Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 124 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 124/ मन्त्र 9
    ऋषिः - कक्षीवान् दैर्घतमसः औशिजः देवता - उषाः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आ॒सां पूर्वा॑सा॒मह॑सु॒ स्वसॄ॑णा॒मप॑रा॒ पूर्वा॑म॒भ्ये॑ति प॒श्चात्। ताः प्र॑त्न॒वन्नव्य॑सीर्नू॒नम॒स्मे रे॒वदु॑च्छन्तु सु॒दिना॑ उ॒षास॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒साम् । पूर्वा॑साम् । अह॑ऽसु । स्वसृ॑ॠणाम् । अप॑रा । पूर्वा॑म् । अ॒भि । ए॒ति॒ । प॒श्चात् । ताः । प्र॒त्न॒ऽवत् । नव्य॑सीः । नू॒नम् । अ॒स्मे इति॑ । रे॒वत् । उ॒च्छ॒न्तु॒ । सु॒ऽदिनाः॑ । उ॒षसः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आसां पूर्वासामहसु स्वसॄणामपरा पूर्वामभ्येति पश्चात्। ताः प्रत्नवन्नव्यसीर्नूनमस्मे रेवदुच्छन्तु सुदिना उषास: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आसाम्। पूर्वासाम्। अहऽसु। स्वसॄणाम्। अपरा। पूर्वाम्। अभि। एति। पश्चात्। ताः। प्रत्नऽवत्। नव्यसीः। नूनम्। अस्मे इति। रेवत्। उच्छन्तु। सुऽदिनाः। उषसः ॥ १.१२४.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 124; मन्त्र » 9
    अष्टक » 2; अध्याय » 1; वर्ग » 8; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    यथासां पूर्वासां स्वसॄणामपरा काचिद्भगिन्यहसु केषु चिदहःसु पूर्वां भगिनीमभ्येति पश्चात् स्वगृहं गच्छेत् तथा सुदिना उषासोऽस्मे नूनं प्रत्नवद्रेवन्नव्यसीः प्रकाशयन्तु ता उच्छन्तु च ॥ ९ ॥

    पदार्थः

    (आसाम्) (पूर्वासाम्) ज्येष्ठानाम् (अहसु) दिनेषु। अत्र वाच्छन्दसीति रोरभावे नलोपः। (स्वसॄणाम्) भगिनीनाम् (अपरा) (पूर्वाम्) (अभि) (एति) प्राप्नुयात् (पश्चात्) (ताः) (प्रत्नवत्) प्रत्नः प्राचीनो निधिर्विद्यते यस्मिन् (नव्यसीः) नवीयसीः (नूनम्) निश्चितम् (अस्मे) अस्मभ्यम् (रेवत्) प्रशस्तपदार्थयुक्तं द्रव्यम् (उच्छन्तु) तमो विवासयन्तु (सुदिनाः) शोभनानि दिनानि याभ्यस्ताः (उषासः) उषसः प्रभाताः। अत्रान्येषामपीति दीर्घः ॥ ९ ॥

    भावार्थः

    यथा बहवो भगिन्यो दूरे दूरे देशे विवाहिताः कदाचित्कयाचित्सह काचिन्मिलती स्वव्यवहारमाख्याति तथा पूर्वा उषसो वर्त्तमानया सह संयुज्य स्वव्यवहारं प्रकटयन्ति ॥ ९ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    जैसे (आसाम्) इन (पूर्वासाम्) प्रथम उत्पन्न जेठी (स्वसॄणाम्) बहिनों में (अपरा) अन्य कोई पीछे उत्पन्न हुई छोटी बहिन (अहसु) किन्हीं दिनों में अपनी (पूर्वाम्) जेठी बहिन के (अभ्येति) आगे जावे और (पश्चात्) पीछे अपने घर को चली जावे वैसे (सुदिनाः) जिनसे अच्छे-अच्छे दिन होते वे (उषसः) प्रातःसमय की वेला (अस्मे) हम लोगों के लिये (नूनम्) निश्चययुक्त (प्रत्नवत्) जिसमें पुरानी धन की धरोहर है उस (रेवत्) प्रशंसित पदार्थ युक्त धन को (नव्यसीः) प्रति दिन अत्यन्त नवीन होती हुई प्रकाश करे (ताः) वे (उच्छन्तु) अन्धकार को निराला करें ॥ ९ ॥

    भावार्थ

    जैसे बहुत बहिनें दूर दूर देश में विवाही हुई होती उनमें कभी किसी के साथ कोई मिलती और अपने व्यवहार को कहती है, वैसे पिछिली प्रातःसमय की वेला वर्त्तमान वेला के साथ संयुक्त होकर अपने व्यवहार को प्रसिद्ध करती है ॥ ९ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सुदिना उषासः

    पदार्थ

    १. सब उषाएँ परस्पर बहिनों के समान हैं । (आसाम्) = इन (पूर्वासां स्वसृृणां) = पुरातन बहिनों में (अहसु) = दिनों में (अपरा) = पिछले दिन में आनेवाली उषा (पूर्वाम्) = पहले दिन में आ चुकी उषा के (पश्चात) = पीछे अभ्येति आती है । इस प्रकार इनका क्रम चलता आ रहा है । २. (ताः) = वे (नव्यसीः) = नवीन उषाएँ भी (प्रत्नवत्) = पुरातन उषाओं की भाँति (नूनम्) = निश्चयपूर्वक (अस्मे) = हमारे लिए (रेवत्) = धनवाली होकर (उच्छन्तु) = प्रकाशित हों । जिस प्रकार गत उषाएँ हमारे लिए वृद्धि का कारण बनीं, उसी प्रकार ये नवीन उषाएँ भी हमारे लिए ऐश्वर्य को देनेवाली हों । इस प्रकार ये सब (उषासः) = उषाएँ हमारे लिए (सुदिनाः) = शोभन दिनों का कारण बनें ।

    भावार्थ

    भावार्थ - उषाएँ हमारे लिए ऐश्वर्य को लानेवाली हों । ये हमारे लिए दिनों को शुभ बनाएँ ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पक्षान्तर में सेना और योगज विशोका का दिग्दर्शन ।

    भावार्थ

    ( अहः सु ) दिनों पर आश्रित इन ( पूर्वासां स्वसृणां ) पूर्व की बहिनों के समान स्वयं व्यतीत हुई रात्रियों में भी ( अपरा ) पीछे आने वाली रात्रि ( पूर्वाम् ) अपने से पूर्व की रात्रि के ( पश्चात् अभ्येति ) पीछे आती है उसी प्रकार इन प्रभातवेलाएं में भी ठीक एक दूसरे के पीछे आती हैं । ( अथवा-अपरा ) पीछे आने वाली उषा ( पूर्वाम् पश्चात् अभ्येति ) पूर्वा अर्थात् रात्रिके पीछे पीछे आती है । ( ताः ) वे ( सुदिना उषासः ) उत्तम दिवस के संग प्राप्त करने वाली उषाएं ( नव्यसीः ) सदा नयी बहार होकर (अस्मे ) हमें ( प्रत्नवत् ) पुराने उत्तम सञ्चित धन से युक्त और (रेवत्) ऐश्वर्य से युक्त उत्तम सौभाग्य को ( उच्छन्ती ) प्रकट करें । उसी प्रकार उत्तम वधुएं भी ( अहःसु आसां पूर्वासां स्वसृणाम् ) बहिन या आदित्य के समान उज्ज्वल अपने अपने पतियों के आश्रित पूर्व की बहिनों में ( अपरा पूर्वाम् पश्चाद् अभ्येति ) दूसरी छोटी बहिन अपने से पूर्व की बड़ी बहिन के पीछे पीछे उसका अनुकरण करती हुई चले । ( नूनम् ) निश्चय से वे ( नव्यसीः ) सदा नये उत्तम रूप वाली होकर ( सुदिनाः उषासः ) उत्तम दिन वाली कान्तिमती कन्याएं ( प्रत्नवत् रेवत् उच्छन्तु ) पूर्व सञ्चित धन से युक्त, ऐश्वर्यवान् सौभाग्य प्रकट करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कक्षीवान्दैर्घतमस ऋषिः ॥ उषो देवता ॥ छन्दः- १, ३, ६, ९, १० निचृत् त्रिष्टुप् । ४, ७, ११ त्रिष्टुप् । १२ विराट् त्रिष्टुप् । २, १३ भुरिक् पङ्क्तिः । ५ पङ्क्तिः । ८ विराट् पङ्क्तिश्च ॥ द्वादशर्चं सूक्तम् ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जशा दूर देशी राहणाऱ्या पुष्कळ विवाहित भगिनी एकमेकींना भेटून आपल्या व्यवहाराची माहिती देतात तशी पूर्वीची उषेची वेळ वर्तमान वेळेबरोबर संयुक्त होऊन व्यवहार प्रकट करतात. ॥ ९ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Of all these sister dawns of the past age, the latter, the elder, follows after the former, the younger, in cyclic succession day after day. May all these dawns, each new one like the former, bring us happy days bearing the wealth of the world and illuminate our days with the light of the world.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The same subject is continued.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    Of all these sisters (Dawns) who have gone before, a successor daily follows the one that has preceded, so may now Dawns, like the old, bringing fortunate days, shine upon us blessed with refulgence.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As among many sisters who are married at distant places, one meets the other at different periods and tells her tale to her, in the same manner, the former dawns joining the recent ones, manifest their function.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top