Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 10/ मन्त्र 12
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - गौः, विराट्, अध्यात्मम् छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - आत्मा सूक्त

    द्यौर्नः॑ पि॒ता ज॑नि॒ता नाभि॒रत्र॒ बन्धु॑र्नो मा॒ता पृ॑थि॒वी म॒हीयम्। उ॑त्ता॒नयो॑श्च॒म्वो॒र्योनि॑र॒न्तरत्रा॑ पि॒ता दु॑हि॒तुर्गर्भ॒माधा॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    द्यौ: । न॒: । पि॒ता । ज॒नि॒ता । नाभि॑: । अत्र॑ । बन्धु॑: । न॒: । मा॒ता । पृ॒थि॒वी । म॒ही । इ॒यम् । उ॒त्ता॒नयो॑: । च॒म्वो᳡: । योनि॑: । अ॒न्त: । अत्र॑ । पि॒ता । दु॒हि॒तु: । गर्भ॑म्‌ । आ । अ॒घा॒त् ॥१५.१२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    द्यौर्नः पिता जनिता नाभिरत्र बन्धुर्नो माता पृथिवी महीयम्। उत्तानयोश्चम्वोर्योनिरन्तरत्रा पिता दुहितुर्गर्भमाधात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    द्यौ: । न: । पिता । जनिता । नाभि: । अत्र । बन्धु: । न: । माता । पृथिवी । मही । इयम् । उत्तानयो: । चम्वो: । योनि: । अन्त: । अत्र । पिता । दुहितु: । गर्भम्‌ । आ । अघात् ॥१५.१२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 10; मन्त्र » 12

    पदार्थ -
    (द्यौः) प्रकाशमान सूर्य (नः) हमारा (पिता) पालनेवाला और (जनिता) उत्पन्न करनेवाला है, (अत्र) इस [सूर्य] में (नः) हमारी (नाभिः) नाभि [प्रकाश वा जलरूप उत्पत्ति का मूल] है, (इयम्) यह (मही) बड़ी (पृथिवी) पृथिवी (माता) और (बन्धुः) बन्धु [के तुल्य] है। (उत्तानयोः) उत्तमता से फैले हुए (चम्वोः) [दो सेनाओं के समान स्थित] सूर्य और पृथिवी के (अन्तः) बीच (योनिः) [जो] घर [अवकाश] है, (अत्र) इस [अवकाश] में (पिता) पालनेवाले [सूर्य वा मेघ] ने (दुहितुः) [रसों को खींचनेवाली] पृथिवी के (गर्भम्) उत्पत्तिसामर्थ्य [जल] को (आ) यथाविधि (अधात्) धारण किया है ॥१२॥

    भावार्थ - परमात्मा की महिमा से सूर्य और भूमि सब प्राणियों के पिता, माता और बन्धु के समान हैं, उन दोनों के बीच अन्तरिक्ष में पृथिवी से किरणों द्वारा जल खिंच कर मेघमण्डल में रहता है, फिर वही जल पृथिवी पर बरस कर नाना पदार्थ उत्पन्न करता और प्राणियों को जीवनसाधन देता है, उस जगदीश्वर की उपासना सब मनुष्यों को सदा करनी चाहिये ॥१२॥ (नः, नः) के स्थान में [मे, मे] है−ऋग्वेद १।१६४।३३। तथा निरु० ४।२१ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top