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  • यजुर्वेद - अध्याय 14/ मन्त्र 14
    ऋषिः - विश्वेदेवा ऋषयः देवता - वायुर्देवता छन्दः - स्वराड ब्राह्मी बृहती स्वरः - मध्यमः
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    वि॒श्वक॑र्मा त्वा सादयत्व॒न्तरि॑क्षस्य पृ॒ष्ठे ज्योति॑ष्मतीम्। विश्व॑स्मै प्रा॒णाया॑ऽपा॒नाय॑ व्या॒नाय॒ विश्वं॒ ज्योति॑र्यच्छ। वा॒युष्टेऽधि॑पति॒स्तया॑ दे॒वत॑याङ्गिर॒स्वद् ध्रु॒वा सी॑द॥१४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वि॒श्वक॒र्मेति॑ वि॒श्वऽक॑र्मा। त्वा॒। सा॒द॒य॒तु॒। अ॒न्तरि॑क्षस्य। पृ॒ष्ठे। ज्योति॑ष्मती॒मिति॒ ज्योतिः॑ऽमतीम्। विश्व॑स्मै। प्रा॒णाय॑। अ॒पा॒नाय॑। व्या॒नाय॑। विश्व॑म्। ज्योतिः॑। य॒च्छ॒। वा॒युः। ते॒। अधि॑पति॒रित्यधि॑ऽपतिः। तया॑। दे॒वत॑या। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। ध्रु॒वा। सी॒द॒ ॥१४ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वकर्मा त्वा सादयत्वन्तरिक्षस्य पृष्ठे ज्योतिष्मतीम् । विश्वस्मै प्राणायापानाय व्यानाय विश्वञ्ज्योतिर्यच्छ । वायुष्टेधिपतिस्तयादेवतयाङ्गिरस्वद्धरुवा सीद ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वकर्मेति विश्वऽकर्मा। त्वा। सादयतु। अन्तरिक्षस्य। पृष्ठे। ज्योतिष्मतीमिति ज्योतिःऽमतीम्। विश्वस्मै। प्राणाय। अपानाय। व्यानाय। विश्वम्। ज्योतिः। यच्छ। वायुः। ते। अधिपतिरित्यधिऽपतिः। तया। देवतया। अङ्गिरस्वत्। ध्रुवा। सीद॥१४॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 14; मन्त्र » 14
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ- হে স্ত্রী ! যে (জ্যোতিষ্মতীম্) বহু বিজ্ঞান যুক্তা (ত্বা) তোমাকে (বিশ্বস্মৈ) সকল (প্রাণায়) প্রাণ (অপানায়) অপান এবং (ব্যানায়) ব্যানের পুষ্টির জন্য (অন্তরিক্ষস্য) জলের (পৃষ্ঠে) উপরের অংশে (বিশ্বকর্মা) সব শুভ কর্ম্মের কামনাকারী পতি (সাদয়তু) স্থাপিত করে সুতরাং তুমি (বিশ্বম্) সম্পূর্ণ (জ্যোতিঃ) বিজ্ঞানকে (য়চ্ছ) গ্রহণ কর, যে (বায়ুঃ) প্রাণ-সমান প্রিয় (তে) তোমার (অধিপতিঃ) স্বামী (তয়া) সেই (দেবতয়া) দেবস্বরূপ পতি সহ (ধ্রুবা) দৃঢ় (অঙ্গিরস্বৎ) সূর্য্যের সমান (সীদ) স্থির হও ॥ ১৪ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ- স্ত্রীর উচিত যে, ব্রহ্মচর্য্যাশ্রম সহ স্বয়ং বিদ্বান্ হইয়া শরীর আত্মার বলবৃদ্ধির জন্য স্বীয় সন্তানদিগকে নিরন্তর বিজ্ঞান প্রদান করিবে । এ পর্যন্ত গ্রীষ্ম ঋতুর ব্যাখ্যান পূর্ণ হইল ॥ ১৪ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - বি॒শ্বক॑র্মা ত্বা সাদয়ত্ব॒ন্তরি॑ক্ষস্য পৃ॒ষ্ঠে জ্যোতি॑ষ্মতীম্ ।
    বিশ্ব॑স্মৈ প্রা॒ণায়া॑ऽপা॒নায়॑ ব্যা॒নায়॒ বিশ্বং॒ জ্যোতি॑র্য়চ্ছ ।
    বা॒য়ুষ্টেऽধি॑পতি॒স্তয়া॑ দে॒বত॑য়াঙ্গির॒স্বদ্ ধ্রু॒বা সী॑দ ॥ ১৪ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - বিশ্বকর্মেত্যস্য বিশ্বেদেবা ঋষয়ঃ । বায়ুর্দেবতা । স্বরাড্ ব্রাহ্মী বৃহতী ছন্দঃ ।
    মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

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