Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 124 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 124/ मन्त्र 13
    ऋषिः - कक्षीवान् दैर्घतमसः औशिजः देवता - उषाः छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    अस्तो॑ढ्वं स्तोम्या॒ ब्रह्म॑णा॒ मेऽवी॑वृधध्वमुश॒तीरु॑षासः। यु॒ष्माकं॑ देवी॒रव॑सा सनेम सह॒स्रिणं॑ च श॒तिनं॑ च॒ वाज॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अस्तो॑ढ्वम् । स्तो॒म्याः॒ । ब्रह्म॑णा । मे॒ । अवी॑वृधध्वम् । उ॒श॒तीः । उ॒ष॒सः॒ । यु॒ष्माक॑म् । दे॒वीः॒ । अव॑सा । स॒ने॒म॒ । स॒ह॒स्रिण॑म् । च॒ । श॒तिन॑म् । च॒ । वाज॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्तोढ्वं स्तोम्या ब्रह्मणा मेऽवीवृधध्वमुशतीरुषासः। युष्माकं देवीरवसा सनेम सहस्रिणं च शतिनं च वाजम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अस्तोढ्वम्। स्तोम्याः। ब्रह्मणा। मे। अवीवृधध्वम्। उशतीः। उषसः। युष्माकम्। देवीः। अवसा। सनेम। सहस्रिणम्। च। शतिनम्। च। वाजम् ॥ १.१२४.१३

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 124; मन्त्र » 13
    अष्टक » 2; अध्याय » 1; वर्ग » 9; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः कीदृश्यः स्त्रियो वरा भवेयुरित्याह ।

    अन्वयः

    हे उषास उषोभिस्तुल्या स्तोम्या देवीर्विदुष्यो ब्रह्मणा उशतीर्यूयं मे विद्याः अस्तोढ्वमवीवृधध्वम्। युष्माकमवसा सहस्रिणं च शतिनं च वाजं साङ्गसरहस्यवेदादिशास्त्रबोधं सनेम ॥ १३ ॥

    पदार्थः

    (अस्तोढ्वम्) स्तुवत (स्तोम्याः) स्तोतुमर्हाः (ब्रह्मणा) वेदेन (मे) मह्यम् (अवीवृधध्वम्) वर्द्धयत (उशतीः) कामयमानाः (उषासः) प्रभाताः। अत्रान्येषामपीत्युपधादीर्घः। (युष्माकम्) (देवीः) दिव्यविद्यायुक्ताः (अवसा) रक्षणाद्येन (सनेम) अन्येभ्यो दद्याम (सहस्रिणम्) सहस्रमसंख्याता गुणा विद्यन्ते यस्मिंस्तम् (च) (शतिनम्) शतशो विद्यायुक्तम् (च) (वाजम्) विज्ञानमयं बोधम् ॥ १३ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथोषसः शुभगुणकर्मस्वभावाः सन्ति तद्वत् स्त्रियो भवेयुस्तथाऽत्युत्तमा मनुष्या भवेयुः। यथान्यस्माद्विदुषः स्वप्रयोजनाय विद्या गृह्णीयुस्तथैव प्रीत्यान्येभ्योऽपि दद्युः ॥ १३ ॥अत्रोषसो दृष्टान्तेन स्त्रीणां गुणवर्णनादेतत्सूक्तार्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति बोध्यम् ॥इति चतुर्विंशत्युत्तरशततमं सूक्तं नवमो वर्गश्च समाप्तः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर कैसी स्त्री श्रेष्ठ हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे (उषासः) प्रभात वेलाओं के तुल्य (स्तोम्याः) स्तुति करने के योग्य (देवीः) दिव्य विद्यागुणवाली पण्डिताओ ! (ब्रह्मणा) वेद से (उशतीः) कामना और कान्ति को प्राप्त होती हुई तुम (मे) मेरे लिये विद्याओं की (अस्तोढ्वम्) स्तुति प्रशंसा करो और (अवीवृधध्वम्) हम लोगों की उन्नति कराओ तथा (युष्माकम्) तुम्हारी (अवसा) रक्षा आदि से (सहस्रिणम्) जिसमें सहस्रों गुण विद्यमान (च) और जो (शतिनम्) सैकड़ों प्रकार की विद्याओं से युक्त (च) और (वाजम्) अङ्ग, उपाङ्ग, उपनिषदों सहित वेदादि शास्त्रों का बोध उसको दूसरों के लिये हम लोग (सनेम) देवें ॥ १३ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे प्रातर्वेला अच्छे गुण, कर्म और स्वभाववाली है, वैसी स्त्री हों और वैसे उत्तम गुण, कर्मवाले मनुष्य हों जैसे और विद्वान् से अपने प्रयोजन के लिये विद्या लेवें, वैसे ही प्रीति से औरों के लिये भी विद्या देवें ॥ १३ ॥इस सूक्त में प्रभात वेला के दृष्टान्त से स्त्रियों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥यह १२४ वाँ सूक्त और ९ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    उषा का स्तवन

    पदार्थ

    १. हे (स्तोम्याः) = स्तुति के योग्य (उपासः) = उषाओ! तुम (ब्रह्मणा) = मेरे स्तोत्र - स्तुतिवचन से (अस्तोढ्वम्) = स्तुत होओ । इन उषाकालों में हम प्रभु का स्तवन करनेवाले हों । उषाकालों में यही सबसे उत्तम करने योग्य कार्य है । यही उषा का आदर भी है । इस समय सोये रहना या उठकर झगड़ने आदि व्यर्थ के कार्यों में लगना-यह उषा का निरादर ही है । २. हे (उशतीः) = हमारे हित की कामना करनेवाली उषाओ! तुममें हमारे स्तवन आदि कार्यों से (अवीवृधध्वम्) = हमारा वर्धन करनेवाली होओ । उषाकाल में हम वृद्धि के साधनभूत कार्यों को ही करनेवाले हों । ३. हे (देवीः) = प्रकाशमयी उषाओ! (युष्माकं अवसा) = तुम्हारे रक्षण के द्वारा हम उस (वाजम्) = शक्ति व धन को (सनेम) = प्राप्त करें (सहस्त्रिणम्) = जो सदा उल्लास से युक्त [स+हस्] है (च+च) = तथा (शतिनम्) = सौ वर्ष तक चलनेवाला है । उषाकाल में प्रभुस्तवन व अन्य वृद्धि के कार्यों में लगने पर हमारी शक्ति शतवर्षपर्यन्त स्थिर रहती है और हमारा धन हमारे विनाश का कारण नहीं बनता । इस प्रकार उषा हमारा रक्षण करती है और उत्तम कार्यों में लगने के द्वारा हम उषा का आदर करते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ - उषाकाल में उठकर 'प्रभुस्तवन करना, वृद्धि के कारणभूत कार्यों में लगना' यही उषा का स्तवन है । उषा हमें उस धन व शक्ति को प्राप्त कराती है जोकि हमारे उल्लास और दीर्घजीवन का कारण बनते हैं ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पक्षान्तर में सेना और योगज विशोका का दिग्दर्शन ।

    भावार्थ

    हे ( स्तोम्याः ) स्तुति योग्य, गुणवती ( उषासः ) प्रभात वेलाओं के समान उत्तम गुणों से युक्त विदुषी स्त्रियो ! चा, हे ( स्तोम्याः ) स्तुतिकारी मन्त्र समूह को पढ़ने हारी विदुषि स्त्रियो ! आप ( उशतीः ) उत्तम गुणों और मन से पति की कामना करती हुई ( अस्तोढ्वम् ) अपने आदर योग्य पुरुषों की स्तुति या गुणानुवाद करो । और ( मे ब्रह्मणा ) मेरे महान धन और ब्रह्मवर्चस बल और ज्ञान से ( अवीवृधध्वम् ) आप बृद्धि को प्राप्त होवो और मुझे बढ़ाओ । हे (देवीः) उत्तम गुणों वाली एवं प्रिय कामना युक्त देवियो ! ( युष्माकं अवसा ) आप लोगों की रक्षा और ज्ञान समर्थ्य और प्राप्ति से हम लोग ( सहस्रिणं ) सहस्रों ऐश्वर्यों से युक्त और ( शतिनं च ) सैकड़ों बलों से युक्त ( वाजं ) ऐश्वर्यों को और संग्रामों को और ज्ञानों को ( सनेन ) प्राप्त करें और उपभोग करें । इति नवमो वर्गः ।

    टिप्पणी

    उषा विषयक सूक्त में पक्षान्तर में ‘उष’ धातु दाहार्थक और और पीड़ार्थक होने से राजा की सेना का और अध्यात्म में अज्ञानदाहक होने से योग समाधि में प्रकट होनेवाले प्रकाश के उदय काल का भी वर्णन है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कक्षीवान्दैर्घतमस ऋषिः ॥ उषो देवता ॥ छन्दः- १, ३, ६, ९, १० निचृत् त्रिष्टुप् । ४, ७, ११ त्रिष्टुप् । १२ विराट् त्रिष्टुप् । २, १३ भुरिक् पङ्क्तिः । ५ पङ्क्तिः । ८ विराट् पङ्क्तिश्च ॥ द्वादशर्चं सूक्तम् ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जशी उषा शुभ गुण, कर्म, स्वभावयुक्त असते. तशी स्त्री असावी. तशीच माणसेही असावीत. जसे इतर विद्वानांकडून आपल्या प्रयोजनासाठी विद्या घेतो तशी प्रेमाने इतरांनाही ती द्यावी. ॥ १३ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Dawns, loving and inspiring, adorable lights of Divinity, with the holy voice of Vedic adoration, pray for me and help me grow in life and piety, and you grow too in brilliance and sanctity. May we all by your favour, prayer and grace achieve food for life, energy, progress and prosperity a hundredfold, thousandfold and more.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What kind of women are good is told in the 13th Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O admirable learned women like the Dawns desiring my welfare with the Vedic Hymn, praise my knowledge and augment it. May we obtain through your protection love and favour, O ladies of divine virtues, wealth of knowledge and wisdom hundred and a thousand fold, distributing it among others,

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (ब्रह्मणा) वेदेन = By the Veda. (वाजम् ) विज्ञानमयं बोधम् = Knowledge of various sciences.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As the Ushas (Dawns) possess good attributes and functions, so should ladies be and men should also be good like them. As men and women acquire knowledge from others for the accomplishment of their purposes, so should they impart it to others with love.

    Translator's Notes

    वेदो ब्रह्म (जैमिनीयोपनिषद् ब्राह्मणे ४. ११.४.३ ) वाजम् is from वज-गतो Here the first meaning of Jnana or knowledge has been taken. While many other translators have mostly taken Usha to mean only external Dawn Rishi Dayananda Sarasvati has taken it to mean learned women, shining like the dawn with light of knowledge, for which there are clear indications in the hymn. This hymn is connected with the previous hymn, as there is mention of the attributes of learned women by the illustration of the dawn. Here ends the commentary on the 124th hymn and ninth Verga of the first Mandala of the Rigveda Samhita.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top