ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 120/ मन्त्र 12
ऋषि: - उशिक्पुत्रः कक्षीवान्
देवता - अश्विनौ
छन्दः - पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
अध॒ स्वप्न॑स्य॒ निर्वि॒देऽभु॑ञ्जतश्च रे॒वत॑:। उ॒भा ता बस्रि॑ नश्यतः ॥
स्वर सहित पद पाठअध॑ । स्वप्न॑स्य । निः । वि॒दे॒ । अभु॑ञ्जतः । च॒ । रे॒वतः॑ । उ॒भा । ता । बस्रि॑ । न॒श्य॒तः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अध स्वप्नस्य निर्विदेऽभुञ्जतश्च रेवत:। उभा ता बस्रि नश्यतः ॥
स्वर रहित पद पाठअध। स्वप्नस्य। निः। विदे। अभुञ्जतः। च। रेवतः। उभा। ता। बस्रि। नश्यतः ॥ १.१२०.१२
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 120; मन्त्र » 12
अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 7
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अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 7
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
अहं स्वप्नस्याभुञ्जतो रेवतश्च सकाशान्निर्विदे निर्विण्णो भवेयमधोभा यौ पुरुषार्थहीनौ स्तस्ता वस्रि नश्यतः ॥ १२ ॥
पदार्थः
(अध) अथ (स्वप्नस्य) निद्रायाः (निः) (विदे) प्राप्नुयाम् वाच्छन्दसीति नुमभावः। (अभुञ्जतः) स्वयमपि भोगमकुर्वतः (च) (रेवतः) श्रीमतः (उभा) द्वौ (ता) तौ (वस्रि) सुखस्तम्भनात्। वसुस्तम्भ इत्यस्मादौणादिको रिक् विभक्तिलुक्च। (नश्यतः) अदर्शनं प्राप्नुतः ॥ १२ ॥
भावार्थः
य ऐश्वर्यवानदाता यो दरिद्रो महामनास्तावलसिनौ सन्तौ दुःखभागिनौ सततं भवतः। तस्मात् सर्वैः पुरुषार्थे प्रयतितव्यम् ॥ १२ ॥अत्र प्रश्नोत्तराध्ययनाध्यापनराजधर्मविषयवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेदितव्यम् ॥इति विंशत्युत्तरशततमं सूक्तं सप्तदशोऽनुवाकस्त्रयोविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
मैं (स्वप्नस्य) नींद (अभुञ्जतः) आप भी जो नहीं भोगता उस (च) और (रेवतः) धनवान् पुरुष के निकट से (निर्विदे) उदासीन भाव को प्राप्त होऊँ (अध) इसके अनन्तर जो (उभा) दो पुरुषार्थहीन हैं (ता) वे दोनों (वस्रि) सुख के रुकने से (नश्यतः) नष्ट होते हैं ॥ १२ ॥
भावार्थ
जो ऐश्वर्यवान् न देनेवाला वा जो दरिद्री उदारचित्त है, वे दोनों आलसी होते हुए दुःख भोगनेवाले निरन्तर होते हैं, इससे सबको पुरुषार्थ के निमित्त अवश्य यत्न करना चाहिये ॥ १२ ॥इस सूक्त में प्रश्नोत्तर पढ़ने-पढ़ाने और राजधर्म के विषय का वर्णन होने से इसके अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति समझनी चाहिये ॥यह १२० वाँ सूक्त १७ वाँ अनुवाक और १३ वाँ वर्ग पूरा हुआ ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जो ऐश्वर्यवान असून कृपण असतो किंवा जो दरिद्री असून उदारचित्त असतो ते दोन्ही आळशी बनून निरंतर दुःख भोगणारे असतात, त्यामुळे सर्वांनी पुरुषार्थयुक्त बनून अवश्य प्रयत्न करावा. ॥ १२ ॥
English (1)
Meaning
Let me get away from the dreaming slothful and the uncharitable rich because both of them soon come to their logical end (since they neglect the vibrancy and generosity of the Ashvins).
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