अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 1/ मन्त्र 7
सूक्त - अथर्वा
देवता - मधु, अश्विनौ
छन्दः - अतिजागतगर्भा यवमध्या महाबृहती
सूक्तम् - मधु विद्या सूक्त
स तौ प्र वे॑द॒ स उ॒ तौ चि॑केत॒ याव॑स्याः॒ स्तनौ॑ स॒हस्र॑धारा॒वक्षि॑तौ। ऊर्जं॑ दुहाते॒ अन॑पस्पुरन्तौ ॥
स्वर सहित पद पाठस: । तौ । प्र । वे॒द॒ । स: । ऊं॒ इति॑ । तौ । चि॒के॒त॒ । यौ । अ॒स्या॒: । स्तनौ॑ । स॒हस्र॑ऽधारौ । अक्षि॑तौ । ऊर्ज॑म् । दु॒हा॒ते॒ इति॑ । अन॑पऽस्फुरन्तौ ॥१.७॥
स्वर रहित मन्त्र
स तौ प्र वेद स उ तौ चिकेत यावस्याः स्तनौ सहस्रधारावक्षितौ। ऊर्जं दुहाते अनपस्पुरन्तौ ॥
स्वर रहित पद पाठस: । तौ । प्र । वेद । स: । ऊं इति । तौ । चिकेत । यौ । अस्या: । स्तनौ । सहस्रऽधारौ । अक्षितौ । ऊर्जम् । दुहाते इति । अनपऽस्फुरन्तौ ॥१.७॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 1; मन्त्र » 7
विषय - 'सहस्रधारौ अक्षितौ' स्तनौ
पदार्थ -
१. इस मधुकशा [वेदधेनु] के दो स्तन हैं। एक स्तन प्रकृति का ज्ञानदुग्ध देता है तो दूसरा आत्मतत्व का ज्ञानदुग्ध प्राप्त कराता है। (यौ) = जो (अस्याः) = इस वेदधेनु के (स्तनौ) = ज्ञानदुग्ध देनेवाले स्तन हैं, वे (सहस्त्रधारौ) = हज़ारों प्रकार से हमारा धारण करनेवाले हैं और (अक्षितौ) = हमें क्षीण न होने देनेवाले हैं। ये स्तन हममें (ऊर्जं दुहाते) = बल व प्राणशक्ति का प्रपूरण करते है तथा (अनपस्फुरन्तौ) = [स्फुर सञ्चलने, riot refusing to be milked] सदा ज्ञानदुग्ध देनेवाले हैं। २. (य:) = वह गतमन्त्र का 'सुमेधा ब्रह्मा' ही (तौ प्रवेद) = वेदधेनु के उन स्तनों को प्रकर्षेण जाननेवाला है, (उ) = और (स:) = वह ही (तौ चिकेत) = उनमें निवास करता है अथवा उनसे ज्ञानदुग्ध प्राप्त करता है।
भावार्थ -
वेदधेन के दोनों स्तन हमें ज्ञान देकर हजारों प्रकार से हमारा धारण करते हैं। वे हमें क्षीण नहीं होने देते, हममें बल व प्राणशक्ति का प्रपूरण करते हैं, सदा ज्ञानदुग्ध देते हैं। सुमेधा ब्रह्मा ही इन्हें जानता है और इनसे ज्ञानदुग्ध प्राप्त करता है।
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