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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 39
    ऋषिः - कुत्स ऋषिः देवता - रुद्रा देवताः छन्दः - स्वराडार्षी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    नमो॒ वात्या॑य च॒ रेष्म्या॑य च॒ नमो॑ वास्त॒व्याय च वास्तु॒पाय॑ च॒ नमः॒ सोमा॑य च रु॒द्राय॑ च॒ नम॑स्ता॒म्राय॑ चारु॒णाय॑ च॥३९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑। वात्या॑य। च॒। रेष्म्या॑य। च॒। नमः॑। वा॒स्त॒व्या᳖य। च॒। वा॒स्तु॒पायेति॑ वास्तु॒ऽपाय॑। च॒। नमः॑। सोमा॑य। च॒। रु॒द्राय॑। च॒। नमः॑। ता॒म्राय॑। च॒। अ॒रु॒णाय॑। च॒ ॥३९ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमो वात्याय च रेष्म्याय च नमो वास्तव्याय च वास्तुपाय च नमः सोमाय च रुद्राय च नमस्ताम्राय चारुणाय च नमः शङ्गवे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। वात्याय। च। रेष्म्याय। च। नमः। वास्तव्याय। च। वास्तुपायेति वास्तुऽपाय। च। नमः। सोमाय। च। रुद्राय। च। नमः। ताम्राय। च। अरुणाय। च॥३९॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 39
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    पदार्थ -
    जो मनुष्या (वात्याय) वायुविद्या में कुशल (च) और (रेष्म्याय) मारने वालों में प्रसिद्ध को (च) भी (नमः) अन्नादि देवें (च) तथा (वास्तव्याय) निवास के स्थानों में हुए (च) और (वास्तुपाय) निवासस्थान के रक्षक का (नमः) सत्कार करें (च) तथा (सोमाय) धनाढ्य (च) और (रुद्राय) दुष्टों को रोदन कराने हारे को (नमः) अन्नादि देवें (च) तथा (ताम्राय) बुरे कामों से ग्लानि करने (च) और (अरुणाय) अच्छे पदार्थों को प्राप्त कराने हारे का (नमः) सत्कार करें, वे लक्ष्मी से सम्पन्न होवें॥३९॥

    भावार्थ - जब मनुष्य वायु आदि के गुणों को जान के व्यवहारों में लगावें, तब अनेक सुखों को प्राप्त हों॥३९॥

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