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यजुर्वेद अध्याय - 12

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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 81
    ऋषिः - भिषगृषिः देवता - वैद्यो देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    116

    अ॒श्वा॒व॒ती सो॑माव॒तीमू॒र्जय॑न्ती॒मुदो॑जसम्। आवि॑त्सि॒ सर्वा॒ऽओष॑धीर॒स्माऽअ॑रि॒ष्टता॑तये॥८१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒श्वा॒व॒तीम्। अ॒श्वा॒व॒तीमित्य॑श्वऽव॒तीम्। सो॒मा॒व॒तीम्। सो॒म॒व॒तीमिति॑ सो॑मऽव॒तीम्। ऊ॒र्जय॑न्तीम्। उदो॑जस॒मित्युत्ऽओ॑जसम्। आ। अ॒वि॒त्सि॒। सर्वाः॑। ओष॑धीः। अ॒स्मै। अ॒रि॒ष्टता॑तय॒ इत्य॑रि॒ष्टऽता॑तये ॥८१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्वावतीँ सोमावतीमूर्जयन्तीमुदोजसम् । आवित्सि सर्वा ओषधीरस्मा अरिष्टतातये ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अश्वावतीम्। अश्वावतीमित्यश्वऽवतीम्। सोमावतीम्। सोमवतीमिति सोमऽवतीम्। ऊर्जयन्तीम्। उदोजसमित्युत्ऽओजसम्। आ। अवित्सि। सर्वाः। ओषधीः। अस्मै। अरिष्टतातय इत्यरिष्टऽतातये॥८१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 81
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    मनुष्यैः सदा पुरुषार्थ उन्नेय इत्याह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! यथाऽहमरिष्टतातयेऽश्वावतीं सोमावतीमुदोजसमूर्जयन्तीं महौषधीमावित्सि, सर्वा ओषधीरस्मै यूयमपि प्रयतध्वम्॥८१॥

    पदार्थः

    (अश्वावतीम्) प्रशस्तशुभगुणयुक्ताम्, अत्रोभयत्र मतौ दीर्घः (सोमावतीम्) बहुरससहिताम् (ऊर्जयन्तीम्) बलं प्रापयन्तीम् (उदोजसम्) उत्कृष्टं पराक्रमम् (आ) (अवित्सि) जानीयाम् (सर्वाः) अखिलाः (ओषधीः) सोमयवाद्याः (अस्मै) (अरिष्टतातये) रिष्टानां हिंसकानां रोगाणामभावाय॥८१॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्याणामादिममिदं कर्माऽस्ति यद्रोगाणां निदानचिकित्सौषधपथ्यसेवनमोषधीनां गुणज्ञानं यथावदुपयोजनं च यतो रोगनिवृत्या निरन्तरं पुरुषार्थोन्नतिः स्यादिति॥८१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    मनुष्यों को नित्य पुरुषार्थ बढ़ाना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! जैसे मैं (अरिष्टतातये) दुःखदायक रोगों के छुड़ाने के लिये (अश्वावतीम्) प्रशंसित शुभगुणों से युक्त (सोमावतीम्) बहुत रस से सहित (उदोजसम्) अति पराक्रम बढ़ाने हारी (ऊर्जयन्तीम्) बल देती हुई श्रेष्ठ ओषधीयों को (आ) सब प्रकार (अवित्सि) जानूं कि जिससे (सर्वाः) सब (ओषधीः) ओषधी (अस्मै) इस मेरे लिये सुख देवें, इसलिये तुम लोग भी प्रयत्न करो॥८१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि रोगों का निदान, चिकित्सा, ओषधि और पथ्य के सेवन से निवारण करें तथा ओषधियों के गुणों का यथावत् उपयोग लेवें कि जिससे रोगों की निवृत्ति होकर पुरुषार्थ की वृद्धि होवे॥८१॥

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    भावार्थ

    मैं ( अश्वावतीम् ) अति शीघ्र शरीर में व्यापने वाले गुणों से युक्त और ( सोमावतीम् ) वीर्यवती और ( ऊर्जयन्तीम् ) बल पराक्रम- शालिनी, ( उद् ओजसम् ) उत्कृष्ट ओजधातु की वृद्धि करनेवाली और उत्तम पराक्रम करनेहारी ( ओषधीः ) सन्ताप, बल को धारण करनेवाली ओषधियों को ( अरिष्टतातये ) हिंसक रोगों के नाश करने के लिये ( आवित्सि ) सब प्रकार से सब स्थानों से प्राप्त करूं। इसी प्रकार समस्त ( ओषधीः ) वीर्यवती प्रजाओं और सेनाओं को ( अरिष्टतातये ) अपने राष्ट्र के नाश होने से बचाने के लिये प्राप्त करूं ( अष्मावतीम् ) क्षत्रियों से पूर्ण अथवा अश्मा=वज्र या शास्त्रों से युक्त ( सोमावतीम् ) सेना नायक से युक्त और ( उदोजसम् ) उत्कृष्ट पराक्रम युक्त ( ऊर्जयन्ती ) बलशालिनी सेना को मैं प्राप्त करूं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    आथर्वणो भिषग् ऋषिः। वैद्यः, ओषधयो वा देवता । अनुष्टुप् । गांधारः ॥

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    विषय

    चतुर्विधं भेषजम्

    पदार्थ

    १. गत मन्त्र का वैद्य कहता है कि मैं (अश्वावतीम्) = शक्ति देनेवाली ['अश्व' शब्द शक्ति का प्रतीक है], जो ओषधि मनुष्य को शक्ति सम्पन्न बनाती है, उसको (आवित्सि) = अच्छी प्रकार जानता हूँ। २. (सोमावतीम्) = सौम्य रसों से युक्त, सोमरसवाली, जो मनुष्य की उत्तेजना व तिलमिलाहट को कम करती है उन ओषधियों को भी जानता हूँ। ३. मैं (ऊर्जयन्तीम्) = [ऊर्ज बलप्राणनयोः] बल व प्राणशक्ति को देनेवाली ओषधियों को जानता हूँ। ४. (उदोजसम्) = उद्गत ओजवाली ओषधियों को भी जानता हूँ। ५. इस प्रकार इन चार गुणों से युक्त (सर्वाः ओषधी:) = सब ओषधियों को (अस्मै) = इस पुरुष के लिए (अरिष्ट तातये) = रोग के विनाश के लिए-अहिंसा के लिए प्राप्त कराता हूँ। ६. ओषधियों के चार मुख्य गुण हैं- ये [क] पुरुष = को शक्तिशाली बनाती हैं, [ख] घबराहट को दूर कर शान्त करती हैं, [ग] बल और प्राणशक्ति सम्पन्न हैं, [घ] मनुष्य को ओजस्वी बनाती हैं । ६. वैद्य को इस प्रकार की सब ओषधियों को जानना व रखना है, तभी वह यथास्थान सबका प्रयोग करके रोगी को व्याधि का शिकार होने से बचा सकेगा।

    भावार्थ

    भावार्थ- वैद्य सब ओषधियों को जाने और उनके ठीक प्रयोग से रोगी को सुखी करे ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी रोगनिदान करून चिकित्सा करावी व औषध आणि पथ्यसेवन यांनी रोगनिवारण करावे. औषधांचा गुण जाणून त्याचा यथायोग्य उपयोग करावा व रोगांचा नाश करून पुरुषार्थ वाढवावा.

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    विषय

    माणसांनी नित्य नेहमी पुरुषार्थ करीत रहावे, याविषयी पुढील मंत्रात प्रतिपादन केले आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - औषधींचे गुणधर्म जाणून घेण्याची इच्छा असलेला एक मनुष्य म्हणतो) हे मनुष्यांनो (माझ्या मित्रांनो) मी (अरिष्टतातये) दु:खदायी रोगांपासून मुक्ती मिळविण्यासाठी (अश्‍वावतीम्‌) प्रशंसित गुणधर्म असलेल्या (सोमानतीम्‌) रसाने परिपूर्ण (उदोजसम्‌) शक्तिसामर्थ्य वाढविणाऱ्या आणि (ऊर्जयन्तीम्‌) शक्तिदायक उत्तम औषधीचे (आ) सर्वदृष्टीने परिपूर्ण ज्ञान (अवित्सि) प्राप्त करीत आहे, यासाठी की त्या (सर्वा:) सर्व (औषधी:) औषधी (अस्मै) या माझ्या देहासाठी सुखकारी व्हाव्यात. माझ्याप्रमाणे तुम्ही लोकदेखील त्या औषधींचे ज्ञान प्राप्त करा. (आणि उपयोग करून रोगनिवारण करा) ॥81॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. मनुष्यांनी (वैद्याकडून) रोगांचे निदान करून घ्यावे आणि त्यांच्याकडून चिकित्सा, औषध योजना करून घेऊन पथ्य-पाणी विषयी नियमांचे पालन करून रोग दूर करावेत. तसेच औषधीच्या गुणांचा यथोचित लाभ घ्यावा. त्यामुळे रोगनिवृत्ती होऊन पुरुषार्थासाठी शक्ती संपादित करता येईल ॥81॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    May I know for the health of this patient, all medicines, efficacious in nature, full of juice, rich in nourishments, and possessing strength-giving power. May they all give me ease.

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    Meaning

    Medicinal herb is that which is powerfully efficacious, nourishing and rejuvenating, strengthening and lustrously invigorating. Physician, know and find all such herbs for the health and immunity of the sick and the needy.

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    Translation

    Aphrodisiacs and tranquilizers, stimulants and tonics, І have brought all the herbs here for removing the disease of this patient. (1)

    Notes

    Asvavatin, वाजीकरणीं, aphrodisiac. Somavatim, brinwing peace; tranquilizer

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    बंगाली (1)

    विषय

    মনুষ্যৈঃ সদা পুরুষার্থ উন্নেয় ইত্যাহ ॥
    মনুষ্যদিগকে নিত্য পুরুষকার বৃদ্ধি করা উচিত এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যেমন আমি (অরিষ্ট তাতয়ে) দুঃখদায়ক রোগ হইতে মুক্তি প্রদান করিবার জন্য (অশ্বাবতীম্) প্রশংসিত শুভগুণযুক্ত (সোমাবতীম্) বহু রস সহিত (উদোজসম্) অতি পরাক্রম বৃদ্ধিকারী (ঊর্জয়ন্তীম্) বল প্রদানকারী শ্রেষ্ঠ ওষধীগুলিকে (আ) সর্ব প্রকার (অবিৎসি) জানি যে যদ্দ্বারা (সর্বাঃ) সকল (ওষধীঃ) ওষধী (অস্মৈ) এই আমার জন্য সুখপ্রদ হউক । এই জন্য তুমিও সচেষ্ট হও ॥ ৮১ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । মনুষ্যদিগের উচিত যে, রোগের নিদান, চিকিৎসা, ওষধি ও পথ্যের সেবন দ্বারা নিবারণ করিবে তথা ওষধীগুলির গুণের যথাবৎ উপযোগ লইবে যাহাতে রোগের নিবৃত্তি হইয়া পুরুষকারের বৃদ্ধি হয় ॥ ৮১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অ॒শ্বা॒ব॒তীᳬं সো॑মাব॒তীমূ॒র্জয়॑ন্তী॒মুদো॑জসম্ ।
    আऽবি॑ৎসি॒ সর্বা॒ऽওষ॑ধীর॒স্মাऽঅ॑রি॒ষ্টতা॑তয়ে ॥ ৮১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অশ্বাবতীমিত্যস্য ভিষগৃষিঃ । বৈদ্যো দেবতা । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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