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  • यजुर्वेद - अध्याय 18/ मन्त्र 74
    ऋषिः - भरद्वाज ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - निचृत त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
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    अ॒श्याम॒ तं काम॑मग्ने॒ तवो॒तीऽअ॒श्याम॑ र॒यिꣳ र॑यिवः सु॒वीर॑म्। अ॒श्याम॒ वाज॑म॒भि वा॒ज॑यन्तो॒ऽश्याम॑ द्यु॒म्नम॑जरा॒जरं॑ ते॥७४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒श्याम॑। तम्। काम॑म्। अ॒ग्ने॒। तव॑। ऊ॒ती। अ॒श्याम॑। र॒यिम्। र॒यि॒व॒ इति॑ रयिऽवः। सु॒वीर॒मिति॑ सु॒ऽवी॑रम्। अ॒श्याम॑। वाज॑म्। अ॒भि। वा॒जय॑न्तः। अ॒श्याम॑। द्यु॒म्न॑म्। अ॒ज॒र॒। अ॒जर॑म्। ते॒ ॥७४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्याम तेङ्काममग्ने तवोतीऽअश्याम रयिँ रयिवः सुवीरम् । अश्याम वाजमभि वाजयन्तो श्याम द्युम्नमजराजरन्ते ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अश्याम। तम्। कामम्। अग्ने। तव। ऊती। अश्याम। रयिम्। रयिव इति रयिऽवः। सुवीरमिति सुऽवीरम्। अश्याम। वाजम्। अभि। वाजयन्तः। अश्याम। द्युम्नम्। अजर। अजरम्। ते॥७४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 18; मन्त्र » 74
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    पदार्थ -
    हे (अग्ने) युद्धविद्या के जाननेहारे सेनापति! हम लोग (तव) तेरी (ऊती) रक्षा आदि की विद्या से (तम्) उस (कामम्) कामना को (अश्याम) प्राप्त हों। हे (रयिवः) प्रशस्त धनयुक्त! (सुवीरम्) अच्छे वीर प्राप्त होते हैं, जिससे उस (रयिम्) धन को (अश्याम) प्राप्त हों, (वाजयन्तः) सङ्ग्राम करते-कराते हुए हम लोग (वाजम्) सङ्ग्राम में विजय को (अभ्यश्याम) अच्छे प्रकार प्राप्त हों। हे (अजर) वृद्धपन से रहित सेनापते! हम लोग (ते) तेरे प्रताप से (अजरम्) अक्षय (द्युम्नम्) धन और कीर्ति को (अश्याम) प्राप्त हों॥७४॥

    भावार्थ - प्रजा के मनुष्यों को योग्य है कि राजपुरुषों की रक्षा से और राजपुरुष प्रजाजन की रक्षा से परस्पर सब इष्ट कामों को प्राप्त हों॥७४॥

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