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  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 1/ मन्त्र 40
    सूक्त - रुद्र देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    स्तु॒हि श्रु॒तंग॑र्त॒सदं॒ जना॑नां॒ राजा॑नं भी॒ममु॑पह॒त्नुमु॒ग्रम्। मृ॒डा ज॑रि॒त्रे रु॑द्र॒स्तवा॑नो अ॒न्यम॒स्मत्ते॒ नि व॑पन्तु॒ सेन्य॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्तु॒हि । श्रु॒तम् । ग॒र्त॒ऽसद॑म् । जना॑नाम् । राजा॑नम् । भी॒मम् । उ॒प॒ऽह॒त्नुम् । उ॒ग्रम् । मृ॒ड । ज॒रि॒त्रे । रु॒द्र॒ । स्तवा॑न: । अ॒न्यम् । अ॒स्मत् । ते॒ । नि । व॒प॒न्तु॒ । सेन्य॑म् ॥१.४०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्तुहि श्रुतंगर्तसदं जनानां राजानं भीममुपहत्नुमुग्रम्। मृडा जरित्रे रुद्रस्तवानो अन्यमस्मत्ते नि वपन्तु सेन्यम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्तुहि । श्रुतम् । गर्तऽसदम् । जनानाम् । राजानम् । भीमम् । उपऽहत्नुम् । उग्रम् । मृड । जरित्रे । रुद्र । स्तवान: । अन्यम् । अस्मत् । ते । नि । वपन्तु । सेन्यम् ॥१.४०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 1; मन्त्र » 40

    पदार्थ -
    (रुद्र) हे रुद्र ! [शत्रुनाशक राजन्] (श्रुतम्) विख्यात, (गर्तसदम्) रथ पर बैठनेवाले, (जनानाम्)मनुष्यों के बीच (राजानम्) शोभायमान, (भीमम्) भयङ्कर, (उपहत्नुम्) बड़ेमारनेवाले, (उग्रम्) प्रचण्ड [सेनापति] की (स्तुहि) बड़ाई कर। और (स्तवानः)बड़ाई किया गया तू (जरित्रे) बड़ाई करनेवाले के लिये (मृड) सुखी हो, (अस्मत्) हमसे (अन्यम्) दूसरे पुरुष [अर्थात् शत्रु] को (ते) तेरे (सेन्यम्) सेनादल (निवपन्तु) काट डालें ॥४०॥

    भावार्थ - राजा को योग्य है किबड़े-बड़े शूर सेनापतियों की बड़ाई करके आदर करे, और जो प्रजागण आदि राजा केश्रेष्ठ गुणों की स्तुति करें, वह उन्हें प्रसन्न करे और धर्मात्माओं की रक्षाकरके शत्रुओं का नाश करे ॥४०॥यह मन्त्र कुछ भेद से ऋग्वेद में है २।३३।११॥

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