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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 5/ मन्त्र 6
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - ब्रह्मचारी छन्दः - शाक्वरगर्भा चतुष्पदा जगती सूक्तम् - ब्रह्मचर्य सूक्त

    ब्र॑ह्मचा॒र्येति स॒मिधा॒ समि॑द्धः॒ कार्ष्णं॒ वसा॑नो दीक्षि॒तो दी॒र्घश्म॑श्रुः। स स॒द्य ए॑ति॒ पूर्व॑स्मा॒दुत्त॑रं समु॒द्रं लो॒कान्त्सं॒गृभ्य॒ मुहु॑रा॒चरि॑क्रत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ब्र॒ह्म॒ऽचा॒री । ए॒ति॒ । स॒म्ऽइधा॑ । सम्ऽइ॑ध्द: । कार्ष्ण॑म् । वसा॑न: । दी॒क्षि॒त: । दी॒र्घऽश्म॑श्रु: । स: । स॒द्य: । ए॒ति॒ । पूर्व॑स्मात् । उत्त॑रम् । स॒मु॒द्रम् । लो॒कान् । सम्ऽगृभ्य॑ । मुहु॑: । आ॒ऽचरि॑क्रत् ॥७.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ब्रह्मचार्येति समिधा समिद्धः कार्ष्णं वसानो दीक्षितो दीर्घश्मश्रुः। स सद्य एति पूर्वस्मादुत्तरं समुद्रं लोकान्त्संगृभ्य मुहुराचरिक्रत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ब्रह्मऽचारी । एति । सम्ऽइधा । सम्ऽइध्द: । कार्ष्णम् । वसान: । दीक्षित: । दीर्घऽश्मश्रु: । स: । सद्य: । एति । पूर्वस्मात् । उत्तरम् । समुद्रम् । लोकान् । सम्ऽगृभ्य । मुहु: । आऽचरिक्रत् ॥७.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 5; मन्त्र » 6

    भावार्थ -
    (ब्रह्मचारी) ब्रह्मचारी (समिधा) प्रज्वलित-काष्ठ के समान देदीप्यमान तेज से (समिद्धः) भली प्रकार तेजस्वी होकर (कार्ष्णं वसानः) कृष्ण मृग का चर्म धारण करता हुआ (दीक्षितः) व्रत में दीक्षित होकर (दीर्घश्मश्रुः) डाढ़ी, मोंछ के लम्बे केशों को रखे हुए (एति) जब गुरु गृह से आता है तब (सः) वह (सद्यः) शीघ्र ही (पूर्वस्मात् समुद्रात् उत्तरं समुद्रम्) जिस प्रकार तेजस्वी सूर्य पूर्व के समुद्र या आकाशभाग को पार करता हुआ उत्तर समुद्र में या आगे के आकाश भाग में प्रवेश करता है उसी प्रकार वह भी पूर्व समुद्र अर्थात् ब्रह्मचर्य को पार कर (उत्तरं समुद्रम्) उसके उपरान्त पालन करने योग्य गृहस्थ आश्रम में (एति) प्रवेश करता है। और वहां (लोकान् संगृभ्य) अपने साथ के लोगों को अपने साथ मिला कर (मुहुः) बराबर (आचरिक्रत्) अपने वश करता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ब्रह्मा ऋषिः। ब्रह्मचारी देवता। १ पुरोतिजागतविराड् गर्भा, २ पञ्चपदा बृहतीगर्भा विराट् शक्वरी, ६ शाक्वरगर्भा चतुष्पदा जगती, ७ विराड्गर्भा, ८ पुरोतिजागताविराड् जगती, ९ बार्हतगर्भा, १० भुरिक्, ११ जगती, १२ शाकरगर्भा चतुष्पदा विराड् अतिजगती, १३ जगती, १५ पुरस्ताज्ज्योतिः, १४, १६-२२ अनुष्टुप्, २३ पुरो बार्हतातिजागतगर्भा, २५ आर्ची उष्गिग्, २६ मध्ये ज्योतिरुष्णग्गर्भा। षड्विंशर्चं सूक्तम्॥

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