यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 14
ऋषिः - देवा ऋषयः
देवता - अग्न्यादियुक्ता आत्मा देवता
छन्दः - भुरिगष्टिः
स्वरः - मध्यमः
8
अ॒ग्निश्च॑ म॒ऽआप॑श्च मे वी॒रुध॑श्च म॒ऽओष॑धयश्च मे कृष्टप॒च्याश्च॑ मेऽकृष्टप॒च्याश्च॑ मे ग्रा॒म्याश्च॑ मे प॒शव॑ऽआर॒ण्याश्च॑ मे वि॒त्तञ्च॑ मे॒ वित्ति॑श्च मे भू॒तञ्च॑ मे॒ भूति॑श्च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम्॥१४॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्निः। च॒। मे॒। आपः॑। च॒। मे॒। वी॒रुधः॑। च॒। मे॒। ओष॑धयः। च॒। मे॒। कृ॒ष्ट॒प॒च्याः इति॑ कृष्टऽप॒च्याः। च॒। मे॒। अ॒कृ॒ष्ट॒प॒च्या इत्य॑कृष्टऽप॒च्याः। च॒। मे॒। ग्रा॒म्याः। च॒। मे॒। प॒शवः॑। आ॒र॒ण्याः। च॒। मे॒। वि॒त्तम्। च॒। मे॒। वित्तिः॑। च॒। मे॒। भू॒तम्। च॒। मे॒। भूतिः॑। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥१४ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निश्च मऽआपश्च मे वीरुधश्च मऽओषधयश्च मे कृष्टपच्याश्च मे कृष्टपच्याश्च मे ग्राम्याश्च मे पशवऽआरण्याश्च मे वित्तं च मे वित्तिश्च मे भूतञ्च मे भूतिश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्निः। च। मे। आपः। च। मे। वीरुधः। च। मे। ओषधयः। च। मे। कृष्टपच्याः इति कृष्टऽपच्याः। च। मे। अकृष्टपच्या इत्यकृष्टऽपच्याः। च। मे। ग्राम्याः। च। मे। पशवः। आरण्याः। च। मे। वित्तम्। च। मे। वित्तिः। च। मे। भूतम्। च। मे। भूतिः। च। मे। यज्ञेन। कल्पन्ताम्॥१४॥
विषय - फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ -
(मे) मेरा (अग्निः) अग्नि (च) और बिजुली आदि (मे) मेरे (आपः) जल (च) और जल में होने वाले रत्न मोती आदि (मे) मेरे (वीरुधः) लता गुच्छा (च) और शाक आदि (मे) मेरी (ओषधयः) सोमलता आदि ओषधि (च) और फल-पुष्पादि (मे) मेरे (कृष्टपच्याः) खेतों में पकते हुए अन्न आदि (च) और उत्तम अन्न (मे) मेरे (अकृष्टपच्याः) जो जङ्गल में पकते हैं, वे अन्न (च) और जो पर्वत आदि स्थानों में पकने योग्य हैं, वे अन्न (मे) मेरे (ग्राम्याः) गांव मे हुए गौ आदि (च) और नगर में ठहरे हुए तथा (मे) मेरे (आरण्याः) वन में होने हारे मृग आदि (च) और सिंह आदि (पशवः) पशु (मे) मेरा (वित्तम्) पाया हुआ पदार्थ (च) और सब धन (मे) मेरी (वित्तिः) प्राप्ति (च) और पाने योग्य (मे) मेरा (भूतम्) रूप (च) और नाना प्रकार का पदार्थ तथा (मे) मेरा (भूतिः) ऐश्वर्य (च) और उस का साधन ये सब पदार्थ (यज्ञेन) मेल करने योग्य शिल्प विद्या से (कल्पन्ताम्) समर्थ हों॥१४॥
भावार्थ - जो मनुष्य अग्नि आदि की विद्या से सङ्गति करने योग्य शिल्पविद्या रूप यज्ञ को सिद्ध करते हैं, वे ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं॥१४॥
इस भाष्य को एडिट करेंAcknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal