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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 26
    ऋषिः - कुत्स ऋषिः देवता - रुद्रा देवताः छन्दः - भुरिगतिजगती स्वरः - निषादः
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    नमः॒ सेना॑भ्यः सेना॒निभ्य॑श्च वो॒ नमो॒ नमो॑ र॒थिभ्यो॑ऽअर॒थेभ्य॑श्च वो॒ नमो॒ नमः॑ क्ष॒त्तृभ्यः॑ सङ्ग्रही॒तृभ्य॑श्च वो॒ नमो॒ नमो॑ म॒हद्भ्यो॑ऽअर्भ॒केभ्य॑श्च वो॒ नमः॑॥२६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑। सेना॑भ्यः। से॒ना॒निभ्य॒ इति॑ सेना॒निऽभ्यः॑। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। र॒थिभ्य॒ इति॑ र॒थिऽभ्यः॑। अ॒र॒थेभ्यः॑। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। क्ष॒त्तृभ्य॒ इति॑ क्ष॒त्तृऽभ्यः॑। स॒ङ्ग्र॒हीतृभ्य॒ इति॑ सम्ऽग्रही॒तृभ्यः। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। म॒हत्भ्यः॑। अ॒र्भ॒केभ्यः॑। च॒। वः॒। नमः॑ ॥२६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमः सेनाभ्यः सेनानिभ्यश्च वो नमो नमो रथिभ्योऽअरतेभ्यश्च वो नमो नमः क्षत्तृभ्यः संग्रहीतृभ्यश्च वो नमो नमो महद्भ्योऽअर्भकेभ्यश्च वो नमः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। सेनाभ्यः। सेनानिभ्य इति सेनानिऽभ्यः। च। वः। नमः। नमः। रथिभ्य इति रथिऽभ्यः। अरथेभ्यः। च। वः। नमः। नमः। क्षत्तृभ्य इति क्षत्तृऽभ्यः। सङ्ग्रहीतृभ्य इति सम्ऽग्रहीतृभ्यः। च। वः। नमः। नमः। महत्भ्यः। अर्भकेभ्यः। च। वः। नमः॥२६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 26
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    पदार्थ -
    हे राज और प्रजा के पुरुषो! जैसे हम लोग (सेनाभ्यः) शत्रुओं को बांधने हारे सेनास्थ पुरुषों का (नमः) सत्कार करते (च) और (वः) तुम (सेनानिभ्यः) सेना के नायक प्रधान पुरुषों को (नमः) अन्न देते हैं (रथिभ्यः) प्रशंसित रथों वाले पुरुषों का (नमः) सत्कार (च) और (वः) तुम (अरथेभ्यः) रथों से पृथक् पैदल चलने वालों का (नमः) सत्कार करते हैं (क्षत्तृभ्यः) क्षत्रिय की स्त्री में शूद्र से उत्पन्न हुए वर्णसंकर के लिये (नमः) अन्नादि पदार्थ देते (च) और (वः) तुम (संग्रहीतृभ्यः) अच्छे प्रकार युद्ध की सामग्री को ग्रहण करने हारों का (नमः) सत्कार करते हैं (महद्भ्यः) विद्या और अवस्था से वृद्ध पूजनीय महाशयों को (नमः) अच्छा पकाया हुआ अन्नादि पदार्थ देते (च) और (वः) तुम (अर्भकेभ्यः) क्षुद्राशय शिक्षा के योग्य विद्यार्थियों का (नमः) निरन्तर सत्कार करते हैं, वैसे तुम लोग भी दिया, किया करो॥२६॥

    भावार्थ - राजपुरुषों को चाहिये कि सब भृत्यों को सत्कार और शिक्षापूर्वक अन्नादि पदार्थों से उन्नति देके धर्म से राज्य का पालन करें॥२६॥

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