अथर्ववेद - काण्ड 14/ सूक्त 1/ मन्त्र 35
सूक्त - आत्मा
देवता - सोम
छन्दः - सवित्री, सूर्या
सूक्तम् - विवाह प्रकरण सूक्त
यच्च॒ वर्चो॑अ॒क्षेषु॒ सुरा॑यां च॒ यदाहि॑तम्। यद्गोष्व॑श्विना॒ वर्च॒स्तेने॒मांवर्च॑सावतम् ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । च॒ । वर्च॑: । अ॒क्षेषु॑ । सुरा॑याम् । च॒ । यत् । आऽहि॑तम् । यत् । गोषु॑ । अ॒श्विना॑ । वर्च॑: । तेन॑ । इ॒माम् । वर्च॑सा । अ॒व॒त॒म् ॥१.३५॥
स्वर रहित मन्त्र
यच्च वर्चोअक्षेषु सुरायां च यदाहितम्। यद्गोष्वश्विना वर्चस्तेनेमांवर्चसावतम् ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । च । वर्च: । अक्षेषु । सुरायाम् । च । यत् । आऽहितम् । यत् । गोषु । अश्विना । वर्च: । तेन । इमाम् । वर्चसा । अवतम् ॥१.३५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 14; सूक्त » 1; मन्त्र » 35
विषय - 'अक्ष, सुरा, गौ' में स्थित वर्चस्
पदार्थ -
१. (यत्) = जो (च) = निश्चय से (वर्च:) = तेज अक्षेषु ज्ञानेन्द्रियों में व ज्ञानों में (आहितम्) = स्थापित हुआ है (च) = और (यत्) = जो तेज (सुरायाम्) = ऐश्वर्य में [आहितम्] स्थापित हुआ है, (यत् वर्चः) = जो तेज (गोषु) = गौ आदि पशुओं में है, हे (अश्विना) = प्राणापानो! (तेन वर्चसा) = उस तेज से (इमाम्) = इस युवति को (अवताम्) = रक्षित करो। यह युवति ब्राह्मणों के ज्ञान से सम्पन्न हो, क्षत्रियों के ऐश्वर्य से, ईशशक्ति [शासन-शक्ति] से सम्पन्न हो तथा वैश्यों के गौ आदि पशुओं से सम्पन्न हो। ज्ञान सम्पन्न होकर यह समझदारी से सारा व्यवहार करे। शासन-शक्ति-सम्पन्न होने से घर को सुव्यवस्थित रक्खे तथा गौ आदि पशुओं के द्वारा घर में पौष्टिक आहार की व्यवस्था करनेवाली हो।
भावार्थ -
पत्नी बननेवाली युवति में तीन गुण आवश्यक हैं-ज्ञान, शासन-शक्ति तथा गौ आदि पशुओं से प्रेम [न कि कुत्तों से]। इसके लिए प्राण-साधना सहायक है।
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