अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 1/ मन्त्र 6
सूक्त - अथर्वा
देवता - मधु, अश्विनौ
छन्दः - अतिशाक्वरगर्भा यवमध्या महाबृहती
सूक्तम् - मधु विद्या सूक्त
कस्तं प्र वे॑द॒ क उ॒ तं चि॑केत॒ यो अ॑स्या हृ॒दः क॒लशः॑ सोम॒धानो॒ अक्षि॑तः। ब्र॒ह्मा सु॑मे॒धाः सो अ॑स्मिन्मदेत ॥
स्वर सहित पद पाठक: । तम् । प्र । वे॒द॒ । क: । ऊं॒ इति॑ तम् । चि॒के॒त॒ । य: । अ॒स्या॒: । हृ॒द: । क॒लश॑: । सो॒म॒ऽधान॑: । अक्षि॑त: । ब्र॒ह्मा । सु॒ऽमे॒धा: । स: । अ॒स्मि॒न् । म॒दे॒त॒ ॥१.६॥
स्वर रहित मन्त्र
कस्तं प्र वेद क उ तं चिकेत यो अस्या हृदः कलशः सोमधानो अक्षितः। ब्रह्मा सुमेधाः सो अस्मिन्मदेत ॥
स्वर रहित पद पाठक: । तम् । प्र । वेद । क: । ऊं इति तम् । चिकेत । य: । अस्या: । हृद: । कलश: । सोमऽधान: । अक्षित: । ब्रह्मा । सुऽमेधा: । स: । अस्मिन् । मदेत ॥१.६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 6
विषय - ब्रह्मा+सुमेधा:
पदार्थ -
१. (यः) = जो व्यक्ति (अस्याः) = इस मधुकशा [वेदवाणी] के (हृदः) = सार का [The essence of anything] (कलश:) = घट बनता है, अर्थात् वेदवाणी के सार को धारण करता है, (सोमधान:) = सोमशक्ति को अपने में धारण करता है, (अक्षित:) = रोग आदि से क्षीण नहीं होता, वह (क:) = कोई विरल व्यक्ति ही (तं प्रवेद) = उस प्रभु को जानता है (उ) = और (कः) = वह विरल व्यक्ति ही (तं चिकेत) = [कित निवासे] उस प्रभु में निवास करता है। प्रभु के ज्ञान के लिए आवश्यक है कि हम [क] वेदज्ञान को धारण करें, [ख] सोम को सुरक्षित करें, [ग] रोग आदि से शरीर को क्षीण न होने दें। २. यह 'नीरोग, वासनाशून्य हृदयवाला ज्ञानी' ही (ब्रह्मा) = सर्वोत्तम सात्विक ज्ञानी बनता है। (स:) = वह (सुमेधा:) = उत्तम मेधावाला (ब्रह्मा अस्मिन् मदेत) = इस वेदज्ञान में व प्रभु में आनन्दित होता है, रमण करता है।
भावार्थ -
वेदवाणी के सार को धारण करनेवाला, सोम का रक्षण करनेवाला, अक्षीणशक्ति सुमेधा 'ब्रह्मा' ही वेदज्ञान व प्रभु में रमण करनेवाला होता है।
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