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यजुर्वेद अध्याय - 12
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यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 77
ऋषिः - भिषगृषिः
देवता - वैद्यो देवता
छन्दः - निचृदनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
92
ओष॑धीः॒ प्रति॑मोदध्वं॒ पुष्प॑वतीः प्र॒सूव॑रीः। अश्वा॑ऽइव स॒जित्व॑रीर्वी॒रुधः॑ पारयि॒ष्ण्वः॥७७॥
स्वर सहित पद पाठओष॑धीः। प्रति॑। मो॒द॒ध्व॒म्। पुष्प॑वती॒रिति॒ पुष्प॑ऽवतीः। प्र॒सूव॑री॒रिति॑ प्र॒ऽसूव॑रीः। अश्वाः॑ऽइ॒वेत्यश्वाः॑ऽइव। स॒जित्व॑री॒रिति॑ स॒ऽजित्व॑रीः। वी॒रुधः॑। पा॒र॒यि॒ष्ण्वः᳖ ॥७७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ओषधीः प्रति मोदध्वम्पुष्पवतीः प्रसूवरीः । अश्वाऽइव सजित्वरीर्वीरुधः पारयिष्ण्वः ॥
स्वर रहित पद पाठ
ओषधीः। प्रति। मोदध्वम्। पुष्पवतीरिति पुष्पऽवतीः। प्रसूवरीरिति प्रऽसूवरीः। अश्वाःऽइवेत्यश्वाःऽइव। सजित्वरीरिति सऽजित्वरीः। वीरुधः। पारयिष्ण्वः॥७७॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
कीदृश्य ओषधयः सेव्या इत्याह॥
अन्वयः
हे मनुष्याः यूयमश्वा इव सजित्वरीर्वीरुधः पारयिष्णवः पुष्पवतीः प्रसूवरीरोषधीः संसेव्य प्रतिमोदध्वम्॥७७॥
पदार्थः
(ओषधीः) सोमादीन् (प्रति) (मोदध्वम्) आनन्दयत (पुष्पवतीः) प्रशस्तानि पुष्पाणि यासां ताः (प्रसूवरीः) सुखप्रसाविकाः (अश्वा इव) यथा तुरङ्गा (सजित्वरीः) शरीरैः सह संयुक्ता रोगान् जेतुं शीलाः (वीरुधः) सोमादीन् (पारयिष्ण्वः) रोगजदुःखेभ्यः पारं नेतुं समर्थाः॥७७॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। यथाऽश्वारूढा वीराः शत्रून् जित्वा विजयं प्राप्याऽऽनन्दन्ति, तथा सदौषधसेविनः पथ्यकारिणो जितेन्द्रिया जना आरोग्यमवाप्य नित्यं मोदन्ते॥७७॥
हिन्दी (3)
विषय
कैसी ओषधियों का सेवन करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे मनुष्यो! तुम लोग (अश्वा इव) घोड़ों के समान (सजित्वरीः) शरीरों के साथ संयुक्त रोगों को जीतने वाली (वीरुधः) सोमलता आदि (पारयिष्ण्वः) दुःखों से पार करने के योग्य (पुष्पवतीः) प्रशंसित पुष्पों से युक्त (प्रसूवरीः) सुख देने हारी (ओषधीः) ओषधियों को प्राप्त होकर (प्रतिमोदध्वम्) नित्य आनन्द भोगो॥७७॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे घोड़ों पर चढ़े वीर पुरुष शत्रुओं को जीत, विजय को प्राप्त हो के आनन्द करते हैं, वैसे श्रेष्ठ ओषधियों के सेवन और पथ्याहार करने हारे जितेन्द्रिय मनुष्य रोगों से छूट आरोग्य को प्राप्त हो के नित्य आनन्द भोगते हैं॥७७॥
भावार्थ
हे ( ओषधीः ) ओषधियो ! तुम ( पुष्पवतीः ) फूलोंवाली ( प्रसूवरी: ) उत्तम फल उत्पन्न करनेहारी हो । ( अश्वाः इव ) अश्वारोही लोग जिस प्रकार ( सजित्वरी: ) परस्पर मिलकर युद्ध में विजय करते हैं और ( पारयिष्णवः ) शत्रु सेना के पार करनेवाले वीर ( वीरुधः ) शत्रुओं को आगे बढ़ने से रोकते हैं उसी प्रकार हे ओषधियो ! तुम भी रोगों पर मिलकर विजय करनेवाली, रोगों को रोकनेवाली और कष्टों से पार करनेवाली हो । हे (ओषधीः) वीर्यवान् प्रजाओ ! आप लताओं के समान ( पुष्पवती: प्रसूवरीः सत्यः प्रमोदध्वम् ) ऐश्वर्यवान् शोभावान् और उत्तम सन्तानों को उत्पन्न करनेवाली होओ। हे वीर प्रजाओ ! ( अश्वाः इव सजित्वरी: ) अश्वों, घुड़सवारों के समान परस्पर मिलकर एक दूसरे का हृदय जीतनेवाली ( वीरुधः ) विविध उपायों से बीज वपन करके उत्पन्न होनेवाली एवं ( पारयिष्णवः ) एक दूसरे को और राष्ट्र को पालन करनेहारी होओ। इसी प्रकार स्त्रियां भी लता और औषधियों के समान फलें और फूलें पतियों का हृदय जीतें और संसार के कार्यों से पार लगाने या पालन करने में समर्थ हों ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिदेवते पूर्ववत् । निचृदनुष्टुप् । गान्धारः।
विषय
स-जित्वता-सह विजय
पदार्थ
१. (पुष्पवती:) = प्रशस्त फूलोंवाली (प्रसूवरी:) = प्रशस्त फलोंवाली (ओषधीः प्रति) = ओषधियों का लक्ष्य करके (मोदध्वम्) = आनन्दित होके वैद्य रोगियों से कहता है कि ये ओषधियाँ अपने फूलों व फलों से तुम्हें भी फूला फला करनेवाली बनेंगी। तुम्हारे शरीर भी निर्दोष होंगे । जिस प्रकार ये ओषधियाँ प्रसन्न प्रतीत होती हैं तुम भी इसी प्रकार नीरोग होकर प्रसन्न हो जाओगे । २. ये ओषधियाँ (अश्वाः इव) = घोड़ों की भाँति - जिस प्रकार संग्राम में घोड़े विजय करानेवाले होते हैं उसी प्रकार (सजित्वरी:) = [सह विजयशीलाः] ये ओषधियाँ भी पथ्य के साथ रोगों को जीतनेवाली हैं। घोड़ा सवार के साथ युद्ध को जीतता है, इसी प्रकार ये ओषधियाँ पथ्य व उत्तम वैद्य के साथ रोगों को जीतती हैं। ३. (वीरुधः) = [विविधान् रोगान् सन्धन्ति इति] ये ओषधियाँ तुम्हारे विविध रोगों को रोकनेवाली हैं। ४. (पारयिष्णवः) = ये रोगरूप विघ्नों से हमें पार ले जानेवाली हैं। रोगों से पार ले जाकर ये हमें जीवन के अन्त तक ले चलती हैं।
भावार्थ
भावार्थ- ओषधियाँ रोगों को नष्ट करनेवाली हैं। ये तो हैं ही वीरुध = विविध रोगों को साथ मिलकर रोकनेवाली, और ओष = रोगदहन करने के कारण ओषधि हैं, परन्तु ये हैं सजित्वरी = जीतनेवाली । पथ्य और वैद्य इनके सहायक हों तभी ये रोगों को जीतती हैं।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे घोड्यावर स्वार होऊन वीर पुरुष शत्रूंना जिंकतात व विजय प्राप्त करून आनंदी होतात तसे श्रेष्ठ औषधांच्या सेवनाने व पथ्याहाराने जितेंद्रिय माणसे रोगांपासून मुक्त होऊन सदैव आनंदी राहतात.
विषय
कोणत्या प्रकारच्या औषधींचे सेवन करावे, पुढील मंत्रात याविषयी प्रतिपादन केले आहे -
शब्दार्थ
हे मनुष्यांनो, तुम्ही (अश्वाश्व) घोड्याप्रमाणे (सजित्वरी:) शरीराला लागलेल्या रोगांना जिंकणारे व्हा (घोड्याच्या शरीरातील रोग शीघ्र बरे होतात अथवा घोड्यावर स्वार होणारा योद्धा-ज्याप्रमाणे शत्रूंना जिंकतो, त्याप्रमाणे तुम्ही रोगांवर विजय मिळवा.) तसेच (वीरुध:) सोमलता आदी (पारदिष्ण्व:) दु:खापासून सोडविणाऱ्या (पुष्पवती:) प्रशंसनीय गुणकारी फुलांनी युक्त आणि (प्रसूवरी:) सुखदायक ज्या (ओषधी:) औषधी आहेत, त्या प्राप्त करा आणि (प्रतिमोदयस्व) नित्य आनंदित रहा ॥77॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात उपमा अलंकार आहे. ज्याप्रमाणे अश्वरोही वीर शत्रूंवर विजय मिळवून सुखी व आनंदीत होतात, त्याप्रमाणे उत्तम औषधींचे सेवन करणारे आणि पथ्य पाळणारे जितेंद्रिय लोक रोगांपासून मुक्त होऊन आरोग्य प्राप्त करतात व नित्य आनंदमग्न असतात ॥77॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O people derive happiness by the use of herbs full of blossoms and fruits, conquerors of diseases like horses, and assuagers of physical discomforts.
Meaning
All of you men and women, herbs, creepers and plants such as soma, in full bloom, rich in fruit and medicine, fast and victorious over disease take you across all ailments and sorrow. Use them, be healthy and strong and, like the victorious men of horse, rejoice and be grateful to them.
Translation
O herbs, may you be glad and joyful, laden with flowers and fruit. Like war-horses, may you be quick-acting, remover of diseases and leading us successfully across the distress. (1)
बंगाली (1)
विषय
কীদৃশ্য ওষধয়ঃ সেব্যা ইত্যাহ ॥
কেমন ওষধীসমূহের সেবন করা উচিত এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! তোমরা (অশ্বা ইব) অশ্ব সদৃশ (সজিত্বরীঃ) শরীরের সঙ্গে সংযুক্ত রোগে জয়লাভ কারী (বীরুধঃ) সোমলতাদি (পারয়িষ্ব×ঃ) দুঃখ হইতে অবতীর্ণ করিবার যোগ্য (পুষ্পবতীঃ) প্রশংসিত পুষ্পযুক্ত (প্রসুবরীঃ) সুখ দায়িকা (ওষধীঃ) ওষধিগুলি প্রাপ্ত হইয়া (প্রতিমোদধ্বম্) নিত্য আনন্দ ভোগ কর ॥ ৭৭ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । যেরূপ অশ্বারূঢ় বীর পুরুষ শত্রুদেরকে জিতিয়া বিজয় প্রাপ্ত হইয়া আনন্দ করে সেইরূপ শ্রেষ্ঠ ওষধিগুলির সেবন ও পথ্যাহারকারী জিতেন্দ্রিয় মনুষ্য রোগ হইতে মুক্তিলাভ করিয়া আরোগ্য প্রাপ্ত হইয়া নিত্য আনন্দ ভোগ করে ॥ ৭৭ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
ওষ॑ধীঃ॒ প্রতি॑ মোদধ্বং॒ পুষ্প॑বতীঃ প্র॒সূব॑রীঃ ।
অশ্বা॑ऽইব স॒জিত্ব॑রীর্বী॒রুধঃ॑ পারয়ি॒ষ্ব×ঃ᳖ ॥ ৭৭ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ওষধীরিত্যস্য ভিষগৃষিঃ । বৈদ্যো দেবতা । নিচৃদনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
গান্ধারঃ স্বরঃ ॥
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