षा को प्राप्त हुए राजा के वीर पुरुष अत्यन्त पुरुषार्थ से देशान्तर में जा शत्रुओं को जीत के राज्य को प्राप्त होते हैं, वैसे श्रेष्ठ वैद्य से शिक्षा को प्राप्त हुए तुम लोग ओषधियों की विद्या को प्राप्त होओ। जिस शुद्ध देश में ओषधि हों, वहां उन को जान के उपयोग में लाओ और दूसरों के लिये भी बताओ॥८०॥

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    भावार्थ

    ( यत्र ) जहां या जिसके आश्रय पर ( समितौ) संग्राम या राज- सभा में ( राजानः इव) क्षत्रिय राजाओं के समान (ओषधीः) ओषधियां हों । हे मनुष्यो ! वहां ही आप लोग ( सम् अग्मत ) जाओ। जो पुरुष रक्षेहा ) राक्षस, दुःखदायी पुरुषों के नाश करनेवाले वीर्यवान् क्षत्रिय के समान ( अमीवचातनः ) रोगों का नाश करने में समर्थ हो ( सः ) वह ( विप्रः ) ज्ञानपूर्ण मेधावी पुरुष ( भिषग् ) रोग नाश करनेहारा पुरुष 'भिपक्' ( उच्यते ) कहाता है अथवा ऐसा रोगनाशक पुरुष ही ( उच्यते ) उपदेश किया करे ।

    टिप्पणी

    ओषधी प्रतिगृभगीत राजानः समिता इव इति काण्व० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋष्यादि पूर्ववत् ॥

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    विषय

    भिषक्

    पदार्थ

    १. गत मन्त्र की दिव्य ओषधियों के प्रयोक्ता वैद्य का लक्षण कहते हैं कि (यत्र) = जिस पुरुष में (ओषधी:) = ओषधियाँ (समग्मत) = व्याधियों के जीतने के लिए इस प्रकार इकट्ठी होती हैं (इव) = जैसेकि (राजान:) = राजा लोग शत्रु को जीतने के लिए समितौ युद्ध में सङ्गत होते हैं। राजा इकट्ठे होकर शत्रु का पराजय करते हैं, ओषधियाँ वैद्य के समीप एकत्र होकर रोग को पराजित करती हैं २. (सः) = वह (विप्रः) = शरीर में आ गई कमियों का फिर से [प्रा- पूरणे] पूरण करनेवाला व्यक्ति (भिषक्) = वैद्य (उच्यते) = कहलाता है। ३. यह वैद्य (रक्षोहा) = अपने रमण के लिए रोगी के शरीर का क्षय करनेवाले रोगकृमियों का नाश करता है। ४. रोगकृमियों के नाश के द्वारा यह (अमीवचातनः) = [अमीवान् चातयति] रोगों को नष्ट करता है । ५. एवं वैद्य वह है- [क] जिसके पास ओषधियाँ हैं, [ख] जो उन ओषधियों के द्वारा रोगी की न्यूनता को दूर करता है, [ग] रोगकृमियों का संहार करता है, [घ] और रोगों को दूर करता है। इस वैद्य ने रोगों के साथ संग्राम करना है। इस संग्राम के लिए ओषधियाँ इसकी सहायता करती हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ - उत्तम वैद्य वह है जो ओषधियों के द्वारा रोगरूप शत्रुओं से युद्ध करके रोगों का नाश करता है और रोगी के शरीर में आ गई कमियों को दूर कर देता है।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे सेनापतींकडून प्रशिक्षित झालेले राज्यातील वीर पुरुष देशोदेशी जाऊन अत्यंत पुरुषार्थाने शत्रूंना जिंकून राज्य प्राप्त करतात, तसेच श्रेष्ठ वैद्याकडून शिक्षण घेऊन तुम्ही लोक औषधी विद्या प्राप्त करा व ज्या देशात शुद्ध औषधी असेल त्यांचे ज्ञान प्राप्त करून त्यांचा उपयोग करा व इतरांनाही तसे करावयास सांगा.

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    विषय

    (रोग झाल्यास) वारंवार वैद्याकडे जाऊन औषधोपचार घ्यावा, पुढील मंत्रात याविषयी प्रतिपादन केले आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, (यत्र) ज्या प्रदेशात (ओषधी:) सोमलता आदी औषधी उगवतात, तिथे जाऊन तुम्ही त्या औषधी (समग्मत) प्राप्त करा. ज्याप्रमाणे (राजान:) राजधर्माचे पालन करणारा वीर राजा (समिताविव) युद्धात शत्रूंवर चाल करून जातो (तद्वत तुम्ही औषधी मिळवा) आणि (रक्षोहा) दु:खदायी रोगांची नाश करणारा (अमीरचातन:) रोगांचे निवारण करणारा (विप्र) बुद्धिमान (भिषक) वैद्य जिथे असेल, (त्याच्याकडे जा) (स:) तो तुम्हांला (उच्यते) योग्य त्या औषधीचे गुण सांगेल औषध योजना करील. यामुळे (तुम्ही रोगी झाल्यास) औषधि प्राप्त करा आणि त्या अनुभवी वैद्याकडे जा. ॥80॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. ज्याप्रमाणे सेनापतीद्वारा सैनिकी प्रशिक्षण प्राप्त करून राजाचे वीर सैनिक अत्यंत श्रम, पुरुषार्थ करीत देश देशांतरापर्यंत जाऊन शत्रूंना शोधून त्यांना जिंकतात, त्याप्रमाणे अनुभवी हुशार वैद्याकडून वैद्यकशास्त्राचे ज्ञान प्राप्त करून तुम्ही औषधी मिळवा. ज्या ज्या शुद्ध प्रदेशात औषधी आहेत, त्याची माहिती मिळवून तिथे जा आणि औषधींचा उपयोग करा. (स्वत:साठी आणि इतरांच्या रोगनिवारणासाठी त्या औषधी वापरा) तसेच तुम्हास माहीत झालेले ते औषधीविज्ञान इतरांनाही सांगा (गुप्त ठेऊं नका. त्याचा लाभ सर्वांना होऊ द्या) ॥80॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O men go to places where there are herbs, just as kings go to the battle-fields. The sagacious physician, the slayer of fiendish ailments and chaser of diseases, tells ye the qualities of the herbs. Take service from him and them both.

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    Meaning

    Wherever medicinal herbs such as soma grow, there go as brave warriors go to the battlefield against the enemy. That person of intelligence and expertise who fights disease and destroys the anti-life forces is called the physician, the person who cures.

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    Translation

    Around whom the herbs are collected, like kings in their assemblies, that wise one is called a physician, dispeller of ills and distroyer of diseases. (1)

    Notes

    Raksoha, slayer of evil malignancies; dispeller of evils, Amiva citanah, अमीवान् रोगान् नाशतीति, one that destroys diseases,

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনঃ পুনঃ সদ্বৈদ্যসেবনং কার্য়্যমিত্যাহ ॥
    বারংবার শ্রেষ্ঠ বৈদ্যদের সেবন করিবে এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! তোমরা (য়ত্র) যে সব স্থলে (ওষধীঃ) সোমলতাদি ওষধী হইয়া থাকে, উহাদিগকে যেমন (রাজানঃ) রাজধর্মযুক্ত বীরপুরুষ (সমিতাবিব) যুদ্ধে শত্রুদিগকে প্রাপ্ত হয় সেইরূপ (সমগ্মত) প্রাপ্ত হও, যে (রক্ষোহা) দুষ্ট রোগের নাশক (অমীবচতনঃ) রোগের নিবৃত্তকারী (বিপ্রঃ) বুদ্ধিমান্ (ভিষক্) বৈদ্য হয় সে তোমার প্রতি (উচ্যতে) ওষধিগুলির গুণের উপদেশ করে এবং ওষধীসমূহের তথা সেই বৈদ্যর সেবন কর ॥ ৮০ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যেমন সেনাপতি শিক্ষাপ্রাপ্ত রাজার বীরপুরুষ অত্যন্ত পুরুষকার বলে দেশান্তরে গিয়া শত্রুদিগকে জিতিয়া রাজ্য প্রাপ্ত হয় সেইরূপ শ্রেষ্ঠ বৈদ্যর নিকট হইতে শিক্ষাপ্রাপ্ত তোমরা ওষধীগুলির বিদ্যা প্রাপ্ত হও । যে শুদ্ধ দেশে ওষধী আছে সেখানে উহাদিগকে জানিয়া উপযোগে আনিও এবং অপরের জন্যও বলিও ॥ ৮০ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    য়ত্রৌষ॑ধীঃ স॒মগ্ম॑ত॒ রাজা॑নঃ॒ সমি॑তাবিব ।
    বিপ্রঃ॒ সऽউ॑চ্যতে ভি॒ষগ্ র॑ক্ষো॒হামী॑ব॒চাত॑নঃ ॥ ৮০ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    য়ত্রৌষধীরিত্যস্য ভিষগৃষিঃ । ওষধয়ো দেবতাঃ । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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