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  • अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 10/ मन्त्र 19
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - गौः, विराट्, अध्यात्मम् छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - आत्मा सूक्त

    ऋ॒चः प॒दं मात्र॑या क॒ल्पय॑न्तोऽर्ध॒र्चेन॑ चाक्लृपु॒र्विश्व॒मेज॑त्। त्रि॒पाद्ब्रह्म॑ पुरु॒रूपं॒ वि त॑ष्ठे॒ तेन॑ जीवन्ति प्र॒दिश॒श्चत॑स्रः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋ॒च: । प॒दम् । मात्र॑या । क॒ल्पय॑न्त: । अ॒र्ध॒ऽऋ॒चेन॑ । च॒क्लृ॒प॒: । विश्व॑म् । एज॑त् । त्रि॒ऽपात् । ब्रह्म॑ । पु॒रु॒ऽरूप॑म् । वि । त॒स्थे॒ । तेन॑ । जी॒व॒न्ति॒ । प्र॒ऽदिश॑: । चत॑स्र: ॥१५.१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋचः पदं मात्रया कल्पयन्तोऽर्धर्चेन चाक्लृपुर्विश्वमेजत्। त्रिपाद्ब्रह्म पुरुरूपं वि तष्ठे तेन जीवन्ति प्रदिशश्चतस्रः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऋच: । पदम् । मात्रया । कल्पयन्त: । अर्धऽऋचेन । चक्लृप: । विश्वम् । एजत् । त्रिऽपात् । ब्रह्म । पुरुऽरूपम् । वि । तस्थे । तेन । जीवन्ति । प्रऽदिश: । चतस्र: ॥१५.१९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 10; मन्त्र » 19

    पदार्थ -
    (ऋचः) वेदवाणी से (पदम्) प्रापणीय ब्रह्म को (मात्रया) सूक्ष्मता के साथ (कल्पयन्तः) विचारते हुए [ऋषियों] ने (अर्धर्चेन) समृद्ध वेदज्ञान से (विश्वम्) संसार को (एजत्) चेष्टा कराते हुए [ब्रह्म] को (चक्लृपुः) विचारा। (त्रिपात्) तीन [भूत, भविष्यत्, वर्तमान काल वा ऊँचे-नीचे और मध्यलोक] में गतिवाला, (पुरुरूपम्) बहुत सौन्दर्यवाला (ब्रह्म) ब्रह्म (वि) विविध प्रकार से (तस्थे) ठहरा था (तेन) उस [ब्रह्म] के साथ (चतस्रः) चारों (प्रदिशः) बड़ी दिशाएँ (जीवन्ति) जीवन करती हैं ॥१९॥

    भावार्थ - सूक्ष्मदर्शी ऋषि लोग वेद द्वारा ईश्वर की शक्तियों का अनुभव करते हैं कि वह तीनों काल तीनों लोकों में विराज कर सब सृष्टि का प्राणदाता है ॥१९॥ इस मन्त्र का केवल चौथा पाद ऋग्वेद−१।१६४।४२। में है ॥

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