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  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 1/ मन्त्र 20
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - जगती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    सो चि॒न्नुभ॒द्रा क्षु॒मती॒ यश॑स्वत्यु॒षा उ॑वास॒ मन॑वे॒ स्वर्वती।यदी॑मु॒शन्त॑मुश॒तामनु॒ क्रतु॑म॒ग्निं होता॑रं वि॒दथा॑य॒ जीज॑नन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सो इति॑ । चि॒त् । नु । भ॒द्रा । क्षु॒ऽमती॑ । यश॑स्वती । उ॒षा: । उ॒वा॒स॒ । मन॑वे । स्व᳡:ऽवती । यत् । ई॒म् । उ॒शन्त॑म् । उ॒श॒तम् । अनु॑ । ऋतु॑म् । अ॒ग्निम् । होता॑रम् । वि॒दथा॑य । जीज॑नन् ॥१.२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सो चिन्नुभद्रा क्षुमती यशस्वत्युषा उवास मनवे स्वर्वती।यदीमुशन्तमुशतामनु क्रतुमग्निं होतारं विदथाय जीजनन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सो इति । चित् । नु । भद्रा । क्षुऽमती । यशस्वती । उषा: । उवास । मनवे । स्व:ऽवती । यत् । ईम् । उशन्तम् । उशतम् । अनु । ऋतुम् । अग्निम् । होतारम् । विदथाय । जीजनन् ॥१.२०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 1; मन्त्र » 20

    पदार्थ -
    (सो) वही (चित्)निश्चय करके (नु) अब (भद्रा) कल्याणी, (क्षुमती) अन्नवाली, (यशस्वती) यशवाली, (स्वर्वती) बड़े सुखवाली [वेदवाणी], (उषाः) उषा [प्रभातवेला के समान], (मनवे)मनुष्य के लिये (उवास) प्रकाशमान हुई है। (यत्) क्योंकि (ईम्) इस [वेदवाणी] को (उशन्तम्) चाहनेवाले, (होतारम्) दानी (अग्निम्) विद्वान् पुरुष को (उशताम्)अभिलाषी पुरुषों की (क्रतुम् अनु) बुद्धि के साथ (विदथाय) ज्ञान समाज के लिये (जीजनन्) उन्होंने [विद्वानों ने] उत्पन्न किया है ॥२०॥

    भावार्थ - परमात्मा ने मनुष्य केकल्याण के लिये वेदवाणी को सूर्य के प्रकाश के समान संसार में प्रकट किया है। जोमनुष्य वेदज्ञाता महाविद्वान् होवे, विद्वान् लोग उसको मुखिया बनाकर समाज का सुखबढ़ावें ॥२०॥

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