Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 2
    सूक्त - सोम देवता - अनुष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    सोमे॑नादि॒त्याब॒लिनः॒ सोमे॑न पृथि॒वी म॒ही। अथो॒ नक्ष॑त्राणामे॒षामु॒पस्थे॒ सोम॒ आहि॑तः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोमे॑न । आ॒दि॒त्या: । ब॒लिन॑: । सोमे॑न । पृ॒थि॒वी । म॒ही । अथो॒ इति॑ । नक्ष॑त्राणाम् । ए॒षाम् । उ॒पऽस्थे॑ । सोम॑: । आऽहि॑त: ॥१.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमेनादित्याबलिनः सोमेन पृथिवी मही। अथो नक्षत्राणामेषामुपस्थे सोम आहितः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोमेन । आदित्या: । बलिन: । सोमेन । पृथिवी । मही । अथो इति । नक्षत्राणाम् । एषाम् । उपऽस्थे । सोम: । आऽहित: ॥१.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 2

    पदार्थ -

    १. (सोमेन) = शरीर में सोम [वीर्य] के रक्षण से ही (आदित्या:) = अदीना देवमाता के पुत्र, अर्थात् देव (बलिन:) = बलवाले होते हैं। सोम रक्षण से ही वे देव बन पाते हैं। शरीर में उत्पन्न होनेवाला, भोजन के रूप में ग्रहण की गई ओषधियों का सारभूत यह सोम [वीर्य] ही है। इसका रक्षण ही देवों को देवत्व प्राप्त कराता है। (सोमेन) = सोम से ही (पृथिवी) = शरीररूप पृथिवी (मही) = महनीय व महत्वपूर्ण बनती है। शरीर में सब वसुओं-निवास के लिए आवश्यक तत्वों का स्थापन इस सोम के द्वारा ही होता है। २. (उ) = और (अथ) = अब (एषां नक्षत्राणां उपस्थे) = इन विविध विज्ञान के नक्षत्रों की उपासना के निमित्त (सोमः) = यह सोम [वीर्य] (आहित:) = शरीर में स्थापित किया गया है। इस सोम के रक्षण से ज्ञानानि तीव्र होती है और इस प्रकार मनुष्य अपने मस्तिष्क-गगन में ज्ञान के नक्षत्रों का उदय कर पाता है।

    भावार्थ -

    सोम रक्षा के तीन महत्त्वपूर्ण परिणाम हैं-[क] हृदय में देववृत्ति का प्रादुर्भाव, [ख] शरीर में शक्ति का स्थापन और [ग] मस्तिष्क में विज्ञान के नक्षत्रों का उदय।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top