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यजुर्वेद अध्याय - 12

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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 96
    ऋषिः - वरुण ऋषिः देवता - वैद्या देवताः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    ओष॑धयः॒ सम॑वदन्त॒ सोमे॑न स॒ह राज्ञा॑। यस्मै॑ कृ॒णोति॑ ब्राह्म॒णस्तꣳ रा॑जन् पारयामसि॥९६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ओष॑धयः। सम्। अ॒व॒द॒न्त॒। सोमे॑न। स॒ह। राज्ञा॑। यस्मै॑। कृ॒णोति॑। ब्रा॒ह्म॒णः। तम्। रा॒ज॒न्। पा॒र॒या॒म॒सि॒ ॥१६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ओषधयः समवदन्त सोमेन सह राज्ञा । यस्मै कृणोति ब्राह्मणस्तँ राजन्पारयामसि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ओषधयः। सम्। अवदन्त। सोमेन। सह। राज्ञा। यस्मै। कृणोति। ब्राह्मणः। तम्। राजन्। पारयामसि॥१६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 96
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    किं कृत्वौषधिविज्ञानं वर्द्धेतेत्याह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! याः सोमेन राज्ञा सह वर्त्तमाना ओषधयः सन्ति, तद्विज्ञानार्थं भवन्तः समवदन्त। हे राजन्! वयं वैद्या ब्राह्मणो यस्मै ओषधीः कृणोति, तं रोगिणं रोगात् पारयामसि॥९६॥

    पदार्थः

    (ओषधयः) सोमाद्याः (सम्) (अवदन्त) परस्परं संवादं कुर्य्युः (सोमेन) (सह) (राज्ञा) प्रधानेन (यस्मै) रोगिणे (कृणोति) (ब्राह्मणः) वेदोपवेदवित् (तम्) (राजन्) प्रकाशमान (पारयामसि) रोगसमुद्रात् पारं गमयेम॥९६॥

    भावार्थः

    वैद्याः परस्परं प्रश्नोत्तरैरोषधीविज्ञानं सम्यक् कृत्वा रोगेभ्यो रोगिणः पारं नीत्वा सततं सुखयेयुः, यश्चैतेषां विद्वत्तमः स्यात्, स सर्वानायुर्वेदमध्यापयेत्॥९६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    क्या करने से ओषधियों का विज्ञान बढ़े, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्य लोगो! जो (सोमेन) (राज्ञा) सर्वोत्तम सोमलता के (सह) साथ वर्त्तमान (ओषधयः) ओषधि हैं, उनके विज्ञान के लिये आप लोग (समवदन्त) आपस में संवाद करो। हे वैद्य (राजन्) राजपुरुष! हम लोग (ब्राह्मणः) वेदों और उपवेदों का वेत्ता पुरुष। (यस्मै) जिस रोगी के लिये इन ओषधियों का ग्रहण (कृणोति) करता है, (तम्) उस रोगी को रोगसागर से उन ओषधियों से (पारयामसि) पार पहुँचाते हैं॥९६॥

    भावार्थ

    वैद्य लोगों को योग्य है कि आपस में प्रश्नोत्तरपूर्वक निरन्तर ओषधियों के ठीक-ठीक ज्ञान से रोगों से रोगी पुरुषों को पार कर निरन्तर सुखी करें। और जो इन में उत्तम विद्वान् हो, वह सब मनुष्यों को वैद्यकशास्त्र पढ़ावे॥९६॥

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    भावार्थ

    ( ओषधय: ) वीर्य धारण करनेवाली ओषधियां ( सोमेन ) सोमलता के साथ ( सम अवदन्त ) मानो संवाद करती हैं कि हे ( राजन् ) हे राजन्, सोम ! ( ब्राह्मण: ) वेदज्ञ विद्वान् ब्राह्मण ( यस्मै कृणोति ) जिसको प्रदान करता है ( तं ) उसको हम ( पारयामसि ) पालन करती हैं। वीर्यवती प्रजाएं ( सोमेन राज्ञा मह ) प्रेरक बलवान् राजा के साथ मिलकर ( सम् अवदन्त ) आलाप करती हैं कि । ब्राह्मणः यस्मै कृणोति ) वेदज्ञ पुरुष जिस प्रयोजन या देश को रक्षा के लिये हमें दीक्षित करता है । हे राजन् ( तं पारयामसि ) उसका हम पालन करती हैं । स्त्रियों के पक्ष में- वीर्य धारण करने में समर्थ लता के समान स्त्रियां वधू के इच्छुक तेजस्वी पुरुष के साथ ( सम् अवदन्त ) संगत होकर प्रतिज्ञा करती हैं कि ( यस्मै ) जिस गृहस्थ कार्य के लिये हमें (ब्राह्मण: ) वेदज्ञ विद्वान् संस्कार द्वारा प्रदान करता है है राजन् ! वर ! ( तं पारयामसि ) हम उसको संसार सागर से तराती हैं । उरूका पालन करती हैं ।

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    विषय

    ओषधियों की ओषधिराज से बातचीत

    पदार्थ

    १. 'सोम' ओषधियों का राजा माना जाता है। यहाँ काव्यमय भाषा में उन ओषधियों को चेतन मानकर ओषधियों की ओषधिराज- सोम से वार्तालाप का उल्लेख करते हैं कि (ओषधयः) = ओषधियाँ (राज्ञा सोमेन सह) = अपने राजा सोम के साथ (समवदन्त) = बातचीत करती हैं कि २. (यस्मै) = जिस भी रोगी के लिए (ब्राह्मण:) = एक ज्ञानी वैद्य (कृणोति) = हमें करता है, अर्थात् हमारे पत्र, पुष्प, फल, मूल आदि से जिस भी रोगी की चिकित्सा करता है, हे (राजन्) = सोम! (तं पारयामसि) = उस रोगी को हम रोग से पार कर देती हैं। उसके रोग को समाप्त करके उसे हम फिर से जिला देती हैं। ३. यहाँ मन्त्र में 'ब्राह्मण: ' शब्द का बड़ा महत्त्व है। वैद्य के लिए विद्वान्- अपनी विद्या में निष्णात होना आवश्यक है । 'नीम हकीम तो खतराये जान ही है'। साथ ही उसे आस्तिक वृत्ति का भी होना चाहिए। अन्यथा वह रोगी के स्वास्थ्य की अपेक्षा अपनी जेब के स्वास्थ्य का अधिक ध्यान करेगा।

    भावार्थ

    भावार्थ- वैद्य का विद्वान् व आस्तिक होना आवश्यक है। ऐसा ही वैद्य औषध प्रयोग से रोगी को नीरोग कर पाएगा।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    वैद्य लोकांनी आपापसात प्रश्नोत्तररूपाने औषधांचे यथायोग्य ज्ञान करून घ्यावे व रोगी माणसांचे रोग सतत दूर करून त्यांना सुखी करावे. त्यापैकी जो विद्वान असेल त्याने वैद्यकशास्त्र शिकवावे.

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    विषय

    कोणत्या उपायाद्वारे व यत्नाद्वारे औषधिविज्ञान वाढेल, पुढील मंत्रात याविषयी प्रतिपादन केले आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, (सोमेन) (राज्ञा) सोमलता की जी औषधींचा राजा आहे, सोमलता की जी औषधींचा राजा आहे, त्या औषधी (सह) सोबत वा व्यतिरिक्त ज्या अन्य (ओषधय:) औषधी आहेत, त्यांचे ज्ञान-विज्ञान (गुणधर्म) विषयी तुम्ही सर्वजण (समवदन्त) आपसात चर्चा वा परिसंवाद करीत जा. हे वैद्य (राजन्‌) हे राजपुरुष, (ब्राह्मण:) वेद आणि युर्वेद आदी उपवेद यांचा ज्ञाता (उपवेद-आयुर्वेद, धनुर्वेद, गंधर्ववेद आणि स्थापत्यवेद) जो विद्वान मनुष्य आहे, तो (यस्मै) ज्या रोग्यासाठी या औषधींचा प्रयोग (कृणोति) करतो, (तम्‌) त्या रोग्याला (आम्ही राजपुरुष) त्या औषधी देऊन (पारयामसि) रोगरुप सागराच्या पैलतीरी नेही (रोग्याला औषध देणे, त्याची सेवा-परिचर्या करून त्यास रोगमुक्तीसाठी राजाधिकारी वा राजसेवक मदत करतात ॥96॥

    भावार्थ

    भावार्थ - वैद्य जनांसाठी आवश्‍यक आहे की त्यांनी आपसात प्रश्‍नोत्तर (संवाद, चर्चा, परिसंवाद आदींच्या) रुपाने औषधींच्या गुणधर्माविषयी निरंतर अधिकाधिक शोध करावा आणि रोग्यांना, रोगमुक्त करून सुखी करावे. तसेच वैद्यांमधे जो उत्तम विद्वान अनुभवी वैद्य असेल, त्याने सर्वांना वैद्यक शास्त्र शिकवावे. ॥96॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O physicians, discuss together the healing properties of the herbs, with Soma as their head. O King we save from death the man whose cure a learned physician knowing the Vedas and up-Vedas undertakes.

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    Meaning

    Herbs and medicines along with their chief, soma, power of vitality, say: O Soma, king of herbs, whoever the patient for whom the learned physician has prepared the cure, let us take the person across the pain of suffering.

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    Translation

    The herbs say to the blissful Lord, their sovereign: "О Lord, we save the man, whose treatment a righteous expert undertakes. "(1)

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    बंगाली (1)

    विषय

    কিং কৃত্বৌষধিবিজ্ঞানং বর্দ্ধেতেত্যাহ ॥
    কী করিলে ওষধি বিজ্ঞান বৃদ্ধি পাইবে এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যাহা (সোমেন) (রাজ্ঞা) সর্বোত্তম সোমলতার (সহ) সহ বর্ত্তমান (ওষধয়ঃ) ওষধি, উহাদের বিজ্ঞান হেতু আপনারা (সমবদন্তু) পরস্পর সংবাদ কর । হে বৈদ্য (রাজন্) রাজপুরুষ ! আমরা (ব্রাহ্মণঃ) বেদ ও উপবেদের জ্ঞাতা পুরুষ (য়স্মৈ) যে রুগীর জন্য এই সব ওষধিগুলির গ্রহণ (কৃণোতি) করি (তম্) সেই রুগীকে রোগসাগর হইতে সেই ওষধিগুলির সাহায্যে (পারয়ামসি) উত্তীর্ণ করি ॥ ঌ৬ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- বৈদ্যগণের উচিত যে, পারস্পরিক প্রশ্নোত্তরপূর্বক নিরন্তর ওষধিগুলির সম্যক্ জ্ঞান দ্বারা রুগী ব্যক্তিকে রোগ হইতে সতত উত্তীর্ণ করিয়া সুখী করিবে । এবং যে ইহাদের মধ্যে উত্তম বিদ্বান্ সে সমস্ত মনুষ্যদিগকে বৈদ্যক শাস্ত্র অধ্যয়ন করাইবে ॥ ঌ৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ওষ॑ধয়ঃ॒ সম॑বদন্ত॒ সোমে॑ন স॒হ রাজ্ঞা॑ ।
    য়স্মৈ॑ কৃ॒ণোতি॑ ব্রাহ্ম॒ণস্তꣳ রা॑জন্ পারয়ামসি ॥ ঌ৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ওষধয় ইত্যস্য বরুণ ঋষিঃ । বৈদ্যা দেবতাঃ । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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