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यजुर्वेद अध्याय - 12
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यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 29
ऋषिः - वत्सप्रीर्ऋषिः
देवता - अग्निर्देवता
छन्दः - विराडार्षी त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
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अस्ता॑व्य॒ग्निर्न॒राꣳ सु॒शेवो॑ वैश्वान॒रऽऋषि॑भिः॒ सोम॑गोपाः। अ॒द्वे॒षे द्यावा॑पृथि॒वी हु॑वेम॒ देवा॑ ध॒त्त र॒यिम॒स्मे सु॒वीर॑म्॥२९॥
स्वर सहित पद पाठअस्ता॑वि। अ॒ग्निः। न॒राम्। सु॒शेव॒ इति॑ सु॒ऽशेवः॑। वै॒श्वा॒न॒रः। ऋषि॑भि॒रित्यृषि॑ऽभिः। सोम॑गोपा॒ इति॒ सोम॑ऽगोपाः। अ॒द्वे॒षेऽइत्य॑द्वे॒षे। द्यावा॑पृथि॒वीऽइति॒ द्यावा॑पृथि॒वी। हु॒वे॒म॒। देवाः॑। ध॒त्त। र॒यिम्। अ॒स्मेऽइत्य॒स्मे। सु॒वीर॒मिति॑ सु॒ऽवीर॑म् ॥२९ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्ताव्यग्निर्नराँ सुशेवो वैश्वानर ऋषिभिः सोमगोपाः । अद्वेषे द्यावापृथिवी हुवेम देवा धत्त रयिमस्मे सुवीरम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
अस्तावि। अग्निः। नराम्। सुशेव इति सुऽशेवः। वैश्वानरः। ऋषिभिरित्यृषिऽभिः। सोमगोपा इति सोमऽगोपाः। अद्वेषेऽइत्यद्वेषे। द्यावापृथिवीऽइति द्यावापृथिवी। हुवेम। देवाः। धत्त। रयिम्। अस्मेऽइत्यस्मे। सुवीरमिति सुऽवीरम्॥२९॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तत्सङ्गेन किं भवतीत्याह॥
अन्वयः
हे देवाः! यैर्युष्माभिर्ऋषिभिर्यो नरां सुशेवो वैश्वानरोऽग्निरस्तावि, ये यूयमस्मे सुवीरं रयिं धत्त, तदाश्रिताः सोमगोपा वयमद्वेषे द्यावापृथिवी हुवेम॥२९॥
पदार्थः
(अस्तावि) स्तूयते (अग्निः) परमेश्वरः (नराम्) नायकानां विदुषाम्। (सुशेवः) सुष्ठु सुखः। शेवमिति सुखनामसु पठितम्॥ (निघं॰३.६) (वैश्वानरः) विश्वे सर्वे नरा यस्मिन् स एव (ऋषिभिः) वेदविद्भिर्विद्वद्भिः (सोमगोपाः) ऐश्वर्य्यपालकाः (अद्वेषे) द्वेष्टुमनर्हे प्रीतिविषये (द्यावापृथिवी) राजनीतिभूराज्ये (हुवेम) स्वीकुर्याम (देवाः) शत्रून् विजिगीषमाणाः (धत्त) धरत (रयिम्) राज्यश्रियम् (अस्मे) अस्मभ्यम् (सुवीरम्) शोभना वीरा यस्मात् तम्॥२९॥
भावार्थः
ये सच्चिदानन्दस्वरूपेश्वरसेवका धार्मिका विद्वांसः सन्ति, ते परोपकारकत्वादाप्ता भवन्ति, नहीदृशानां सङ्गमन्तरा सुस्थिरे विद्याराज्ये कर्त्तुं शक्नुवन्ति॥२९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उन विद्वानों के सङ्ग से क्या होता है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (देवाः) शत्रुओं को जीतने की इच्छा वाले विद्वानो! जिन तुम (ऋषिभिः) ऋषि लोगों ने (नराम्) नायक विद्वानों में (सुशेवः) सुन्दर सुखयुक्त (वैश्वानरः) सब मनुष्यों के आधार (अग्निः) परमेश्वर की (अस्तावि) स्तुति की है, जो तुम लोग (अस्मे) हमारे लिये (सुवीरम्) जिससे सुन्दर वीर पुरुष हों, उस (रयिम्) राज्यलक्ष्मी को (धत्त) धारण करो, उसके आश्रित (सोमगोपाः) ऐश्वर्य के रक्षक हम लोग (अद्वेषे) द्वेष करने के अयोग्य प्रीति के विषय में (द्यावापृथिवी) प्रकाशरूप राजनीति और पृथिवी के राज्य का (हुवेम) ग्रहण करें॥२९॥
भावार्थ
जो सच्चिदानन्दस्वरूप ईश्वर के सेवक, धर्मात्मा, विद्वान् लोग हैं, वे परोपकारी होने से आप्त यथार्थवक्ता होते हैं, ऐसे पुरुषों के सत्सङ्ग के विना स्थिर विद्या और राज्य को कोई भी नहीं कर सकता॥२९॥
विषय
सुवीररयि तथा अद्वेष
पदार्थ
‘वत्सप्री’ कहता है कि १. ( ऋषिभिः ) = तत्त्वद्रष्टा लोगों से ( अग्निः ) = वह अग्रेणी प्रभु ( अस्तावि ) = स्तुति किया जाता है। अतत्त्वार्थवित् ही विषयासक्त होता है, अतः उस प्रभु की ही पूजा करनी चाहिए जो [ क ] ( नराम् ) = उन्नति के मार्ग पर चलनेवालों का ( सुशेवः ) = उत्तम कल्याण करनेवाला है। [ ख ] ( वैश्वानरः ) = सभी मनुष्यों का हित चाहता है। [ विश्वनरहितः ] अथवा सभी को [ विश्वान् नरान् नयति ] उत्कृष्ट मार्ग पर ले-चलता है। प्रभु की आवाज को न सुननेवाला ही मार्ग-भ्रष्ट होता है। [ ग ] ( सोमगोपाः ) = हमारी वीर्यशक्ति [ vitality ] की रक्षा करनेवाला है। प्रभु के स्मरण से मनुष्य विषयासक्ति से बचता है और अपनी शक्ति की रक्षा करने में समर्थ होता है। २. प्रभु का स्मरण व स्तवन करते हुए हम ( अद्वेषे ) = द्वेष से रहित, प्रेम से पूर्ण ( द्यावापृथिव्यौ ) = द्युलोक व पृथिवीलोक को ( हुवेम ) = पुकारते हैं। हम चाहते हैं कि ब्रह्माण्ड में हमारा कोई शत्रु न हो—हम किसी के शत्रु न हों। हम द्वेष से अतीत हों। ३. द्वेषातीत होने के लिए ही हम चाहते हैं कि ( देवाः ) = हे देवो! ( अस्मे ) = हममें ( सुवीरम् ) = उत्तम वीरता से युक्त ( रयिम् ) = धन को ( धत्त ) = धारण करो। प्रत्येक देव हमें अपनी वह सम्पत्ति प्राप्त कराये जो हमें वीर बनानेवाली हो। अग्नि हमारी वाणी को सबल बनाए तो सूर्य आँखों को तथा दिशाएँ कानों को और चन्द्रमा मन को। इस प्रकार सब देव अपना-अपना दिव्य अंश प्राप्त कराके हमें उत्कृष्ट वीर बना दें, जिससे हम द्वेष से ऊपर उठ सकें।
भावार्थ
भावार्थ — १. हम प्रभु का स्तवन करें। २. द्वेष से ऊपर उठें। ३. देवों से शक्ति प्राप्त करें। देवों से शक्ति प्राप्त करके हम द्वेष से ऊपर उठें। निर्द्वेष बनकर सभी का भला चाहना व करना ही सच्चा प्रभु-कीर्तन है। यही व्यक्ति ‘वत्सप्री’ है—प्रभु का सच्चा प्यारा है।
विषय
उसको प्रस्तुत करना उसका गुण वर्णन ।
भावार्थ
( नरां सुशेवः ) मनुष्यों को उत्तम सुख देनेवाला, (वैश्र्वानर: ) समस्त मनुष्यों का हितकारी, प्रजापति, ( सोमगोपाः ) सोम, राजपद या राष्ट्र के ऐश्वर्य का रक्षक ( अग्निः ) तेजस्वी राजा, नेता (ऋषिभिः) मन्त्रदृष्टा विद्वान्, ऋषियों द्वारा ( अस्तावि ) स्तुति किया जाता है । हम ( द्यावा- पृथिवी ) राजा और प्रजा को पिता और माता के समान (अद्वेषे ) द्वेष रहित रहने का ( हुवेम ) उपदेश करते हैं । हे ( देवाः ) देवगण विद्वान् शासको ! विजयशील योद्धाओं और दानशील धनाढ्य पुरुषो! आप लोग (अस्ये ) हमें ( सुवीरम् रथिम् ) उत्तम वीर पुरुषों से युक्त ऐश्वर्य को ( धत्त ) प्रदान करो॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अग्निर्देवता । विराडार्षी त्रिष्टुप । धैवतः ॥
मराठी (2)
भावार्थ
जे लोक सच्चिदानंदस्वरूप ईश्वराचे सेवक, धर्मात्मा व विद्वान असतात ते परोपकारी असल्यामुळे आप्त व सत्यवचनी असतात अशा उत्तम पुरुषाच्या संगतीशिवाय स्थिर अशी विद्या व राज्य कोणीही प्राप्त करू शकत नाही.
विषय
त्या विद्वानांच्या संगतीमुळे काय काय लाभ प्राप्त होतात, पुढील मंत्रात हा विषय प्रतिपादित आहे -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (देवा:) शत्रूंना जिंकण्याची इच्छा करणाऱ्या विद्वज्जनहो, तुम्ही (ऋषिभि:) ऋषी (दूरद्रष्टा) आहात. तुम्ही (नराम्) प्रमुख विद्वज्जनांमध्ये (सुशेव:) सुखदायक आणि (वैश्वानर:) सर्वाधार अशा (अग्नि:) परमेश्वराची (अस्तावि) स्तुती केली आहे. (ईश्वराच्या स्तुती, प्रार्थना, उपासनेचे महत्त्व प्रतिपादित वा विस्तारीत केले आहे) तुम्ही (अस्मे) आम्हा सामान्यजनांसाठी (सुवीरम्) वीरपुरुषांना अन्य देणाऱ्या (रदिम्) संपत्तीच्या वा राज्याचा (धत्त) धारण करा. त्या संपत्तीच्या आश्रयात राहून (सोमगोपा:) त्या प्राप्त ऐश्वर्याचे रक्षण करीत आम्ही (अद्वेषे) द्वेष न करीत व परस्परात प्रेम वाढवीत (द्यावापृथिवी) राजनीती आणि पृथ्वीच्या राज्याची (हुवेम) कामना करू (तुमचे सार्वभौम राज्य व्हावे, अशी इच्छा वा प्रार्थना करू) ॥29॥
भावार्थ
भावार्थ - जे लोक सच्चिदान्दस्वरूप ईश्वराचे सेवक (उपासक), धर्मात्मा आणि विद्यमान असतात, ते परोपकारी अवश्य असतात आणि म्हणूनच ते विश्वसनीय आणि सत्यभाषी असतात. अशा लोकांच्या संमतीत राहिल्याशिवाय कोणीही राज्याला स्थिर व शांत ठेवू शकत नाही आणि विद्याही प्राप्त करू शकत नाही ॥29॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O learned sages, ye have applauded God, the Comforter of the people, and the Support of all. Give us wealth and heroic children ; whereby we, guardians of supremacy, free from hatred, attain to the sovereignty of the earth and political sagacity.
Meaning
Agni, worshipped by seers and sages, is the darling of humanity, auspicious and adorable. Omnipresent, universal and all-commanding, it is the guardian and promoter of the means of life, peace and joy. We invoke the powers of earth and heaven — powers free of hate and jealousy and sources of bliss. Great men of the world, brilliant and generous, guardians of the peace and prosperity of life, generate and hold for us the wealth and power of life and polity which creates a great nation and fearless humanity.
Translation
Bestower of happiness and benevolent to all men, protector of bliss, the adorable Lord has been praised by the sages. We hereby invoke heaven and earth free from malice. O bounties of Nature, may you bless us with good sons as well as riches. (1)
Notes
Astüvi, स्तुत:, praised. Soma, a legendary plant, which was crushed, its juice pressed out, strained and drunk as a gladdening beverage; also, bliss; moon also. Suviram, vira means brave; also son. With brave sons.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তৎসঙ্গেন কিং ভবতীত্যাহ ॥
পুনঃ সেই বিদ্বান্দিগের সঙ্গ করিয়া কী হয় এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে (দেবাঃ) শত্রুদিগের জিতিবার ইচ্ছাকারী বিদ্বান্গণ ! যে সব (ঋষিভিঃ) ঋষি তোমরা (নরাম্) নায়ক বিদ্বান্দিগের মধ্যে (সুশেবঃ) সুষ্ঠুসুখযুক্ত (বৈশ্বানরঃ) সর্ব মনুষ্যের আধার (অগ্নিঃ) পরমেশ্বরের (অস্তাবি) স্তুতি করিয়াছ, যাহা তোমরা (অস্মে) আমাদের জন্য (সুবীরম্) যদ্দ্বারা সুন্দর বীরপুরুষ হয় সেই (রয়িম্) রাজলক্ষ্মীকে (ধত্ত) ধারণ কর । তাহার আশ্রিত (সোমগোপাঃ) ঐশ্বর্য্যের রক্ষক আমরা (অদ্বেষে) দ্বেষ করিবার অযোগ্য প্রীতি বিষয়ে (দ্যাবাপৃথিবী) প্রকাশরূপ রাজনীতি এবং পৃথিবীর রাজ্যের (হবেম) গ্রহণ করি ॥ ২ঌ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- যাহারা সচ্চিদানন্দ স্বরূপ ঈশ্বরের সেবক ধর্মাত্মা বিদ্বান্ লোক তাহারা পরোপকারী হওয়ার ফলে আপ্ত যথার্থবক্তা হন্ এমন পুরুষদিগের সৎসঙ্গ ব্যতিরেকে স্থির বিদ্যা এবং রাজ্যকে কেউ করিতে পারে না ॥ ২ঌ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
অস্তা॑ব্য॒গ্নির্ন॒রাꣳ সু॒শেবো॑ বৈশ্বান॒রऽঋষি॑ভিঃ॒ সোম॑গোপাঃ ।
অ॒দ্বে॒ষে দ্যাবা॑পৃথি॒বী হু॑বেম॒ দেবা॑ ধ॒ত্ত র॒য়িম॒স্মে সু॒বীর॑ম্ ॥ ২ঌ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
অস্তাবীত্যস্য বৎসপ্রীর্ঋষিঃ । অগ্নির্দেবতা । বিরাডার্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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