Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 53
    सूक्त - आत्मा देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - सवित्री, सूर्या सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त

    त्वष्टा॒ वासो॒व्यदधाच्छु॒भे कं बृह॒स्पतेः॑ प्र॒शिषा॑ कवी॒नाम्। तेने॒मां नारीं॑ सवि॒ताभग॑श्च सू॒र्यामि॑व॒ परि॑ धत्तां प्र॒जया॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वष्टा॑ । वास॑: । वि । अ॒द॒धा॒त् । शु॒भे । कम् । बृह॒स्पते॑: । प्र॒ऽशिषा॑ । क॒वी॒नाम् । तेन॑ । इ॒माम् । नारी॑म् । स॒वि॒ता । भग॑: । च॒ । सू॒र्याम्ऽइ॑व । परि॑ । ध॒त्ता॒म् । प्र॒ऽजया॑ ॥१.५३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वष्टा वासोव्यदधाच्छुभे कं बृहस्पतेः प्रशिषा कवीनाम्। तेनेमां नारीं सविताभगश्च सूर्यामिव परि धत्तां प्रजया ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वष्टा । वास: । वि । अदधात् । शुभे । कम् । बृहस्पते: । प्रऽशिषा । कवीनाम् । तेन । इमाम् । नारीम् । सविता । भग: । च । सूर्याम्ऽइव । परि । धत्ताम् । प्रऽजया ॥१.५३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 53

    पदार्थ -

    १. (त्वष्टा) = देवशिल्पी, उत्तम गृहनिर्माता ने (बृहस्पते:) = उस ज्ञानी प्रभु की वेदोपदीष्ट प्रशिषा आज्ञा के अनुसार तथा (कवीनाम्) = ज्ञानियों के (प्रशिषा) = प्रशासन के अनुसार [Architect के निर्देशानुसार] (शुभे) = शोभा की वृद्धि के लिए के (वासः) = सुखप्रद वासगृह को (व्यदधात्) = बनाया है। २. (तेन) = उस वासगृह के द्वारा, उस घर में सम्यक् निवास के द्वारा (सूर्याम् इव इमां नारीम्) = सूर्या के समान दीप्त इस नारी को (सवितः भग: च) = निर्माणात्मक कार्यों में रुचिवाला यह ऐश्वर्य का विजेता पति (प्रजया परिधत्ताम्) = उत्तम प्रजा के हेतु से धारण करे। घर में सब व्यवस्था ठीक होने से मन:प्रसाद के कारण उत्तम सन्तानों का होना स्वाभाविक है।

    भावार्थ -

    प्रभु द्वारा वेदोपदीष्ट प्रकार से तथा वास्तुकला-निपुण गृहालेखकर्ता [Archi tect] के निर्देशानुसार उत्तम शिल्पी द्वारा घर बनवाया जाए। उसमें प्रेरक व धन के अर्जक [eam] पति के साथ प्रसन्नतापूर्वक रहती हुई यह पत्नी उत्तम प्रजावाली हो।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top