अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 5/ मन्त्र 1
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - ब्रह्मचारी
छन्दः - पुरोऽतिजागतविराड्गर्भा त्रिष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मचर्य सूक्त
ब्रह्मचा॒रीष्णंश्च॑रति॒ रोद॑सी उ॒भे तस्मि॑न्दे॒वाः संम॑नसो भवन्ति। स दा॑धार पृथि॒वीं दिवं॑ च॒ स आ॑चा॒र्यं तप॑सा पिपर्ति ॥
स्वर सहित पद पाठब्र॒ह्म॒ऽचा॒री । इ॒ष्णन् । च॒र॒ति॒ । रोद॑सी॒ इति॑ । उ॒भे इति॑ । तस्मि॑न् । दे॒वा: । सम्ऽम॑नस: । भ॒व॒न्ति॒ । स: । दा॒धा॒र॒ । पृ॒थि॒वीम् । दिव॑म् । च॒ । स: । आ॒ऽचा॒र्य᳡म् । तप॑सा । पि॒प॒र्ति॒ ॥७.१॥
स्वर रहित मन्त्र
ब्रह्मचारीष्णंश्चरति रोदसी उभे तस्मिन्देवाः संमनसो भवन्ति। स दाधार पृथिवीं दिवं च स आचार्यं तपसा पिपर्ति ॥
स्वर रहित पद पाठब्रह्मऽचारी । इष्णन् । चरति । रोदसी इति । उभे इति । तस्मिन् । देवा: । सम्ऽमनस: । भवन्ति । स: । दाधार । पृथिवीम् । दिवम् । च । स: । आऽचार्यम् । तपसा । पिपर्ति ॥७.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 5; मन्त्र » 1
विषय - ब्रह्मचारी का आचार्य-पालन
पदार्थ -
१. (ब्रह्मचारी) = [ब्रह्मणि वेदात्मके चरितुं शीलं यस्य] वेदात्मक ब्रह्म में विचरण करनेवाला विद्यार्थी (उभे) = दोनों (रोदसी) = द्यावापृथिवी को-मस्तिष्क व शरीर को-(इष्णन्) = उन्नत [Promote] करता हुआ-तेज से व्यास करता हुआ, अर्थात् वीर्यरक्षण द्वारा शरीर ब मस्तिष्क को तेजस्वी व दीप्त बनाता हुआ (चरति) = गतिवाला होता है। (तस्मिन्) = उस ब्रहाचारी में (देवा:) = सब इन्द्रियों [वाणी आदि के रूप में शरीर में रहनेवाले अग्नि आदि देव] (संमनसः) = समान मनवाले, अर्थात् अनुग्रहबुद्धिवाले (भवन्ति) = होते हैं। अथवा सब (देवा:) = ज्ञानी उपाध्याय वर्ग उसपर अनुग्रह बुद्धियुक्त होते हैं। २. (सः) = वह ब्रह्मचारी (पृथिवीम्) = शरीररूप पृथिवी को (च दिवम्) = तथा मस्तिष्करूप धुलोक को दाधार धारण करता है। (स:) = वह ब्रह्मचारी (तपसा) = तप के द्वारा-'ऋत, सत्य, शान्त-स्वभाव, मन व इन्द्रियों के दमन तथा श्रुत [शास्त्र-श्रवण] के द्वारा-(आचार्यम्) = अपने आचार्य को (पिपर्ति) = पालित करता है-आचार्य की पूर्णता करता है। आचार्य ज्ञान देता है यह ब्रह्मचारी तप के द्वारा उस ज्ञान का ग्रहण करता हुआ आचार्य के अभीष्ट कर्म की पूर्ति करता है।
भावार्थ -
ब्रह्मचारी वीर्यरक्षण द्वारा शरीर व मस्तिष्क को उमत बनाता है। अपनी सब इन्द्रियों व मन को प्रशस्त करता है। शरीर व मस्तिष्क का धारण करता हुआ तपस्या द्वारा आचार्य-प्रदत्त ज्ञान का ग्रहण करता हुआ आचार्य को पालित करता है।
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