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यजुर्वेद अध्याय - 12

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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 61
    ऋषिः - मधुच्छन्दा ऋषिः देवता - पत्नी देवता छन्दः - आर्षी त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    76

    मा॒तेव॑ पुत्रं पृ॑थि॒वी पु॑री॒ष्यम॒ग्नि स्वे योना॑वभारु॒खा। तां विश्वै॑र्दे॒वैर्ऋ॒तुभिः॑ संविदा॒नः प्र॒जाप॑तिर्वि॒श्वक॑र्म्मा॒ वि मु॑ञ्चतु॥६१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा॒तेवेति॑ मा॒ताऽइ॑व। पु॒त्रम्। पृ॒थि॒वी। पु॒री॒ष्य᳖म्। अ॒ग्निम्। स्वे। यौनौ॑। अ॒भाः॒। उ॒खा। ताम्। विश्वैः॑। दे॒वैः॒। ऋ॒तुभि॒रित्यृ॒तुऽभिः॑। सं॒वि॒दा॒न इति॑ सम्ऽविदा॒नः। प्र॒जाप॑ति॒रिति॑ प्र॒जाऽप॑तिः। वि॒श्वक॒र्म्मेति॑ वि॒श्वऽक॑र्मा। वि। मु॒ञ्च॒तु॒ ॥६१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मातेव पुत्रम्पृथिवी पुरीष्यमग्निँ स्वे योनावभारुखा । ता विश्वैर्देवैरृतुभिः सँविदानः प्रजापतिर्विश्वकर्मा वि मुञ्चतु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    मातेवेति माताऽइव। पुत्रम्। पृथिवी। पुरीष्यम्। अग्निम्। स्वे। यौनौ। अभाः। उखा। ताम्। विश्वैः। देवैः। ऋतुभिरित्यृतुऽभिः। संविदान इति सम्ऽविदानः। प्रजापतिरिति प्रजाऽपतिः। विश्वकर्म्मेति विश्वऽकर्मा। वि। मुञ्चतु॥६१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 61
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    माता किंवत् सन्तानान् पालयतीत्याह॥

    अन्वयः

    योखा पृथिवीवद्वर्त्तमना स्त्री योनौ पुरीष्यमग्निं पुत्रं मातेवाभा धरति, तां संविदानो विश्वकर्मा प्रजापतिर्विश्वैर्देवैर्ऋतुभिः सह सतत दुःखाद् विमुञ्चतु पृथग् रक्षतु॥६१॥

    पदार्थः

    (मातेव) (पुत्रम्) (पृथिवी) भूमिवद्वर्त्तमाना विदुषी स्त्री (पुरीष्यम्) पुष्टिकरेषु गुणेषु भवम् (अग्निम्) विद्युतमिव सुप्रकाशम् (स्वे) स्वकीये (योनौ) गर्भाशये (अभाः) पुष्णाति धरति वा (उखा) ज्ञातुमर्हा (ताम्) (विश्वैः) सर्वैः (देवैः) दिव्यैर्गुणैः सह (ऋतुभिः) वसन्ताद्यैः (संविदानः) सम्यग्ज्ञापयन् (प्रजापतिः) परमेश्वरः (विश्वकर्म्मा) अखिलोत्तमक्रियः (वि) विरुद्धार्थे (मुञ्चतु)। [अयं मन्त्रः शत॰७.१.१.४३ व्याख्यातः]॥६१॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यथा जननी सन्तानानुत्पाद्य पालयति, तथैव पृथिवी कारणस्थां विद्युतं प्रकटय्य रक्षति। परमेश्वरो याथातथ्येन पृथिव्यादिगुणान् जानाति प्रतिनियतसमयमृत्वादीन् पृथिव्यादींश्च धृत्वा स्वस्वनियतपरिधौ चालयित्वा प्रलयसमये भिनत्ति, तथैव विद्वद्भिर्यथाबुद्ध्येतान् विदित्वा कार्य्यसिद्धये प्रयतितव्यम्॥६१॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    माता किस के तुल्य सन्तानों को पालती है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    जो (उखा) जानने योग्य (पृथिवी) भूमि के समान वर्त्तमान विदुषी स्त्री (स्वे) अपने (यौनौ) गर्भाशय में (पुरीष्यम्) पुष्टिकारक गुणों में हुए (अग्निम्) बिजुली के तुल्य अच्छे प्रकाश से युक्त गर्भरूप (पुत्रम्) पुत्र को (मातेव) माता के समान (अभाः) पुष्ट वा धारण करती है, (ताम्) उसको (संविदानः) सम्यक् बोध करता हुआ (विश्वकर्मा) सब उत्तम कर्म करने वाला (प्रजापतिः) परमेश्वर (विश्वैः) सब (देवैः) दिव्य गुणों और (ऋतुभिः) वसन्त आदि ऋतुओं के साथ निरन्तर दुःख से (वि, मुञ्चतु) छुड़ावे॥६१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे माता सन्तानों को उत्पन्न कर पालती है, वैसे ही पृथिवी कारणरूप बिजुली को प्रसिद्ध करके रक्षा करती है। जैसे परमेश्वर ठीक-ठीक पृथिवी आदि के गुणों को जानता और नियत समय पर ऋतु आदि और पृथिवी आदि को धारण कर अपनी-अपनी नियत परिधि में चला के प्रलय समय में सब को भिन्न करता है, वैसे ही विद्वानों को चाहिये कि अपनी बुद्धि के अनुसार इन सब पदार्थों को जना के कार्य्यसिद्धि के लिय प्रयत्न करें॥६१॥

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    विषय

    उखा पृथ्वी प्रजापति के परस्पर कर्त्तव्य, पक्षान्तर में सूर्य पृथिवी का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( माता ) माता ( पुत्रं इव ) पुत्रको जिस प्रकार ( स्वे योनौ अभा: ) अपने गर्भाशय में धारण करती है, उसी प्रकार ( उखा ) हांडी के समान गोल ( पृथिवी ) पृथिवी भी ( स्वे योनौ अपने गर्भ में, अपने भीतर ( पुरीष्यम् ) सबको पालन करने में समर्थ: प्रेम् ) अग्नि और सूर्य को ( अभाः ) धारण करती है । उसी प्रकार ( पृथिवी उखा ) उत्तम ज्ञानवती पृथिवीनिवासिनी प्रजा भी ( पुरीष्यम् ) अति समृद्ध ज्ञान, बल और ऐश्वर्यं से युक्त (अग्निम् ) अग्नि के समान तेजस्वी पुरुष को ( स्वे योनौ) अपने लोक में (अभाः ) धारण करती है । ( प्रजापतिः ) प्रजा का पालक, पति और राजा (विश्वकर्मा) समस्त राष्ट्र के उत्तम कार्यों के करने में समर्थ (विश्वैः) समस्त (ऋतुभिः) ज्ञानवान् सदस्यों और (विश्वैः देवैः) और देव, विद्वान्, शूरवीर योद्धा, एवं व्यवहारज्ञ पुरुषों से ( संविदानः ) सहमति और सहयोग लेता हुआ ( तां ) उसको ( विमुञ्चतु ) विविध उपायों से वार करता है, रक्षा करता है । सूर्य पक्ष में - ( विश्वकर्मा ) समस्त कार्यों का कर्ता, वृष्टि आंधी आदि परिवर्तनों का कर्ता ( प्रजापतिः ) सूर्य ( विश्वैः देवैः ऋतुभिः ) समस्त दिव्य ऋतुओं के साथ मिलकर पृथ्वी को ( विमुञ्चतु ) पालता है ।

    टिप्पणी

    ० 'योना अभा०' इति काण्व० ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पत्नी उखा च देवते। आर्षी पंक्तिः । पञ्चमः ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी माता संतानांना जन्म देऊन त्यांचे पालन करते, तसेच पृथ्वी कारणरूपी विद्युतला प्रकट करून रक्षण करते. जसे परमेश्वराला पृथ्वी इत्यादींच्या गुणांचे ज्ञान असून निश्चित वेळी ऋतू निर्मिती करून पृथ्वी इत्यादींना तो धारण करून आपापल्या कक्षेत फिरवितो व प्रलयाच्या वेळी सर्वांना वेगवेगळे करतो तसे विद्वानांनीही आपल्या बुद्धीनुसार या सर्व पदार्थांना जाणून कार्यसिद्धीसाठी प्रयत्न करावेत.

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    विषय

    missing

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (उखा) ज्ञान प्राप्त करण्यात व ज्ञान देण्यात समर्थ अशी आणि (पृथिवी) भूमीप्रमाणे पुष्टिदायिनी जी विदुषी स्त्री आहे (वा समाज असते) ती (स्वे) आपल्या योनौ) गर्भाशयामध्ये (आश्रमाखाली) (पुरीष्यम्‌) पुष्टिकारक गुण समृद्ध करते आणि (अग्निम्‌) विद्युतेप्रमाणे मोहक प्रकाशाने युक्त म्हणजे कीर्तिमंत अशा (पुत्रम्‌) पुत्राला) (मातेव) मातेप्रमाणे (अभा:) धारण करते. (विदुषी स्त्री आपल्या शिष्याला पुत्राप्रमाणे मानून ज्ञानप्रदान करण्यासाठी त्याला आपल्या गृही वा आश्रमात ठेवते आणि भूमीप्रमाणे पुष्ट आणि विद्युतप्रकाशाप्रमाणे कीर्तिमंत करून त्या शिष्याचे मातेप्रमाणे पालन करते) अशा (ताम्‌) त्या विदुषी स्त्रीला (संविदान:) सम्यकप्रकारे प्रेरणा देत (विश्‍वकर्मा व सर्व उत्तम कर्म करणारा (प्रजापति:) परमेश्‍वर त्या विदुषाला (विश्‍वै:) सर्व (दैवै:) दिव्यगुणांनी युक्त करो आणि तिला (ऋतुभि:) वसंत आदी ऋतूंमध्ये होणाऱ्या दु:खांपासून सदैव (विमुग्चतु) दूर ठेवो (त्या अशा विदुषी स्त्रीला तिच्या ज्ञानदान कार्यात कोणत्या प्रकारची विष बाधा येऊ नये परमेश्‍वराने तिच्यावर अशी कृपा करावी) ॥61॥

    भावार्थ

    भावार्थ - या मंत्रात उपमा अलंकार आहे. ज्याप्रमाणे एक माता आपल्या संतानाला जन्म देऊन त्याचे पालन करते, त्याचप्रमाणे ही पृथ्वी कारणरूप विद्युतेला प्रकट करू (भूगर्भात त्या शक्तीचे) रक्षण करते. जसे परमेश्‍वर पृथ्वी आदींना धारण करतो, तसेच सर्व गृहनक्षत्रादींना निश्‍चित परिधिमध्ये चालवितो आणि नंतर प्रलयकाळी त्या सर्व पदार्थांना भिन्न-भिन्न करतो (सूक्ष्म अनुरुपात आणतो) त्याप्रमाणे सर्व विद्वान वैज्ञानिकांसाठी ही आवश्‍यक आहे की त्यांनी आपापल्या बुद्धिसामर्थ्याप्रमाणे सृष्टीतील सर्व पदार्थांचे ज्ञान प्राप्त करावे आणि कार्यसिद्धीसाठी त्या पदार्थांचा उपयोग घ्यावा. ॥61॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    The learned woman, calm like the earth, preserves in her womb, like a mother, the healthy and beautiful son. May the Omniscient God, the source of all noble actions, relieve the child from pain, in all seasons, with His divine powers.

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    Meaning

    Just as the earth like a mother holds the vital heat for the nourishment of life in her womb, so does a woman worthy of love and recognition hold a brilliant soul in her womb till maturity. May Lord Vishwakarma (maker of the world), father and guardian of His children (Prajapati), with gifts and nourishment from all the seasons and powers of nature, deliver her of a noble offspring.

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    Translation

    Just as a mother bears her son, the earth in the form of fire pan, bears the fire, beneficial for animals, within her womb. May the creator God, the supreme Mechanic, in accordance with all the bounties of Nature and the seasons, deliver her. (1)

    Notes

    Abharukha, अभार्षीत् धारितवती, has born; held. Samvidanah, accordant with. Vigvakarma, विश्वं सृष्टि रूपं कर्म यस्य स:, this whole universe is whose creation. Also, skilled in all sorts of work, Supreme creator, builder, moulder. Prajapatih, Lord of creatures.

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    बंगाली (1)

    विषय

    মাতা কিংবৎ সন্তানান্ পালয়তীত্যাহ ॥
    মাতা কাহার তুল্য সন্তানদিগকে পালন করেন এই বিষয় পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- যিনি (উখা) জানিবার যোগ্য (পৃথিবী) ভূমি সম বর্ত্তমান বিদূষী স্ত্রী (স্বে) স্বীয় (য়োনৌ) গর্ভাশয়ে (পুরীষ্যম্) পুষ্টিকারক গুণে হওয়া (অগ্নিম্) বিদ্যুৎ তুল্য সম্যক্ প্রকার যুক্ত গর্ভরূপ (পুত্রম্) পুত্রকে (মাতেব) মাতা সম (অভাঃ) পুষ্ট বা ধারণ করেন (তাম্) উহাকে (সংবিদানঃ) সম্যক্ বোধ করাইয়া (বিশ্বকর্মা) সকল উত্তম কর্মকারী (প্রজাপতিঃ) পরমেশ্বর (বিশ্বৈঃ) সকল (দেবৈঃ) দিব্য গুণসকল এবং (ঋতুভিঃ) বসন্তাদি ঋতু সহ নিরন্তর দুঃখ হইতে (বি মুঞ্চন্তু) মুক্তি দিবেন ॥ ৬১ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে উপমালঙ্কার আছে । যেমন মাতা সন্তানকে উৎপন্ন করিয়া পালন করে সেইরূপ পৃথিবী কারণরূপ বিদ্যুৎকে প্রসিদ্ধ করিয়া রক্ষা করে । যেমন পরমেশ্বর সঠিক ভাবে পৃথিবী ইত্যাদির গুণকে জানেন এবং নিশ্চিত সময়ে ঋতু ও পৃথিবী ইত্যাদিকে ধারণ করিয়া স্বীয় স্বীয় নিশ্চিত পরিধিতে চালনা করিয়া প্রলয় সময়ে সকলকে পৃথক করেন সেইরূপ বিদ্বান্দিগের উচিত যে, স্বীয় বুদ্ধি অনুযায়ী এই সব পদার্থ জানিয়া কার্য্যসিদ্ধি হেতু প্রচেষ্টা করিবেন ॥ ৬১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    মা॒তেব॑ পু॒ত্রং পৃ॑থি॒বী পু॑রী॒ষ্য᳖ম॒গ্নিᳬं স্বে য়োনা॑বভারু॒খা । তাং বিশ্বৈ॑র্দে॒বৈর্ঋ॒তুভিঃ॑ সংবিদা॒নঃ প্র॒জাপ॑তির্বি॒শ্বক॑র্ম্মা॒ বি মু॑ঞ্চতু ॥ ৬১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    মাতেবেত্যস্য মধুচ্ছন্দা ঋষিঃ । পত্নী দেবতা । আর্ষী ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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