अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 5/ मन्त्र 14
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - ब्रह्मचारी
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मचर्य सूक्त
आ॑चा॒र्यो मृ॒त्युर्वरु॑णः॒ सोम॒ ओष॑धयः॒ पयः॑। जी॒मूता॑ आस॒न्त्सत्वा॑न॒स्तैरि॒दं स्वराभृ॑तम् ॥
स्वर सहित पद पाठआ॒ऽचा॒र्य᳡: । मृ॒त्यु: । वरु॑ण: । सोम॑: । ओष॑धय: । पय॑: । जी॒मूता॑: । आ॒स॒न् । सत्वा॑न: । तै: । इ॒दम् । स्व᳡: । आऽभृ॑तम् ॥७.१४॥
स्वर रहित मन्त्र
आचार्यो मृत्युर्वरुणः सोम ओषधयः पयः। जीमूता आसन्त्सत्वानस्तैरिदं स्वराभृतम् ॥
स्वर रहित पद पाठआऽचार्य: । मृत्यु: । वरुण: । सोम: । ओषधय: । पय: । जीमूता: । आसन् । सत्वान: । तै: । इदम् । स्व: । आऽभृतम् ॥७.१४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 5; मन्त्र » 14
विषय - आचार्य; मृत्युः, सत्वानः, जीमूताः
पदार्थ -
१. (आचार्य:) = आचार्य (मृत्युः) = मृत्यु है। गर्भ में धारण करके द्वितीय जन्म देने के कारण और इसप्रकार उपनीत ब्रह्मचारी को द्विज बनाने के कारण आचार्य मृत्यु है। (वरुण) = पाप से निवारित करनेवाला यह आचार्य वरुण है। (सोमः) = चन्द्र के समान आहादमय व शान्त वृत्तिवाला होने से सोम है। (ओषधयः) = दोषदहन शक्ति का आधान करनेवाला [उष दाहे] आचार्य ओषधयः' है। (पय:) = दोषदहन द्वारा शक्ति का आप्यायन करने से आचार्य 'पयः' है। २. इस आचार्य के (सत्वान:) = समीप सदनशील ये विद्यार्थी (जीमूताः आसन्) = [जीवनं भूतं बद्धं येष] जीवन-शक्ति से परिपूर्ण हुए। (तै:) = उन आचार्यों के समीप रहकर जीवन को अपने में बाँधनेवाले ब्रह्मचारियों से (इदं स्व: आभूतम्) = यह सुख, प्रकाश व तेज धारण किया गया है।
भावार्थ -
आचार्य को विद्यार्थी को नवीन जीवन देने से 'मृत्यु' नाम दिया गया है और विद्यार्थी नवजीवन को अपने में बद्ध करने के कारण 'जीमूत' कहलाया है। ब्रह्मचारी अपने आचार्य के जीवन व ज्ञान से 'प्रकाश व तेज' धारण करते हैं।
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