यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 15
ऋषिः - कुत्स ऋषिः
देवता - रुद्रो देवता
छन्दः - निचृदार्षी जगती
स्वरः - निषादः
11
मा नो॑ म॒हान्त॑मु॒त मा नो॑ऽअर्भ॒कं मा न॒ऽउक्ष॑न्तमु॒त मा न॑ऽउक्षि॒तम्। मा नो॑ वधीः पि॒तरं॒ मोत मा॒तरं॒ मा नः॑ प्रि॒यास्त॒न्वो रुद्र रीरिषः॥१५॥
स्वर सहित पद पाठमा। नः॒। म॒हान्त॑म्। उ॒त। मा। नः॒। अ॒र्भ॒कम्। मा। नः॒। उक्ष॑न्तम्। उ॒त। मा। नः॒। उ॒क्षि॒तम्। मा। नः॒। व॒धीः॒। पि॒तर॑म्। मा। उ॒त। मा॒तर॑म्। मा। नः॒। प्रि॒याः। त॒न्वः᳖। रु॒द्र॒। री॒रि॒ष॒ इति॑ रीरिषः ॥१५ ॥
स्वर रहित मन्त्र
मा नो महान्तमुत मा नोऽअर्भकम्मा नऽउक्षन्तमुत मा नऽउक्षितम् । मा नो वधीः पितरम्मोत मातरम्मा नः प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिषः ॥
स्वर रहित पद पाठ
मा। नः। महान्तम्। उत। मा। नः। अर्भकम्। मा। नः। उक्षन्तम्। उत। मा। नः। उक्षितम्। मा। नः। वधीः। पितरम्। मा। उत। मातरम्। मा। नः। प्रियाः। तन्वः। रुद्र। रीरिष इति रीरिषः॥१५॥
विषय - राजपुरुषों को क्या नहीं करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ -
हे (रुद्र) युद्ध की सेना के अधिकारी विद्वन् पुरुष! आप (नः) हमारे (महान्तम्) उत्तम गुणों से युक्त पूज्य को (मा) मत (उत) और (अर्भकम्) छोटे क्षुद्र पुरुष को (मा) मत (नः) हमारे (उक्षन्तम्) गर्भाधान करने हारे को (मा) मत (उत) और (नः) हमारे (उक्षितम्) गर्भ को (मा) मत (नः) हमारे (पितरम्) पालन करने हारे पिता को (मा) मत (उत) और (नः) हमारी (मातरम्) मान्य करने हारी माता को भी (मा) मत (वधीः) मारिये और (नः) हमारे (प्रियाः) स्त्री आदि के पियारे (तन्वः) शरीरों को (मा) मत (रीरिषः) मारिये॥१५॥
भावार्थ - योद्धा लोगों को चाहिये कि युद्ध के समय वृद्धों, बालकों, युद्ध से हटने वाले ज्वानों, गर्भों, योद्धाओं के माता पितरों, सब स्त्रियों, युद्ध के देखने वा प्रबन्ध करने वालों और दूतों को न मारें, किन्तु शत्रुओं के सम्बन्धी मनुष्यों को सदा वश में रक्खें॥१५॥
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