यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 27
नम॒स्तक्ष॑भ्यो रथका॒रेभ्य॑श्च वो॒ नमो॒ नमः॒ कुला॑लेभ्यः क॒र्मारेभ्यश्च वो॒ नमो॒ नमो॑ निषा॒देभ्यः॑ पु॒ञ्जिष्ठे॑भ्यश्च वो॒ नमो॒ नमः॑ श्व॒निभ्यो॑ मृग॒युभ्य॑श्च वो॒ नमः॑॥२७॥
स्वर सहित पद पाठनमः॑। तक्ष॑भ्य॒ इति॒ तक्ष॑ऽभ्यः। र॒थ॒का॒रेभ्य॒ इति॑ रथऽका॒रेभ्यः॑। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। कुला॑लेभ्यः। क॒र्मारे॑भ्यः। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। नि॒षा॒देभ्यः॑। नि॒सा॒देभ्य॑ इति निऽसा॒देभ्यः॑। पु॒ञ्जिष्ठे॑भ्यः। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। श्व॒निभ्य॒ इति॑ श्व॒निऽभ्यः॑। मृ॒ग॒युभ्य॒ इति॑ मृ॒ग॒युऽभ्यः॑। च॒। वः॒। नमः॑ ॥२७ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नमस्तक्षभ्यो रथकारेभ्यश्च वो नमो नमः कुलालेभ्यः कुर्मारेभ्यश्च वो नमो नमो निषादेभ्यः पुञ्जिष्टेभ्यश्च वो नमो नमः श्वनिभ्यो मृगयुभ्यश्च वो नमः श्वभ्यः ॥
स्वर रहित पद पाठ
नमः। तक्षभ्य इति तक्षऽभ्यः। रथकारेभ्य इति रथऽकारेभ्यः। च। वः। नमः। नमः। कुलालेभ्यः। कर्मारेभ्यः। च। वः। नमः। नमः। निषादेभ्यः। निसादेभ्य इति निऽसादेभ्यः। पुञ्जिष्ठेभ्यः। च। वः। नमः। नमः। श्वनिभ्य इति श्वनिऽभ्यः। मृगयुभ्य इति मृगयुऽभ्यः। च। वः। नमः॥२७॥
विषय - विद्वान् लोगों को किन का सत्कार करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ -
हे मनुष्यो! जैसे राजा आदि हम लोग (तक्षभ्यः) पदार्थों को सूक्ष्मक्रिया से बनाने हारे तुम को (नमः) अन्न देते (च) और (रथकारेभ्यः) बहुत से विमानादि यानों को बनाने हारे (वः) तुम लोगों का (नमः) परिश्रमादि का धन देके सत्कार करते हैं (कुलालेभ्यः) प्रशंसित मट्टी के पात्र बनाने वालों को (नमः) अन्नादि पदार्थ देते (च) और (कर्मारेभ्यः) खड्ग, बन्दूक और तोप आदि शस्त्र बनाने वाले (वः) तुम लोगों का (नमः) सत्कार करते हैं (निषादेभ्यः) वन और पर्वतादि में रह कर दुष्ट जीवों को ताड़ना देने वाले तुम को (नमः) अन्नादि देते (च) और (पुञ्जिष्ठेभ्यः) श्वेतादि वर्णों वा भाषाओं में प्रवीण (वः) तुम्हारा (नमः) सत्कार करते हैं (श्वनिभ्यः) कुत्तों को शिक्षा करने हारे (वः) तुम को (नमः) अन्नादि देते (च) और (मृगयुभ्यः) अपने आत्मा से वन के हरिण आदि पशुओं को चाहने वाले तुम लोगों का (नमः) सत्कार करते हैं, वैसे तुम लोग भी करो॥२७॥
भावार्थ - विद्वान् लोग जो पदार्थविद्या को जान के अपूर्व कारीगरीयुक्त पदार्थों को बनावें, उनको पारितोषिक आदि देके प्रसन्न करें और जो कुत्ते आदि पशुओं को अन्नादि से रक्षा कर तथा अच्छी शिक्षा देके उपयोग में लावें, उनको सुख प्राप्त करावें॥२७॥
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