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  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 60
    सूक्त - आत्मा देवता - परानुष्टुप् त्रिष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    भग॑स्ततक्षच॒तुरः॒ पादा॒न्भग॑स्ततक्ष च॒त्वार्युष्प॑लानि। त्वष्टा॑ पिपेश मध्य॒तोऽनु॒वर्ध्रा॒न्त्सा नो॑ अस्तु सुमङ्ग॒ली ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भग॑: । त॒त॒क्ष॒ । च॒तुर॑: । पादा॑न् । भग॑: । त॒त॒क्ष॒ । च॒त्वार‍ि॑ । उष्प॑लानि । त्वष्टा॑ । पि॒पे॒श॒ । म॒ध्य॒त: । अनु॑ । वर्ध्रा॑न् । सा । न॒: । अ॒स्तु॒ । सु॒ऽम॒ङ्ग॒ली ॥१.६०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भगस्ततक्षचतुरः पादान्भगस्ततक्ष चत्वार्युष्पलानि। त्वष्टा पिपेश मध्यतोऽनुवर्ध्रान्त्सा नो अस्तु सुमङ्गली ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भग: । ततक्ष । चतुर: । पादान् । भग: । ततक्ष । चत्वार‍ि । उष्पलानि । त्वष्टा । पिपेश । मध्यत: । अनु । वर्ध्रान् । सा । न: । अस्तु । सुऽमङ्गली ॥१.६०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 60

    पदार्थ -

    १. (भगः) = उस भजनीय प्रभु ने हमारे लिए (चतुरः पादान्) = चार 'धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष' रूप गन्तव्य पुरुषार्थों को (ततक्ष) = बनाया है। हमने केवल 'अर्थ-काम' मैं आसक्त नहीं होना। धर्म व मोक्ष से सुरक्षित अर्थ-काम ही पुरुषार्थ हैं। उनके न रहने पर तो ये व्यर्थ ही हो जाते हैं। धर्मपूर्वक अर्थ व काम होंगे तो ये मोक्ष के साधक बनेंगे। भगः-इस भजनीय प्रभु ने (चत्वारि) = चार-स्वाध्याय, यज्ञ, तप व दानरूप कर्मों को (उष्पलानि) = [उष दाहे, पल रक्षणे] कामाग्नि में दग्ध हो जाने से रक्षण करनेवाला (ततक्ष) = बनाया है। स्वाध्याय, यज्ञ, तप व दानरूप धर्मों में प्रवृत्त होने पर हम कामाग्नि से दग्ध होने से बचे रहेंगे। २. (त्वष्टा) = वह ज्ञानदीप्त निर्माता [त्विष् त] प्रभु (मध्यता) = इस गृहस्थरूप जीवन के माध्यन्दिन सवन में (अनु वर्ध्रान्) = अनुकूल संयम रज्जुओं को (पिपेश) = हमारे लिए निर्मित करता है। यहाँ संयमी जीवनवाले पुरुषों से युक्त गृहस्थ में (सा) = वह नववधू (न:) = हमारे लिए (सुमंगली अस्तु) = उत्तम मंगलों को सिद्ध करनेवाली हो। वासनामय जीवन होने पर पत्नी घर को मंगलमय नहीं बना सकती।

    भावार्थ -

    'प्रभु ने धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष' इन चार पुरुषार्थों को हमारे लिए गन्तव्य मार्ग के रूप में नियत किया है। गृहस्थ में कामाग्नि में दग्ध हो जाने से रक्षण के लिए 'स्वाध्याय, यज्ञ, तप व दान' इन सुकृतों का स्थापन किया है। गृहस्थ में भी व्रतरूप संयम-रजुओं से हमें बाँधा है। ऐसे घर में पत्नी सुमंगली होती है।

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