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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 124 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 124/ मन्त्र 10
    ऋषिः - कक्षीवान् दैर्घतमसः औशिजः देवता - उषाः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    प्र बो॑धयोषः पृण॒तो म॑घो॒न्यबु॑ध्यमानाः प॒णय॑: ससन्तु। रे॒वदु॑च्छ म॒घव॑द्भ्यो मघोनि रे॒वत्स्तो॒त्रे सू॑नृते जा॒रय॑न्ती ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । बो॒ध॒य॒ । उ॒षः॒ । पृ॒ण॒तः । म॒घो॒नि॒ । अबु॑ध्यमानाः । प॒णयः॑ । स॒स॒न्तु॒ । रे॒वत् । उ॒च्छ॒ । म॒घव॑त्ऽभ्यः । म॒घो॒नि॒ । रे॒वत् । स्तो॒त्रे । सू॒नृ॒ते॒ । जा॒रय॑न्ती ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र बोधयोषः पृणतो मघोन्यबुध्यमानाः पणय: ससन्तु। रेवदुच्छ मघवद्भ्यो मघोनि रेवत्स्तोत्रे सूनृते जारयन्ती ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। बोधय। उषः। पृणतः। मघोनि। अबुध्यमानाः। पणयः। ससन्तु। रेवत्। उच्छ। मघवत्ऽभ्यः। मघोनि। रेवत्। स्तोत्रे। सूनृते। जारयन्ती ॥ १.१२४.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 124; मन्त्र » 10
    अष्टक » 2; अध्याय » 1; वर्ग » 8; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे मघोन्युषः स्त्रि त्वं येऽबुध्यमानाः पणयः उषस्समये दिने वा ससन्तु तान् पृणत उषर्वत् प्रबोधय। हे मघोनि सूनृते त्वमुषर्वज्जारयन्ती मघवद्भ्यो रेवत् स्तोत्रे रेवदुच्छ प्रापय ॥ १० ॥

    पदार्थः

    (प्र) (बोधय) (उषः) उषर्वद्वर्त्तमाने (पृणतः) पालयतः पुष्टान् प्राणिनः (मघोनि) पूजितधनयुक्ते (अबुध्यमानाः) (पणयः) व्यवहारयुक्ताः (ससन्तु) स्वपन्तु (रेवत्) प्रशस्तधनवत् (उच्छ) (मघवद्भ्यः) प्रशंसितधनेभ्यः (मघोनि) बहुधनकारिके (रेवत्) नित्यं संबद्धं धनम् (स्तोत्रे) स्तावकाय (सूनृते) सुष्ठुसत्यस्वभावे (जारयन्ती) वयो गमयन्ती ॥ १० ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। न केनचिद् रात्रेः पश्चिमे यामे दिने वा शयितव्यम्। कुतो निद्रादिनयोरधिकोष्णतायोगेन रोगाणां प्रादुर्भावात् कार्यावस्थयोर्हानेश्च। यथा पुरुषार्थयुक्त्या पुष्कलं धनं प्राप्नोति तथा सूर्योदयात् प्रागुत्थाय यत्नवान् दारिद्र्यं जहाति ॥ १० ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे (मघोनि) उत्तम धनयुक्त (उषः) प्रभातवेला के तुल्य वर्त्तमान स्त्री ! तूँ जो (अबुध्यमानाः) अचेत नींद में डूबे हुए वा (पणयः) व्यवहारयुक्त प्राणी प्रभात समय वा दिन में (ससन्तु) सोवें उनकी (पृणतः) पालना करनेवाले पुष्ट प्राणियों को प्रातःसमय की वेला के प्रकाश के समान (प्र, बोधय) बोध करा। हे (मघोनि) अतीव धन इकट्ठा करनेवाली (सूनृते) उत्तम सत्यस्वभावयुक्त युवति ! तूँ प्रभात वेला के समान (जारयन्ती) अवस्था व्यतीत कराती हुई (मघवद्भ्यः) प्रशंसित धनवानों के लिये (रेवत्) उत्तम धनयुक्त व्यवहार जैसे हो, वैसे (स्तोत्रे) स्तुति प्रशंसा करनेवाले के लिये (रेवत्) स्थिर धन की (उच्छ) प्राप्ति करा ॥ १० ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। किसी को रात्रि के पिछले पहर में वा दिन में न सोना चाहिये क्योंकि नींद और दिन के घाम आदि की अधिक गरमी के योग से रोगों की उत्पत्ति होने से तथा काम और अवस्था की हानि से, जैसे पुरुषार्थ की युक्ति से बहुत धन को प्राप्त होता, वैसे सूर्योदय से पहिले उठ कर यत्नवान् पुरुष दरिद्रता का त्याग करता है ॥ १० ॥

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    विषय

    पणयः ससन्तु

    पदार्थ

    १. हे (मघोनि) = ऐश्वर्यों से सम्पन्न (उषः) = उषे! (प्रणतः) = देनेवालों को, अपने धन का यज्ञों में विनियोग करनेवालों को (प्रबोधय) = तू जागरित कर । ये देनेवाले यज्ञशील पुरुष उद्बुद्ध होकर यज्ञादि उत्तम कर्मों में प्रवृत्त हों, इसके विपरीत (पणयः) = व्यापार की वृत्तिवाले, अत्यागशील पुरुष (अबुध्यमानाः) = अप्रबुद्ध हुए - हुए (ससन्तु) = सोये रहें । ये दीर्घ निद्रा में ही चले जाएँ, अर्थात् मृत हो जाएँ [नियन्ताम् - सा०] २. हे (मघोनि) = ऐश्वर्यसम्पन्न उषे! तू इन (मषवद्भ्यः) = यज्ञशील पुरुषों के लिए (रेवत्) = ऐश्वर्यवाली होकर (उच्छ) = अन्धकार को दूर कर । इनके लिए तू ऐश्वर्य देनेवाली हो । ३. हे (सूनृते) = [सु. ऊन्, ऋत] शोभने! दुःखों को दूर करनेवाली तथा ठीक समय पर आनेवाली उषे! (जारयन्ती) = सब अन्धकारों व दोषों को जीर्ण करती हुई तू (स्तोत्रे) = स्तोता के लिए - प्रभुस्तवन करनेवाले के लिए (रेवत्) = ऐश्वर्यवाली होकर उदित हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ - दानशील [पृणतः] यज्ञशील [मभवद्भ्यः] स्तवन करनेवाले [स्तोत्रे] पुरुष उषाकाल में प्रबुद्ध हों । उषा इनके लिए ऐश्वर्यों को देनेवाली हो ।

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    विषय

    पक्षान्तर में सेना और योगज विशोका का दिग्दर्शन ।

    भावार्थ

    हे ( मघोनि ) उत्तम ऐश्वर्यवति ! ( उषः ) प्रभातवेला, ( पृणतः ) पालन करने वाले, सुप्रसन्न, हृष्ट पुष्ट प्राणियों को (प्रबोधय) जगा और जो ( अबुध्यमानाः ) न जागने वाले ( पणयः ) व्यवहार कुशल पुरुष (ससन्तु) सोते हों उनको भी जगा । हे ( सूनृते ) उत्तम धनैश्वर्यवति ! सत्य व्यवहार से युक्त ! ( मघोनि ) प्रातःवेले ! तू ( जारयन्ती ) सब प्राणियों की आयुओं को प्रति दिन क्षीण करती हुई (मघवद्भ्यः) ऐश्वर्यवान् पुरुषों के हित के लिये ( रेवत् उच्छ ) अपने ऐश्वर्य युक्त रूप को प्रकट कर । और ( स्तोत्रे ) स्तुति शील उपासक के लिये भी ( रेवत् ) अपने ऐश्वर्यमय रूप को प्रकट कर । हे वधू ! इसी प्रकार ( पणयः अबुध्यमानाः ससन्तु ) जो व्यवहार युक्त पुरुष सोते हैं उन ( पृणतः ) अपने पालक भ्राता, पति आदि पुरुषों को ( प्र बोधय ) तू जगा । अर्थात् आप उनसे पूर्व उठकर उनको जगा । हे ( सूनृते ) शुभ व्यवहार और उत्तम वाणी वाली ! हे ( मघोनि ) सौभग्यवति ! ( मघवद्भयः स्तोत्रे ) ऐश्वर्यवन् सम्बन्धियों और उत्तम वेदोपदेष्टा पुरुष के आदर के लिये ( रेवत् उच्छ ) अपना ऐश्वर्य वृद्धि करने वाला सुखकारी रूप और गुण प्रकट कर । इति अष्टमो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कक्षीवान्दैर्घतमस ऋषिः ॥ उषो देवता ॥ छन्दः- १, ३, ६, ९, १० निचृत् त्रिष्टुप् । ४, ७, ११ त्रिष्टुप् । १२ विराट् त्रिष्टुप् । २, १३ भुरिक् पङ्क्तिः । ५ पङ्क्तिः । ८ विराट् पङ्क्तिश्च ॥ द्वादशर्चं सूक्तम् ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. कुणीही रात्रीच्या चौथ्या प्रहरी किंवा दिवसा झोपू नये. कारण झोप व अधिक उष्णतेमुळे रोग उत्पन्न होतात व कार्य आणि अवस्था यांची हानी होते. जसे पुरुषार्थाने युक्तिपूर्वक पुष्कळ धन प्राप्त होते तसे सूर्योदयापूर्वी उठून उद्योगी पुरुष दारिद्र्याचा त्याग करतो. ॥ १० ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Dawn, abundant in light and wealth, wake up the generous and giving. The miserly and the ignorant lost in daily chores would sleep, wake up these too. Lady of light and wealth, let the wealth of the generous shine in charity. Mistress of Truth and Law, rousing and praising the singer of songs divinely blest with wealth, enlighten him, bless him.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The same subject is continued.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O Dawn-like woman, full of the wealth of wisdom, awaken those wealth guardians and traders who are not wakeful to their duties out of ignorance and are asleep. Arise O Opulent Dawn-like lady, bestowing wealth of knowledge on the wealthy persons who are devoid of true wisdom. O speaker of true and sweet words and of noble disposition, spending thy life in useful activities, give to the admirer of Dharma, the wealth of wisdom, which thou possessest abundantly.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (पृणत:) पालयत: पुष्टान् प्राणिनः = Sturdy beings who feed others. (पणय:) व्यवहारयुक्ता: = Traders.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    None should sleep in the last part of the night and in day time for there is likelihood of some diseases cropping up by sleeping at that time and there is the loss of time and work. As a man acquires much wealth by labour and tactful exertion, in the same manner, an industrious person who gets up early in the morning and before sunrise rises above poverty.

    Translator's Notes

    पृ- पालन पूररगयो: (स्वा०) पण-व्यवहारे स्तुतौ च (भ्वा० ) अत्र व्यवहारार्थग्रहणम् ।

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