अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 71/ मन्त्र 11
सं चो॑दय चि॒त्रम॒र्वाग्राध॑ इन्द्र॒ वरे॑ण्यम्। अस॒दित्ते॑ वि॒भु प्र॒भु ॥
स्वर सहित पद पाठसम् । चो॒द॒य॒ । चि॒त्रम् । अ॒र्वाक् । राध॑: । इ॒न्द्र॒ । वरे॑ण्यम् ॥ अस॑त् । इत् । ते॒ । वि॒ऽभु । प्र॒ऽभु ॥७१.११॥
स्वर रहित मन्त्र
सं चोदय चित्रमर्वाग्राध इन्द्र वरेण्यम्। असदित्ते विभु प्रभु ॥
स्वर रहित पद पाठसम् । चोदय । चित्रम् । अर्वाक् । राध: । इन्द्र । वरेण्यम् ॥ असत् । इत् । ते । विऽभु । प्रऽभु ॥७१.११॥
अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 71; मन्त्र » 11
विषय - 'चित्र-वरेण्य-विभु' राधस्
पदार्थ -
१.हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो! आप (राध:) = उस कार्य-साधक ऐश्वर्य को (अर्वाक् संचोदय) = हमारे अभिमुख प्रेरित कीजिए जोकि (चित्रम्) = ज्ञान का वर्धक है [चित्र] तथा (वरेण्यम्) = वरने के योग्य है-श्रेष्ठ है-श्रेष्ठ साधनों से कमाया गया है। २. हे प्रभो! (ते) = आपकी कृपा से ही वह धन (असत्) = प्राप्त होता है जोकि (विभु) = आवश्यक योग्य वस्तुओं के जुटाने के लिए पर्याप्त है और प्रभु-प्रभावजनक है। (इत) = निश्चय से हे प्रभो! वह धन (ते) = आपका ही है।
भावार्थ - प्रभु हमें 'चित्र-वरेण्य-विभु-प्रभु' धन प्राप्त कराएँ।
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