अथर्ववेद - काण्ड 8/ सूक्त 6/ मन्त्र 13
सूक्त - मातृनामा
देवता - मातृनामा अथवा मन्त्रोक्ताः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - गर्भदोषनिवारण सूक्त
य आ॒त्मान॑मतिमा॒त्रमंस॑ आ॒धाय॒ बिभ्र॑ति। स्त्री॒णां श्रो॑णिप्रतो॒दिन॒ इन्द्र॒ रक्षां॑सि नाशय ॥
स्वर सहित पद पाठये । आ॒त्मान॑म् । अ॒ति॒ऽमा॒त्रम् । अंसे॑ । आ॒ऽधाय॑ । बिभ्र॑ति । स्त्री॒णाम् । श्रो॒णि॒ऽप्र॒तो॒दिन॑: । इन्द्र॑ । रक्षां॑सि । ना॒श॒य॒ ॥६.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
य आत्मानमतिमात्रमंस आधाय बिभ्रति। स्त्रीणां श्रोणिप्रतोदिन इन्द्र रक्षांसि नाशय ॥
स्वर रहित पद पाठये । आत्मानम् । अतिऽमात्रम् । अंसे । आऽधाय । बिभ्रति । स्त्रीणाम् । श्रोणिऽप्रतोदिन: । इन्द्र । रक्षांसि । नाशय ॥६.१३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 13
विषय - कन्या के लिये अयोग्य और वर्जनीय वर और स्त्रियों की रक्षा।
भावार्थ -
(ये) जो (अतिमात्रम् आत्मानम्) अपने भारी रूप को (अंसे) अपने कन्धे पर (आधाय बिभ्रति) रक्खे हुए हैं अर्थात् बड़े भयंकर डील डौल वाले और बनावटी मुँह बनाकर अपने कन्धे पर पहने रहते हैं ऐसे छद्मवेशी लोग रात को (स्त्रीणां) स्त्रियों के संग (श्रोणि-प्रतो दिनः) दुर्व्यवहार करने वाले हैं, हे (इन्द्र) राजन् ! (रक्षांसि) उन राक्षसों, कूट रूपधारी लोगों का (नाशय) विनाश कर।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - मातृनामा ऋषिः। मातृनामा देवता। उत मन्त्रोक्ता देवताः। १, ३, ४-९,१३, १८, २६ अनुष्टुभः। २ पुरस्ताद् बृहती। १० त्र्यवसाना षट्पदा जगती। ११, १२, १४, १६ पथ्यापंक्तयः। १५ त्र्यवसाना सप्तपदा शक्वरी। १७ त्र्यवसाना सप्तपदा जगती॥
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