अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 10/ मन्त्र 20
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - गौः, विराट्, अध्यात्मम्
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - आत्मा सूक्त
सू॑यव॒साद्भग॑वती॒ हि भू॒या अधा॑ व॒यं भग॑वन्तः स्याम। अ॒द्धि तृण॑मघ्न्ये विश्व॒दानीं॒ पिब॑ शु॒द्धमु॑द॒कमा॒चर॑न्ती ॥
स्वर सहित पद पाठसु॒य॒व॒स॒ऽअत् । भग॑ऽवती । हि । भू॒या: । अध॑ । व॒यम् । भग॑ऽवन्त: । स्या॒म॒ । अ॒ध्दि । तृण॑म् । अ॒घ्न्ये॒ । वि॒श्व॒ऽदानी॑म् । पिब॑ । शु॒ध्दम् । उ॒द॒कम् । आ॒ऽचर॑न्ती ॥१५.२०॥
स्वर रहित मन्त्र
सूयवसाद्भगवती हि भूया अधा वयं भगवन्तः स्याम। अद्धि तृणमघ्न्ये विश्वदानीं पिब शुद्धमुदकमाचरन्ती ॥
स्वर रहित पद पाठसुयवसऽअत् । भगऽवती । हि । भूया: । अध । वयम् । भगऽवन्त: । स्याम । अध्दि । तृणम् । अघ्न्ये । विश्वऽदानीम् । पिब । शुध्दम् । उदकम् । आऽचरन्ती ॥१५.२०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 10; मन्त्र » 20
विषय - जीवात्मा और परमात्मा के लक्षणों का उपदेश।
पदार्थ -
[हे प्रजा, सब स्त्री-पुरुषो !] (सूयवसात्) सुन्दर अन्न आदि भोगनेवाली और (भगवती) बहुत ऐश्वर्यवाली (हि) ही (भूयाः) हो, (अध) फिर (वयम्) हम लोग (भगवन्तः) बड़े ऐश्वर्यवाले (स्याम) होवें। (अघ्न्ये) हे हिंसा न करनेवाली प्रजा ! (विश्वदानीम्) समस्त दानों की क्रिया का (आचरन्ती) आचरण करती हुई तू [हिंसा न करनेवाली गो के समान] (तृणम्) घास [अल्पमूल्य पदार्थ] को (अद्धि) खा और (शुद्धम्) शुद्ध (उदकम्) जल को (पिब) पी ॥२०॥
भावार्थ - जैसे गौ अल्पमूल्य घास खाकर और शुद्ध जल पीकर दूध-घी आदि देकर उपकार करती है, वैसे ही मनुष्य थोड़े व्यय से शुद्ध आहार-विहार करके संसार का सदा उपकार करें ॥२०॥ यह मन्त्र ऊपर आ चुका है-अ० ७।७३।११। और (अध) के स्थान पर ऋग्वेद में [अथो] है−१।१६४।४०। तथा नि० ११।४४ ॥
टिप्पणी -
२०-अयं मन्त्रो व्याख्यातः-अ० ७।७३।११ ॥