Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 1/ मन्त्र 37
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - परोष्णिक् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    सखा॑य॒ आशि॑षामहे ब्र॒ह्मेन्द्रा॑य व॒ज्रिणे॑। स्तु॒ष ऊ॒ षु नृत॑माय धृ॒ष्णवे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सखा॑य: । आ । शि॒षा॒म॒हे॒ । ब्रह्म॑ । इन्द्रा॑य । व॒ज्रिणे॑ । स्तु॒षे । ऊं॒ इति॑ । सु । सुऽत॑माय । धृ॒ष्णवे॑ ॥१.३७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सखाय आशिषामहे ब्रह्मेन्द्राय वज्रिणे। स्तुष ऊ षु नृतमाय धृष्णवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सखाय: । आ । शिषामहे । ब्रह्म । इन्द्राय । वज्रिणे । स्तुषे । ऊं इति । सु । सुऽतमाय । धृष्णवे ॥१.३७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 1; मन्त्र » 37

    पदार्थ -
    (सखायः) हे मित्रो ! (वज्रिणे) वज्र [अस्त्र-शस्त्र] रखनेवाले, (नृतमाय) बहुत बड़े नेता, (धृष्णवे)साहसी (इन्द्राय) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] को (ब्रह्म) ब्रह्मज्ञान (स्तुषे) स्तुति करने के लिये (उ) अवश्य (सु) भले प्रकार (आ शिषामहे) हम निवेदनकरें ॥३७॥

    भावार्थ - सब विद्वान् लोगमहागुणी, नीतिज्ञ पुरुषार्थी मनुष्य को राजसिंहासन पर विराजने के लिये निवेदनकरें ॥३७॥यह मन्त्र ऋग्वेद में है−८।२४।१ और सामवेद में पू० ४।१०।१०॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top