Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 49
    सूक्त - आत्मा देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    दे॒वस्ते॑ सवि॒ताहस्तं॑ गृह्णातु॒ सोमो॒ राजा॑ सुप्र॒जसं॑ कृणोतु। अ॒ग्निः सु॒भगां॑ ज॒तवे॑दाः॒पत्ये॒ पत्नीं॑ ज॒रद॑ष्टिं कृणोतु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दे॒व: । ते॒ । स॒वि॒ता । हस्त॑म् । गृ॒ह्णा॒तु॒ । सोम॑: । राजा॑ । सु॒ऽप्र॒जस॑म् । कृ॒णो॒तु॒ । अ॒ग्नि: । सु॒ऽभगा॑म् । जा॒तऽवे॑दा: । पत्ये॑ । पत्नी॑म् । ज॒रत्ऽअ॑ष्टिम् । कृ॒णो॒तु॒ ॥१.४९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    देवस्ते सविताहस्तं गृह्णातु सोमो राजा सुप्रजसं कृणोतु। अग्निः सुभगां जतवेदाःपत्ये पत्नीं जरदष्टिं कृणोतु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    देव: । ते । सविता । हस्तम् । गृह्णातु । सोम: । राजा । सुऽप्रजसम् । कृणोतु । अग्नि: । सुऽभगाम् । जातऽवेदा: । पत्ये । पत्नीम् । जरत्ऽअष्टिम् । कृणोतु ॥१.४९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 49

    पदार्थ -

    १. हे वधु । (देव:) = दिव्यगुणों की प्रकृतिवाला (सविता) = सदा उत्तम प्रेरणाएँ देनेवाला यह युवक (ते) = तेरे (हस्तम्) = हाथ को (गृहातु) = ग्रहण करे। सोमः सौम्य स्वभाववाला व सोमशक्ति का पुञ्ज राजा-व्यवस्थित [Regulated] जीवनवाला यह युवा पति तुझे (सुप्रजसं कृणोतु) = उत्तम सन्तानवाला करे। पति देववृत्तिवाला हो, घर में सबको उत्तम प्रेरणाएँ प्राप्त करानेवाला हो। सौम्य स्वभाव व शक्ति का पुञ्ज हो तथा व्यवस्थित जीवनवाला हो। २. (जातवेदाः अग्नि:) = वह सर्वज्ञ अग्रणी प्रभु (सुभगां पत्नीम्) = तुझ सौभाग्यशालिनी पत्नी को (पत्ये) = पति के लिए (जरदष्टिं कृणोतु) = पूर्ण अवस्था को प्राप्त करनेवाला, अर्थात् दीर्घजीवनवाला करे। तु दीर्घजीवन को धारण करती हुई पति के लिए गृहस्थ-यज्ञ की पूर्ति में साथी बन।

    भावार्थ -

    पति "देववृत्ति का, सदा उत्तम प्रेरणा देनेवाला, सौम्य व व्यवस्थित जीवनवाला हो। पत्नी सौभाग्यशालिनी व दीर्घजीवनवाली होती हुई पति के लिए इस गृहस्थ-यज्ञ में सहायता करनेवाली हो।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top