ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 121/ मन्त्र 3
ऋषिः - औशिजो दैर्घतमसः कक्षीवान्
देवता - विश्वे देवा इन्द्रश्च
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
नक्ष॒द्धव॑मरु॒णीः पू॒र्व्यं राट् तु॒रो वि॒शामङ्गि॑रसा॒मनु॒ द्यून्। तक्ष॒द्वज्रं॒ नियु॑तं त॒स्तम्भ॒द्द्यां चतु॑ष्पदे॒ नर्या॑य द्वि॒पादे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठनक्ष॑त् । हव॑म् । अ॒रु॒णीः । पू॒र्व्यम् । राट् । तु॒रः । वि॒शाम् । अङ्गि॑रसाम् । अनु॑ । द्यून् । तक्ष॑त् । वज्र॑म् । निऽयु॑तम् । त॒स्तम्भ॑त् । द्याम् । चतुः॑ऽपदे । नर्या॑य । द्वि॒ऽपादे॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नक्षद्धवमरुणीः पूर्व्यं राट् तुरो विशामङ्गिरसामनु द्यून्। तक्षद्वज्रं नियुतं तस्तम्भद्द्यां चतुष्पदे नर्याय द्विपादे ॥
स्वर रहित पद पाठनक्षत्। हवम्। अरुणीः। पूर्व्यम्। राट्। तुरः। विशाम्। अङ्गिरसाम्। अनु। द्यून्। तक्षत्। वज्रम्। निऽयुतम्। तस्तम्भत्। द्याम्। चतुःऽपदे। नर्याय। द्विऽपादे ॥ १.१२१.३
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 121; मन्त्र » 3
अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
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अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ राजधर्मविषयमाह ।
अन्वयः
यस्तुरो मनुष्यो विद्वान् चतुष्पदे द्विपादे नर्य्याय चानुद्यून् पूर्व्यं हवमुषसोदीप्तय इवारुणीश्च नक्षद् वियुतं वज्रं तक्षद् द्यां तस्तम्भत् सोऽङ्गिरसां विशां मध्ये राड् भवति ॥ ३ ॥
पदार्थः
(नक्षत्) प्राप्नुयात् (हवम्) दातुमादातुमर्हं न्यायम् (अरुणीः) उषसोऽरुण्यो दीप्तय इव वर्त्तमाना राजनीतीः (पूर्व्यम्) पूर्वैर्विद्वद्भिः कृतमनुष्ठितम् (राट्) राजते सः (तुरः) त्वरितोऽनलसः सन् (विशाम्) पालनीयानां प्रजानाम् (अङ्गिरसाम्) अङ्गानां रसप्राणवत् प्रियाणाम् (अनु) (द्यून्) दिनानि (तक्षत्) तीक्ष्णीकृत्य शत्रून् हिंस्यात् (वज्रम्) शस्त्रास्त्रसमूहम् (नियुतम्) नित्यं युक्तम् (तस्तम्भत्) स्तभ्नीयात् (द्याम्) विद्यान्यायप्रकाशम् (चतुष्पदे) गवाद्याय पशवे (नर्य्याय) नृषु साधवे (द्विपादे) मनुष्याद्याय ॥ ३ ॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या विनयादिभिर्मनुष्यादीन् गवादींश्चातीताप्तराजवद्रक्षन्त्यन्यायेन कंचिन्न हिंसन्ति त एव सुखानि प्राप्नुवन्ति नेतरे ॥ ३ ॥
हिन्दी (3)
विषय
अब राजधर्म विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
जो (तुरः) तुरन्त आलस्य छोड़े हुए विद्वान् मनुष्य (चतुष्पदे) गोआदि पशु वा (द्विपादे) मनुष्य आदि प्राणियों वा (नर्य्याय) मनुष्यों में अति उत्तम महात्माजन के लिये (अनु, द्यून्) प्रतिदिन (पूर्व्यम्) अगले विद्वानों ने अनुष्ठान किये हुए (हवम्) देने-लेने योग्य और (अरुणीः) प्रातः समय की वेला लाल रंगवाली उजेली के समान राजनीतियों को (नक्षत्) प्राप्त हो (नियुतम्) नित्य कार्य में युक्त किये हुए (वज्रम्) शस्त्र-अस्त्रों को (तक्षत्) तीक्ष्ण करके शत्रुओं को मारे तथा उनके (द्याम्) विद्या और न्याय के प्रकाश का (तस्तम्भत्) निबन्ध करे, वह (अङ्गिरसाम्) अङ्गों के रस अथवा प्राण के समान प्यारे (विशाम्) प्रजाजनों के बीच (राट्) प्रकाशमान राजा होता है ॥ ३ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य विनय आदि से मनुष्य आदि प्राणी और गौ आदि पशुओं को व्यतीत हुए आप्त, निष्कपट, सत्यवादी राजाओं के समान पालते और अन्याय से किसी को नहीं मारते हैं, वे ही सुखों को पाते हैं और नहीं ॥ ३ ॥
विषय
नियत वा का तक्षण
पदार्थ
१. ज्ञान की वाणियों को सुननेवाला व्यक्ति (हवम्) = प्रभु की पुकार को (नक्षत्) = प्राप्त होता है । प्रभु प्रेरणा देते हैं और यह सुनता है, परिणामतः (अरुणीः) = आरोचमान ज्ञान की किरणों को [नक्षत्] प्राप्त होता है । इन प्रेरणाओं में इसे प्रकाश मिलता है । (पूर्व्यम्) = पालन व पूरण करनेवालों में उत्तम [पृ पालनपूरणयोः] वेदज्ञान को [नक्षत्] प्राप्त करता है । २. इस वेदज्ञान को प्राप्त करके यह (राट्) = दीप्त व व्यवस्थित जीवनवाला होता है । (अङ्गिरसा विशाम्) = अङ्ग - प्रत्यङ्ग में रसमय जीवनवाली प्रजाओं में से यह (अनुद्युन्) = दिन - प्रतिदिन (तुरः) काम - क्रोधादि शत्रुओं का संहार करनेवाला बनता है । ३. अपने जीवन में यह (नियुतम्) = [नित्ययुक्तम् - द०] कभी भी पृथक् न होनेवाले (वज्रम्) = क्रियाशीलतारूप वज्र का (तक्षत्) = निर्माण करता है । यह सतत क्रियाशील होता है । (चतुष्पदे) = पशुओं के लिए (नर्याय) = नरहित के कर्मों के लिए तथा (द्विपादे) = पक्षियों के लिए, एवं मनुष्यों व पशु - पक्षियों सभी के हित के लिए कर्म करने के उद्देश्य से (द्यां तस्तम्भत्) = ज्ञान को धारण करता है, स्थितप्रज्ञ बनता है, अपनी बुद्धि को डाँवाडोल नहीं होने देता ।
भावार्थ
भावार्थ - हम प्रभु की प्रेरणाओं को सुनें, आरोचमान ज्ञान की किरणों को प्राप्त करके सुन्दर यज्ञिय जीवनवाले हों ।
विषय
परमेश्वर की स्तुति।
भावार्थ
( राट् ) प्रकाशमान् सूर्य जिस प्रकार ( पूर्व्यम् ) पूर्व दिशा में प्रकट होने वाले ( हवम् ) देने योग्य प्रकाश को देता और ( अरुणीः नक्षत् ) प्रकाशमान् उषाओं को व्यापता है उसी प्रकार जो तेजस्वी पुरुष ( पूर्व्यम् हवम् ) पूर्व के विद्वानों से किये और उपदेश किये गये ( हवम् ) देने और आदरपूर्वक ग्रहण करने योग्य न्याय और ज्ञान को प्रकट करता और ( अरुणीः ) सबके चित्त को लुभाने वाली उत्तम धार्मिक नीतियों को ( नक्षत् ) वर्त्तता है और जो ( तुरः ) अति शीघ्रकारी, वायु के समान वेग से शत्रु पर जाने वाला ( अनु द्यून् ) सब दिनों ( नियुतं वज्रं नक्षत् ) बड़े प्रबल वज्र या अशनि प्रपात के समान सदा स्थिर, नियुक्त दृढ़ शस्त्रास्त्र बल को तीक्ष्ण करके शत्रु पर प्रहार करता है और ( चतुष्पदे ) चौपाये पशुओं के ( नर्याय ) साधारण मनुष्यों के बीच नायकों के और (द्विपादे) दोपाये भृत्य आदि सेवक जनों के हित के लिये ( द्यां तस्तम्भद् ) सूर्य के प्रकाश के समान न्याय और विद्या के प्रकाश तथा राजसभा और विद्वत्सभा को स्थापित करता है वही ( अंगिरसां विशा ) तेजस्वी अग्नियों के बीच सूर्य के समान विद्वान्, तेजस्वी और वीर पुरुषों में और प्रजागण में ( राट् ) राजा सम्राट् है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ओषिजः कक्षीवानृषिः॥ विश्वेदेवा इन्द्रश्च देवता॥ छन्दः– १, ७, १३ भुरिक् पंक्तिः॥ २, ८, १० त्रिष्टुप् ।। ३, ४, ६, १२, १४, १५ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ९, ११ निचृत् त्रिष्टुप्॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे विनयाने माणसे गाई इत्यादी पशूंचे, आप्त, निष्कपटी, सत्यवादी राजाप्रमाणे पालन करतात. अन्यायाने कुणाचे हनन करीत नाहीत तेच सुख प्राप्त करतात इतर नव्हे. ॥ ३ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Like the sun illuminating the brilliant dawn every day, let the ruler follow, illuminate and extend the brilliant ethics and policies of eternal value and shine, inspiring the best and dearest people, day by day. Let him have the armaments deployed, serviced and sharpened and, as the sun holds the regions of heaven, let him maintain the light of justice for the quadrupeds, bipeds and humans and all that concerns the humans.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Now the duties of a King are told in the third Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
May an active learned person who everyday acts justly for bringing about the welfare of the cows and other quadruped, and bipeds, who behaves in political field as the splendor of the purple dawn. who sharpens his powerful arms and kills his wicked enemies, who upholds the light of knowledge and justice for the good of the quadrupeds (like the cow etc.) and bipeds, deserves to be a king among the subjects that are dear like the Pranas or vital breaths.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Only those persons enjoy happiness who protect bipeds and quadrupeds like the cows etc. with their humility and other virtues and who do not kill any one unjustly. (हवम्) दातुम् आदातुम् अहंम् = Justice that is to be accepted and given to others. हु-दानादनयोः आदाने च (अंगिरसाम् ) अंगानां रसप्राणवत् प्रियाणाम् Dear like the Pranas (प्राणो वा अंगिरा: शत० ६.१.१.२८) (अरुणी:) उषसः अरुणाः दीप्तयः इव वर्तमाना राजनीतिः = Politics splendid like the purple dawn.
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