अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 5/ मन्त्र 21
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - ब्रह्मचारी
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मचर्य सूक्त
पार्थि॑वा दि॒व्याः प॒शव॑ आर॒ण्या ग्रा॒म्याश्च॒ ये। अ॑प॒क्षाः प॒क्षिण॑श्च॒ ये ते जा॒ता ब्र॑ह्मचा॒रिणः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठपार्थि॑वा: । दि॒व्या: । प॒शव॑: । आ॒र॒ण्या: । ग्रा॒म्या: । च॒ । ये । अ॒प॒क्षा: । प॒क्षिण॑: । च॒ । ये । ते । जा॒ता: । ब्र॒ह्म॒ऽचा॒रिण॑: ॥७.२१॥
स्वर रहित मन्त्र
पार्थिवा दिव्याः पशव आरण्या ग्राम्याश्च ये। अपक्षाः पक्षिणश्च ये ते जाता ब्रह्मचारिणः ॥
स्वर रहित पद पाठपार्थिवा: । दिव्या: । पशव: । आरण्या: । ग्राम्या: । च । ये । अपक्षा: । पक्षिण: । च । ये । ते । जाता: । ब्रह्मऽचारिण: ॥७.२१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 5; मन्त्र » 21
विषय - पशु-पक्षियों का ब्रह्मचर्य
पदार्थ -
१. (पार्थिवाः) = पृथिवी सम्बन्धी, (दिव्या:) = अन्तरिक्ष में होनेवाले, (आरण्या: ग्राम्या: च) = अरण्य में होनेवाले सिंह आदि तथा ग्राम में होनेवाले गौ आदि (ये पशवः) = जो पशु हैं, (अपक्षा:) = पक्षरहित, (पक्षिण: च) = और पंखोंवाले जो भी प्राणी है, (ते) = वे सब (ब्रह्मचारिणः जाता:) = ब्रह्मचर्य के प्रभाव से उत्पन्न हुए। वस्तुत: प्रभुप्रदत्त वासना-सहज ज्ञान के अनुसार ये सब ब्रह्मचर्य का पालन करनेवाले बने। ब्रह्मचर्य ही इनके स्वास्थ्य का कारण बना।
भावार्थ -
सब पशु-पक्षी प्रभुप्रदत्त वासना के कारण ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए स्वस्थ जीवनवाले हुए।
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