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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 135

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 135/ मन्त्र 5
    सूक्त - देवता - प्रजापतिरिन्द्रश्च छन्दः - स्वराडार्ष्यनुष्टुप् सूक्तम् - कुन्ताप सूक्त

    प॒त्नी यदृ॑श्यते प॒त्नी यक्ष्य॑माणा जरित॒रोथामो॑ दै॒व। हो॒ता वि॑ष्टीमे॒न ज॑रित॒रोथामो॑ दै॒व ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प॒त्नी । यत् । दृ॑श्यते । प॒त्नी । यक्ष्य॑माणा । जरित॒: ।आ । उथाम॑: । दै॒व ॥ हो॒ता । वि॑ष्टीमे॒न । जरित॒: । आ । उथाम॑:। दै॒व ॥१३५.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पत्नी यदृश्यते पत्नी यक्ष्यमाणा जरितरोथामो दैव। होता विष्टीमेन जरितरोथामो दैव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पत्नी । यत् । दृश्यते । पत्नी । यक्ष्यमाणा । जरित: ।आ । उथाम: । दैव ॥ होता । विष्टीमेन । जरित: । आ । उथाम:। दैव ॥१३५.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 135; मन्त्र » 5

    पदार्थ -
    १. हे (जरितः) = हमारी वासनाओं को जीर्ण करनेवाले (दैव) = देवों को देवत्व प्राप्त करानेवाले प्रभो! (यत्) = जब (पत्नी) = गृह-पत्नी (यक्ष्यमाणा) = यज्ञों को करती हुई-यज्ञों की कामनावाली होती हुई पत्नी (दृश्यते) = सचमुच घर का पालन करनेवाली दिखती है तो (आ उथाम:) = हम घरों को सब प्रकार से उन्नत करनेवाले होते हैं। जिस घर में गृहपत्नी यज्ञ आदि उत्तम कर्मों की वृत्तिवाली होती है, वह घर पवित्र वातावरणवाला होता हुआ सदा उन्नत होता है। २.हे (जरितः) = वासनाओं को जीर्ण करनेवाले (दैव) = देवों को देवत्व प्राप्त करानेवाले प्रभो! [यत्] जब घर में गृहपति (विष्टीमेन) = बड़े स्नेहार्द्र हृदय से [ष्टीम आर्दीभावे] (होता) = यज्ञों में आहुति देनेवाला [दृश्यते] दिखता है तो हम (आ उथामः) = घरों को सर्वथा ऊपर उठानेवाले होते हैं।

    भावार्थ - जिस घर में पति-पत्नी यज्ञिय वृत्तिवाले होते हैं वह घर सदा उन्नत होता चलता हैं।

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