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यजुर्वेद अध्याय - 12
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यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 82
ऋषिः - भिषगृषिः
देवता - ओषधयो देवताः
छन्दः - विराडनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
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उच्छुष्मा॒ ओष॑धीनां॒ गावो॑ गो॒ष्ठादि॑वेरते। धन॑ꣳ सनि॒ष्यन्ती॑नामा॒त्मानं॒ तव॑ पूरुष॥८२॥
स्वर सहित पद पाठउत्। शुष्माः॑। ओष॑धीनाम्। गावः॑। गो॒ष्ठादि॑व। गो॒स्थादि॒वेति॑ गो॒स्थात्ऽइ॑व। ई॒र॒ते॒। धन॑म्। स॒नि॒ष्यन्ती॑नाम्। आ॒त्मान॑म्। तव॑। पू॒रु॒ष॒। पु॒रु॒षेति॑ पुरुष ॥८२ ॥
स्वर रहित मन्त्र
उच्छुष्मा ओषधीनाङ्गावो गोष्ठादिवेरते । धनँ सनिष्यन्तीनामात्मानन्तव पूरुष ॥
स्वर रहित पद पाठ
उत्। शुष्माः। ओषधीनाम्। गावः। गोष्ठादिव। गोस्थादिवेति गोस्थात्ऽइव। ईरते। धनम्। सनिष्यन्तीनाम्। आत्मानम्। तव। पूरुष। पुरुषेति पुरुष॥८२॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
किन्निमित्ता ओषधयः सन्तीत्याह॥
अन्वयः
हे पूरुष! या धनं सनिष्यन्तीनामोषधीनां शुष्मा गावो गोष्ठादिव तवात्मानमुदीरते, तास्त्वं सेवस्व॥८२॥
पदार्थः
(उत्) (शुष्माः) प्रशस्तबलकारिण्यः। शुष्मेति बलनामसु पठितम्॥ (निघं॰२.९) अर्शआदित्वादच् (ओषधीनाम्) सोमयवादीनाम् (गावः) धेनवः किरणा वा (गोष्ठादिव) यथा स्वस्थानात् तथा (ईरते) वत्सान् प्राप्नुवन्ति (धनम्) यद्धिनोति वर्धयति तत्। धनं कस्माद्धिनोतीति सतः॥ (निरु॰३.९) (सनिष्यन्तीनाम्) संभजन्तीनाम् (आत्मानम्) शरीराऽधिष्ठातारम् (तव) (पूरुष) पुरि देहे शयान देहधारक वा॥८२॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः! यथा सम्पालिता गावो दुग्धादिभिः स्ववत्सान् मनुष्यादींश्च सम्पोष्य बलयन्ति, तथैवौषधयो युष्माकमात्मशरीरे सम्पोष्य पराक्रमयन्ति। यदि कश्चिदन्नादिकमौषधं न भुञ्जीत, तर्हि क्रमशो बलविज्ञानह्रासं प्राप्नुयात्, तस्मादेता एतन्निमित्ताः सन्तीति वेद्यम्॥८२॥
हिन्दी (3)
विषय
ओषधियों का क्या निमित्त है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (पूरुष) पुरुष-शरीर में सोने वाले वा देहधारी! (धनम्) ऐश्वर्य्य बढ़ाने वाले को (सनिष्यन्तीनाम्) सेवन करती हुई (ओषधीनाम्) सोमलता वा जौ आदि ओषधियों के सम्बन्ध से जैसे (शुष्माः) प्रशंसित बल करने हारी (गावः) गौ वा किरण (गोष्ठादिव) अपने स्थान से बछड़ों वा पृथिवी को प्राप्त होती हैं, वैसे ओषधियों का तत्त्व (तव) तेरे (आत्मानम्) आत्मा को (उदीरते) प्राप्त होता है, उन सब की तू सेवा कर॥८२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो! जैसे रक्षा की हुई गौ अपने दूध आदि से अपने बच्चों और मनुष्य आदि को पुष्ट करके बलवान् करती है, वैसे ही ओषधियाँ तुम्हारे आत्मा और शरीर को पुष्ट कर पराक्रमी करती हैं। जो कोई न खावे तो क्रम से बल और बुद्धि की हानि हो जावे। इसलिये ओषधी ही बल बुद्धि का निमित्त है॥८२॥
भावार्थ
( गोष्ठात् ) गौओं के बाड़े से जिस प्रकार ( गावः ईरते ) गौवें निकलती हैं उसी प्रकार हे ( पुरुष ) पुरुष ! प्रजापते ! राजन् ! ( तव ) तेरे ( आत्मानम् ) शरीर के प्रति, तेरे अपने उपकार के लिये ( धनं ) ऐश्वर्य को ( सनिष्यन्तीनाम् ) प्रदान करने वाली रस वीर्यवती ओषधियों के समान वीर्यवती प्रजाओं में से जो ( शुष्मा ) अधिक बलकारिणी हैं वे ( स्वयं तव आत्मानम् उदीरते ) स्वयं तेरे आत्मा को प्राप्त होती हैं । और उन्नत करती हैं। अर्थात् ओषधियां जिस प्रकार पुरुष- शरीर में अधिष्ठाता आत्मा के बल की वृद्धि करती हैं इसी प्रकार बलवती प्रजाएं राजा के बल की वृद्धि करती हैं।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ओषधयो देवताः । भिषग्गृषिः । अनुष्टुप् । गान्धारः ॥
विषय
ओषधियों की शक्तियाँ
पदार्थ
१. पिछले मन्त्र में वर्णित चार प्रकार की ओषधियाँ जब यथायथ वैद्य से प्रयुक्त होती हैं तब (ओषधीनाम्) = इन ओषधियों के (शुष्माः) = रोग-शोषक बल (उत् ईरते) = इस प्रकार बाहर प्रकट होते हैं, (इव) = जैसे (गावः गोष्ठात्) = गौवें गोष्ठ से बाहर निकलकर प्रकट होती हैं। रोगी का रोग दूर होता है और इन ओषधियों का प्रभाव चेहरे पर भी व्यक्त होने लगता है । २. किन ओषधियों का? हे पुरुष! जो ओषधियाँ (तव) = तुझे (धनम्) = धन (सनिष्यन्तीनाम्) = प्राप्त करानेवाली हैं। मन्त्र ७८ में इसी धन का उल्लेख 'अश्वं गां वासः' शब्दों से हुआ है। ये ओषधियाँ केवल धन ही प्राप्त कराती हैं ऐसा नहीं, ये ओषधियाँ (तव आत्मानम्) = तेरे शरीर को भी प्राप्त कराती हैं, अर्थात् तुझे पूर्ण स्वस्थ बनाती हैं।
भावार्थ
भावार्थ - योग्य वैद्य से उपयुक्त होती हुई ओषधियों की शक्तियाँ उसके रोगी में प्रकट होती हैं। ये रोगी को नीरोग बनाकर उसे घोड़े, गौ, वस्त्र व उत्तम शरीर प्राप्त कराती है।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जशा पाळीव गाई आपल्या पाडसांना व माणसांना दुधाने पुष्ट व बलवान करतात तशी औषधेही (सोमलता वगैरे) आत्मा व शरीर यांना पुष्ट करून पराक्रमी बनवितात. याप्रमाणे औषधांचे सेवन न केल्यास क्रमाने बल व बुद्धी यांची हानी होते. त्यामुळे औषध हेच बल व बुद्धीचे निमित्त आहे.
विषय
जनात औषधी कोणत्या हेतूसाठी (का?) आहेत, याविषयी पुढील मंत्रात कथन केले आहे -
शब्दार्थ
हे (पुरुष) पुरुष, शरीरात शयन करणाऱ्या (राहणाऱ्या) अथवा (सनिष्टान्तीनाम्) सेवन केल्यामुळे ज्या शक्ती देतात, त्या (औषधीनाम्) विसलला, जव आदी औषधींचे तत्त्व, सार (तू ग्रहणकरीत जा) ज्याप्रमाणे (शुष्मा:) (दूध, घृत देऊन) बळ वाढविणाऱ्या (गाव:) गायी अथवा सूर्यकिरणे आहेत की ज्या (गोष्ठादिव) आपल्या गोठ्यातून पळत-पळत आपल्या वासराकडे जातात आणि किरणें भूमीकडे जातात. त्याप्रमाणे औषधींचे तत्त्व (तव) तुझ्या (आत्मानम्) आत्म्याकडे (उदीरते) येत आहे (औषधी तुझ्यासाठीच निर्मित आहेत) तू त्या औषधींचे सेवन करीत जा. ॥82॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात उपमा अलंकार आहे. हे मनुष्यांनो, जसे रक्षिता-पालिता गाय दूध आदी देऊन आपल्या वासऱ्यांना आणि मनुष्यांना पोषण देऊन शक्तिमान करते, त्याप्रमाणे या औषधी तुमच्या आत्म्याला आणि शरीराला पुष्ट करतात, शक्तिशाली करतात. (म्हणून तुम्ही औषधींचे सेवन करीत जा) जर कोणी औषध घेणार नाही, तर हळू हळू त्याची शक्ती आणि बुद्धीचा ऱ्हास होत जाईल. यामुळे (लक्षात ठेवा की) औषधी बळ-बुद्धीचे कारण आहे. ॥82॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Oman, just as strong cows go forth from their stalls and feed their calves, so do the healing virtues of the wealth-giving medicinal herbs, used properly, strengthen thy body and soul.
Meaning
O man, the invigorating power and fragrance of vitality of the herbs which are ever keen to give health and lustre to your body and soul issues forth from them just as cows issue forth from the cow-shed (anxious to feed their calves).
Translation
O Lord, healing powers of these herbs come out like cows from a cow-stall. By your blessings they are bestowers of wealth and a healthy body. (1)
Notes
Susmiáh, powers (of healing).
बंगाली (1)
विषय
কিন্নিমিত্তা ওষধয়ঃ সন্তীত্যাহ ॥
ওষধীগুলির কী নিমিত্ত এই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে (পূরুষ) পুরুষ-শরীরে শয়নকারী বা দেহধারী ! (ধনম্) ঐশ্বর্য্য বৃদ্ধিকারীকে (সনিষ্যন্তীনাম্) সেবন করিয়া (ওষধীনাম্) সোমলতা বা যবাদি ওষধীগুলির সম্পর্ক বলে যেমন (শুষ্মাঃ) প্রশংসিত বলকারী (গাবঃ) গাভি বা কিরণ (গোষ্ঠাদিব) স্বীয় স্থান হইতে বৎস বা পৃথিবীকে প্রাপ্ত হয় সেইরূপ ওষধীগুলির তত্ত্ব (তব) তোমার (আত্মানম্) আত্মাকে (উদীরতে) প্রাপ্ত হয় সেই সকলের তুমি সেবা কর ॥ ৮২ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । হে মনুষ্যগণ ! যেমন পালিতা গাভি স্বীয় দুগ্ধাদি দ্বারা বৎসও মনুষ্যাদিকে পুষ্ট করিয়া বলবান করে । সেইরূপ ওষধিগুলি তোমাদের আত্মা ও শরীরকে পুষ্ট করিয়া পরাক্রমী করে । কেউ যদি না খায় তাহা হইলে ক্রমপূর্বক বলও বুদ্ধির হানি হইয়া যাইবে । এই জন্য ওষধী বল-বুদ্ধির নিমিত্ত ॥ ৮২ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
উচ্ছুষ্মা॒ ওষ॑ধীনাং॒ গাবো॑ গো॒ষ্ঠাদি॑বেরতে ।
ধন॑ꣳ সনি॒ষ্যন্তী॑নামা॒ত্মানং॒ তব॑ পূরুষ ॥ ৮২ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
উচ্ছুষ্মা ইত্যস্য ভিষগৃষিঃ । ওষধয়ো দেবতাঃ । বিরাডনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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