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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 28
    ऋषिः - कुत्स ऋषिः देवता - रुद्रा देवताः छन्दः - आर्षी जगती स्वरः - निषादः
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    नमः॒ श्वभ्यः॒ श्वप॑तिभ्यश्च वो॒ नमो॒ नमो॑ भ॒वाय॑ च रु॒द्राय॑ च॒ नमः॑ श॒र्वाय॑ च पशु॒पत॑ये च॒ नमो॒ नील॑ग्रीवाय च शिति॒कण्ठा॑य च॥२८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑। श्वभ्य॒ इति॒ श्वऽभ्यः॑। श्वप॑तिभ्य॒ इति॒ श्वप॑तिऽभ्यः। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। भ॒वाय॑। च॒। रु॒द्राय॑। च॒। नमः॑। श॒र्वाय॑। च॒। प॒शु॒पत॑य॒ इति॑ पशु॒ऽपत॑ये। च॒। नमः॑। नील॑ग्रीवा॒येति॒ नील॑ऽग्रीवाय। च॒। शि॒ति॒कण्ठा॒येति॑ शिति॒ऽकण्ठा॑य। च॒ ॥२८ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमः श्वभ्यः श्वपतिभ्यश्च वो नमो नमो भवाय च रुद्राय च नमः शर्वाय च पशुपतये च नमो नीलग्रीवाय च शितिकण्ठाय च नमः कपर्दिने ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। श्वभ्य इति श्वऽभ्यः। श्वपतिभ्य इति श्वपतिऽभ्यः। च। वः। नमः। नमः। भवाय। च। रुद्राय। च। नमः। शर्वाय। च। पशुपतय इति पशुऽपतये। च। नमः। नीलग्रीवायेति नीलऽग्रीवाय। च। शितिकण्ठायेति शितिऽकण्ठाय। च॥२८॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 28
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    पदार्थ -
    हे मनुष्यो! जैसे हम परीक्षक लोग (श्वभ्यः) कुत्तों को (नमः) अन्न देवें (च) और (वः) तुम (श्वपतिभ्यः) कुत्तों को पालने वालों को (नमः) अन्न देवें तथा सत्कार करें (च) तथा (भवाय) जो शुभगुणों में प्रसिद्ध हो उस जन का (नमः) सत्कार (च) और (रुद्राय) दुष्टों को रुलाने हारे वीर का सत्कार (च) तथा (शर्वाय) दुष्टों को मारने वालों को (नमः) अन्नादि देते (च) और (पशुपतये) गौ आदि पशुओं के पालक को अन्न (च) और (नीलग्रीवाय) सुन्दर वर्ण वाले कण्ठ से युक्त (च) और (शितिकण्ठाय) तीक्ष्ण वा काले कण्ठ वाले को (नमः) अन्न देते और सत्कार करते हैं वैसे तुम भी दिया, किया करो॥२८॥

    भावार्थ - मनुष्यों को चाहिये कि कुत्ते आदि पशुओं को अन्नादि से बढ़ा के उनसे उपकार लेवें और पशुओं के रक्षकों का सत्कार भी करें॥२८॥

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