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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 9
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - रुद्रो देवता छन्दः - भुरिगार्ष्युष्णिक् स्वरः - ऋषभः
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    प्रमु॑ञ्च॒ धन्व॑न॒स्त्वमु॒भयो॒रार्त्न्यो॒र्ज्याम्। याश्च॑ ते॒ हस्त॒ऽइष॑वः॒ परा॒ ता भ॑गवो वप॥९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र। मु॒ञ्च॒। धन्व॑नः। त्वम्। उ॒भयोः॑। आर्त्न्योः॑। ज्याम्। याः। च॒। ते॒। हस्ते॑। इष॑वः। परा॑। ताः। भ॒ग॒व॒ इति॑ भगवः। व॒प॒ ॥९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रमुञ्च धन्वनस्त्वमुभयोरार्त्न्यार्ज्याम् । याश्च ते हस्तऽइषवः परा ता भगवो वप ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। मुञ्च। धन्वनः। त्वम्। उभयोः। आर्त्न्योः। ज्याम्। याः। च। ते। हस्ते। इषवः। परा। ताः। भगव इति भगवः। वप॥९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 9
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    पदार्थ -
    हे (भगवः) ऐश्वर्ययुक्त सेनापते! (ते) तेरे (हस्ते) हाथ में (याः) जो (इषवः) बाण हैं (ताः) उन को (धन्वनः) धनुष् के (उभयोः) दोनों (आर्त्न्योः) पूर्व पर किनारों की (ज्याम्) प्रत्यञ्चा में जोड़ के शत्रुओं पर (त्वम्) तू (प्र, मुञ्च) बल के साथ छोड़ (च) और जो तेरे पर शत्रुओं ने बाण छोड़े हुए हों उन को (परा, वप) दूर कर॥९॥

    भावार्थ - सेनापति आदि राजपुरुषों को चाहिये कि धनुष् से बाण चलाकर शत्रुओं को जीतें और शत्रुओं के फेंके हुए बाणों का निवारण करें॥९॥

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