साइडबार
यजुर्वेद अध्याय - 12
1
2
3
4
5
6
7
8
9
10
11
12
13
14
15
16
17
18
19
20
21
22
23
24
25
26
27
28
29
30
31
32
33
34
35
36
37
38
39
40
41
42
43
44
45
46
47
48
49
50
51
52
53
54
55
56
57
58
59
60
61
62
63
64
65
66
67
68
69
70
71
72
73
74
75
76
77
78
79
80
81
82
83
84
85
86
87
88
89
90
91
92
93
94
95
96
97
98
99
100
101
102
103
104
105
106
107
108
109
110
111
112
113
114
115
116
117
मन्त्र चुनें
यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 43
ऋषिः - सोमाहुतिर्ऋषिः
देवता - अग्निर्देवता
छन्दः - आर्ची पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
104
स बो॑धि सू॒रिर्म॒घवा॒ वसु॑पते॒ वसु॑दावन्। यु॒यो॒ध्यस्मद् द्वेषा॑सि वि॒श्वक॑र्मणे॒ स्वाहा॑॥४३॥
स्वर सहित पद पाठसः। बो॒धि॒। सू॒रिः। म॒घवेति॑ म॒घऽवा॑। वसु॑पत॒ इति॒ वसु॑ऽपते। वसु॑दाव॒न्निति॒ वसु॑ऽदावन्। यु॒यो॒धि। अ॒स्मत्। द्वेषा॑सि। वि॒श्वक॑र्मण॒ इति॑ वि॒श्वऽक॑र्मणे। स्वाहा॑ ॥४३ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स बोधि सूरिर्मघवा वसुपते वसुदावन् । युयोध्यस्मद्द्वेषाँसि । विश्वकर्मणे स्वाहा ॥
स्वर रहित पद पाठ
सः। बोधि। सूरिः। मघवेति मघऽवा। वसुपत इति वसुऽपते। वसुदावन्निति वसुऽदावन्। युयोधि। अस्मत्। द्वेषासि। विश्वकर्मण इति विश्वऽकर्मणे। स्वाहा॥४३॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
मनुष्याः किं कृत्वा किं प्राप्नुयुरित्याह॥
अन्वयः
हे वसुपते वसुदावन्! यो मघवा सूरिर्भवान् सत्यं बोधि, स विश्वकर्मणे स्वाहा सत्यवाणीमुपदिशन् संस्त्वमस्मद् द्वेषांसि वियुयोधि सततं दूरीकुरु॥४३॥
पदार्थः
(सः) श्रोता वक्ता च (बोधि) बुध्येत (सूरिः) मेधावी (मघवा) पूजितविद्यायुक्तः (वसुपते) वसूनां धनानां पालक (वसुदावन्) वसूनि धनानि सुपात्रेभ्यो ददाति तत्सम्बुद्धौ (युयोधि) वियोजय (अस्मत्) अस्माकं सकाशात् (द्वेषांसि) द्वेषयुक्तानि कर्माणि (विश्वकर्मणे) अखिलशुभकर्मानुष्ठानाय (स्वाहा) सत्यां वाणीम्। [अयं मन्त्रः शत॰६.८.२.९ व्याख्यातः]॥४३॥
भावार्थः
ये मनुष्याः! ब्रह्मचर्य्येण जितेन्द्रिया भूत्वा द्वेषं विहाय धर्मेणोपदिश्य श्रुत्वा च प्रयतन्ते, त एव धार्मिका विद्वांसोऽखिलं सत्यासत्यं ज्ञातुमुपदेष्टुं चार्हन्ति, नेतरे हठाभिमानयुक्ताः क्षुद्राशयाः॥४३॥
हिन्दी (3)
विषय
मनुष्य लोग क्या करके किस को प्राप्त हों, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (वसुपते) धनों के पालक (वसुदावन्) सुपुत्रों के लिये धन देने वाले जो (मघवा) प्रशंसित विद्या से युक्त (सूरिः) बुद्धिमान् आप सत्य को (बोधि) जानें, (सः) सो आप (विश्वकर्म्मणे) सम्पूर्ण शुभ कर्मों के अनुष्ठान के लिये (स्वाहा) सत्य वाणी का उपदेश करते हुए आप (अस्मत्) हमसे (द्वेषांसि) द्वेषयुक्त कर्मों से (युयोधि) पृथक् कीजिये॥४३॥
भावार्थ
जो मनुष्य ब्रह्मचर्य्य के साथ जितेन्द्रिय हो, द्वेष को छोड़, धर्मानुसार उपदेश कर और सुन के प्रयत्न करते हैं, वे ही धर्मात्मा विद्वान् लोग सम्पूर्ण सत्य-असत्य के जानने और उपदेश करने के योग्य होते हैं, और अन्य हठ अभिमान युक्त क्षुद्र पुरुष नहीं॥४३॥
विषय
सोमाहुति
पदार्थ
यॐुयाद्भेध्यस्मद् द्वेषाह्द्ब्रसि विद्भश्वकर्ह्मणद्भे स्वाहाह् न्न् ॥४३॥ गत मन्त्र की भावना के अनुसार दीर्घतमा जब सब प्रजाओं में प्रभु का रूप देखता हुआ उनके प्रति आदर की भावनावाला होकर प्रचार-कार्य में लगता है तब यह विनीतता को धारण करने के कारण ‘सोम’ कहलाता है। सोम [ वीर्य ] की रक्षा के कारण भी यह ‘सोम’ कहलाता है और अपने जीवन को अर्पित करने के कारण ‘आहुति’ होता है। इस प्रकार इसका नाम ‘सोमाहुति’ हो जाता है। इस सोमाहुति से प्रभु कहते हैं कि [ १ ] ( सः बोधि ) = वह तू समझदार बन—ज्ञानी बन। ज्ञानी बनकर ही तो यह औरों को ज्ञान देनेवाला बनेगा। २. ( सूरिः ) = विद्वान् तू [ सु प्रेरणे ] प्रभु की प्रेरणा को सुननेवाला हो। ३. ( मघवा ) = तू ज्ञान के ऐश्वर्यवाला अथवा [ मघ = मख ] यज्ञशील हो। ४. ( वसुपते ) = हे वसु के पति—ज्ञानैश्वर्य देनेवाले! तू ( अस्मत् ) = हमसे ( द्वेषांसि ) = द्वेषों को ( युयोधि ) = दूर कर अथवा प्रभु के प्रति जो अप्रीति की भावना है [ द्विष् अप्रीतौ ] उसे तू दूर करनेवाला हो, अर्थात् तू लोगों को प्रकृति-प्रवण न रहने देकर उन्हें प्रभु-प्रवण बनानेवाला हो। ५. ( विश्वकर्मणे ) = इस प्रकार लोकहित [ विश्व-हितकर्मणे, मध्यमपदलोपः ] के लिए कर्म करनेवाले के लिए ( स्वाहा ) = [ सु आह ] प्रशंसात्मक शब्द कहे जाते हैं। यह लोकहित करनेवाला व्यक्ति प्रशंसा प्राप्त करता है। इसके लिए सभी शुभ शब्दों का प्रयोग करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ — प्रचारक ने स्वयं ‘ज्ञानी, प्रभु-प्रेरणा को सुननेवाला, यज्ञ की वृत्तिवाला’ बनना है। ज्ञानैश्वर्य प्राप्त करके ज्ञानैश्वर्य को देनेवाला बनना है। प्रजाओं में से द्वेष को दूर करके प्रेम का प्रसार ही इसका मुख्य ध्येय होना चाहिए। हमारे सब कर्म लोकहित के लिए हों। हमारा जीवन त्यागवाला व प्रशंसनीय हो।
विषय
सत्यासत्य का निर्णय, न्यायकारिता का उपदेश ।
भावार्थ
हे ( वसुपते ) धन ऐश्वर्य के पालक ! हे ( वसुदावन् धनप्रदाता ! ( मघवा ) ऐश्वर्यवान् ( सूरिः ) विद्वान् ( स ) वह तू ( बोधि ) हमारे समस्त अभिप्राय को या सत्य असत्य को जान । और ( अस्मत ) हम से ( द्वेषांसि ) द्वेषके या परस्पर के अप्रीति के कारणों को ( युयोधि ) दूर कर । हममें न्यायपूर्वक फैसला कर । ( विश्वकर्मणे ) समस्त राष्ट्र के कार्यों को उत्तम रीति से करनेहारे तेरे लिये ( स्वाहा ) हम सदा आदर वचन का प्रयोग करते हैं । शत० ६ । ८ । २ । ९ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सोमाहुतिर्ऋषिः अग्निर्देवता । विराडार्षी त्रिष्टुप् । धैवतः ||
मराठी (2)
भावार्थ
जी माणसे ब्रह्मचर्य पाळून जितेंद्रिय बनतात व द्वेष सोडून देतात व धर्मानुसार उपदेश करून ऐकून तसे वर्तन करण्याचा प्रयत्न करतात. ते धर्मात्मा व विद्वान बनून संपूर्ण सत्य व असत्य जाणून त्याचा उपदेश करतात. इतर हटवादी अभिमानी क्षुद्र पुरुष तसे नसतात.
विषय
मनुष्यांनी काय केल्याने काय प्राप्त करावे, याविषयी -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - (प्रार्थना उपदेशक विद्वानाप्रत) हे (वसुपते) (विद्यास्य) धनाचे स्वामी (वसुदावन्) सुपात्रांना दान देणारे, (मधवा) प्रशंसनीय विद्येने संपन्न आणि बुद्धिमान असे आपण सत्याला जाणा (सत्याचा शोध करा) (स:) ते आपण उपदेशक (विश्वकर्मणे) शुभ हितकारी कर्म करण्यासाठी (स्वाहा) सत्य वाणीद्वारे सत्योपदेश करीत (अस्मत्) आम्हा (श्रोत्यांपासून) (द्वंषांसि) द्वेषभावाला आणि द्वेषपूर्ण कर्मांना (वियुयोधि) पृथककरा (दूर ठेवा) आम्ही आपल्या हितोपदेशाप्रमाणे सदैव शुभकार्ये करावीत) ॥43॥
भावार्थ
भावार्थ - जी माणसे ब्रह्मचर्य धारण करून, जितेंद्रिय होऊन, द्वेषाचा त्याग करून धर्मानुसार सर्वांना उपदेश करतात वा ऐकून त्याप्रमाणे आचरण करतात, तसे धर्मात्मा विद्वज्जन सत्य आणि असत्याची पूर्ण परीक्षा करण्यात व उपदेश देण्यास पात्र असतात. याहून भिन्न जे (आपल्या मत-विचाराविषयी) दुराग्रही आणि अहंकारी क्षुद्र माणसें असतात, ते कदापि पात्र होत नाहीत. ॥43॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O preacher, the guardian of wealth, giver of riches to the deserving, full of commendable knowledge, and wisdom, thou knowest the truth. For the performance of all noble needs, and preaching the truth, keep far away from us all evil designs.
Meaning
Agni, man of wealth and honour, creator and generous giver of power and prosperity, intelligent lord of knowledge, know for us the truth of life and existence and, in truth of word and deed, fight out our negativities and eliminate our hostilities for the achievement of success in all the affairs of life.
Translation
He, the learned and bounteous, knows our intentions. O master and liberal donor of riches, may you fight against our enemies. (1) I dedicate it to the Master- technician. (2)
Notes
Yuyodhi, वियोजय, drive away. Or fight against. Dvesàimsi, animosities, or enemies. दौर्भाग्यानि, miseries (Mahidhara).
बंगाली (1)
विषय
মনুষ্যাঃ কিং কৃত্বা কিং প্রাপ্নুয়ুরিত্যাহ ॥
মনুষ্যগণ কী করিয়া কাহাকে প্রাপ্ত হইবে এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে (বসুপতে) ধনপালক (বসুদাবন) সুপুত্রদিগের জন্য ধনদাতা (মধবা) প্রশংসিত বিদ্যাযুক্ত (সূরিঃ) বুদ্ধিমান আপনি সত্যকে (বোধি) জানুন (সঃ) সুতরাং আপনি (বিশ্বকর্ম্মণে) সম্পূর্ণ শুভ কর্মের অনুষ্ঠান হেতু (স্বাহা) সত্য বাণীর উপদেশ করিয়া আপনি (অস্মৎ) আমাদের হইতে (দ্বেষাংসি) দ্বেষযুক্ত কর্মকে (য়ুয়োধি) পৃথক করুন ॥ ৪৩ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- যে মনুষ্য ব্রহ্মচর্য্য সহ জিতেন্দ্রিয় হইয়া দ্বেষ পরিত্যাগ করিয়া ধর্মানুসার উপদেশ করিয়া এবং শুনিয়া প্রচেষ্টা করে তাঁহারাই ধর্মাত্মা বিদ্বান্গণ সম্পূর্ণ সত্য অসত্য জানিবার এবং উপদেশ করিবার যোগ্য হয় কিন্তু অন্য হঠকারী অভিমানযুক্ত ক্ষুদ্র পুরুষ নহে ॥ ৪৩ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
স বো॑ধি সূ॒রির্ম॒ঘবা॒ বসু॑পতে॒ বসু॑দাবন্ ।
য়ু॒য়ো॒ধ্য᳕স্মদ্ দ্বেষা॑ᳬंসি বি॒শ্বক॑র্মণে॒ স্বাহা॑ ॥ ৪৩ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
স বোধীত্যস্য সোমাহুতির্ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । আর্চী পংক্তিশ্ছন্দঃ ।
পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal